मु जफ्फरपुर, गया और सहरसा के बाद बिहार की सिल्क सिटी भागलपुर में मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चौथी 'परिवर्तन रैली' थी। मोदी को देखने-सुनने के लिए भारी संख्या में लोग आए थे। कई लोग पंडाल में पोल पर चढ़े हुए थे। प्रधानमंत्री ने भाषण शुरू करने से पहले पोल पर चढ़े लोगों से नीचे उतरने के लिए आग्रह किया। उन्होंने कहा- 'चुनाव तो आते-जाते रहेंगे। जीवन से कीमती कुछ भी नहीं है। जब तक लोग पोल से नहीं उतर जाते, मैं अपना भाषण शुरू नहीं करूंगा।' बड़ी अच्छी बात कही प्रधानमंत्री जी ने, चुनाव आते-जाते रहेंगे। लोगों का जीवन महत्वपूर्ण है। बहरहाल, बिहार की आवाम को भी समझ लेना चाहिए कि उनका जीवन बहुत कीमती है। राजनीतिक दल उनके जीवन की चिंता करें या न करें, उन्हें खुद अपनी चिंता जरूर करनी चाहिए। चुनाव आयोग ने बिहार के चुनाव को 'मदर ऑफ इलेक्शन' कहा है। इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव बहुत दिलचस्प होने जा रहा है। इस चुनाव से राजनीतिक दलों और नेताओं को बहुत से सबक मिलने वाले हैं। एक आग्रह बिहार की जनता को सभी राजनीतिक दलों से करना चाहिए- 'पोल से उतर आइये माननीयों, तभी हमारे वोट मिलेंगे। पोल पर बैठकर जो सिर्फ ढोल पीटेगा, वह चुनाव बाद विपक्षी दल के विजयी जुलूस में ढोल पीटने लायक ही बचेगा।' यहां पोल के आशय जुमलेबाजी, कोरे आश्वासनों के पहाड़, अशालीन भाषा, अमर्यादित व्यवहार, व्यक्तिवाद, परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति से लगा सकते हैं। इन 'पोल' पर बिहार अब और लटका नहीं रहना चाहता है। बिहार भी अब विकास की तरफ आगे बढऩा चाहता है। जो विकास की बात करेगा, वही बिहार की कुर्सी संभालेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में 'स्वाभिमान रैली' के मंच से लगाए गए आरोपों का जवाब जोरदार ढंग से दिया। साथ ही उन्होंने बिहार के विकास की बात की और सवाल भी उठाए। मोदी ने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों का मसला उठाया। देश में जब सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या बढ़ रही है तब बिहार में क्यों कम हो रही है? केन्द्र से भेजी गई राशि के उपयोग का प्रश्न उठाया। पैकेज की बात आगे बढ़ाई। पैकेज की घोषणा का मजाक बनाने वालों की नीयत पर सवाल उठाये? प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष 2019 में जब वे वोट मांगने आएंगे तो सरकार के एक-एक काम का हिसाब जनता को देंगे। देना ही चाहिए। जनता ने आपको चुना ही इसलिए है कि काम करो। वोट मांगने आओ तो पहले बताओ कि पांच साल सरकार ने किया क्या, किस आधार पर आपको वोट दिया जाए? एक बात स्पष्ट है कि ऐतिहासिक गांधी मैदान में हुई स्वाभिमान रैली में जिस तरह से आरोप पर आरोप लगाए गए, वैसे भाषण अब नहीं चलेंगे। पार्टियों और नेताओं को बताना होगा कि वे सत्ता में आए तो प्रदेश का विकास कैसे करेंगे? क्या तैयारी है? जवाब देते वक्त सिर्फ जुमलेबाजी नहीं चलेगी, तर्क भी पेश करने होंगे। वाजिब सवालों के जवाब भी देने होंगे। सवाल टालने की प्रवृत्ति से अब बाज आना होगा?
भागलपुर में परिवर्तन रैली में दिया गया प्रधानमंत्री का भाषण सराहनीय है। भाषण संतुलित था। उन्होंने आरोपों का जवाब देते हुए बिहार के विकास की बात भी की। आरोपों के जवाब में प्रत्यारोप लगाकर भागे नहीं। 'महागठबंधन' को भी अब अपनी अगली 'स्वाभिमान रैली' में एक-एक सवाल का जवाब देना चाहिए और प्रधानमंत्री से सवाल पूछने चाहिए। खिसियानी बिल्ली की तरह 'पोल' न नोंचे। लोकतंत्र की मर्यादा है कि जनता के लिए, जनता के हित में, जनता के साथ 'पोल' से नीचे उतरकर धरातल पर चुनाव लड़ा जाए। चुनावी प्रचार अगर इसी रास्ते आगे बढ़ेगा, तब जनता को भी अच्छा लगेगा। सिर्फ व्यक्तिगत टीका-टिप्पणी से जनता को क्या लेना-देना? सरकारें अपने काम का हिसाब दें? बताएं कि किसने बिहार का विकास किया? कितना किया? बिहार के लोगों के जीवन की फिक्र सही में किसे है?
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