सोमवार, 7 सितंबर 2015

सैनिकों के अच्छे दिन आए

 प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सैनिकों से किया अपना महत्वपूर्ण वादा पूरा कर दिया है। हरियाणा के फरीदाबाद में मेट्रो की नई लाइन के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि वन रैंक वन पेंशन योजना का लाभ सभी सैनिकों को मिलेगा। 'वीआरएस' पर सैनिकों को भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। मोदी की इस घोषणा से आंदोलन कर रहे सैनिकों और उनके समर्थकों के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आए। आखिर, देश के सैनिकों और उनके परिवारों को 42 साल से चली आ रही लम्बी लड़ाई में विजय हासिल हो गई। एक दिन पूर्व जब रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने वन रैंक वन पेंशन योजना की घोषणा की, तब सैनिक पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए थे। रक्षा मंत्री की घोषणा में 'वीआरएस' का पेंच फंस गया था। 'वीआरएस' लेने वाले जवानों को योजना के लाभ से वंचित रखे जाने का प्रावधान किसी को पसंद नहीं आया। कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों ने तो 'वीआरएस' शब्द के उपयोग पर ही सरकार को घेरने का प्रयास किया। दरअसल, सेना में वीआरएस की व्यवस्था होती ही नहीं है। वहां प्री-मैच्योर रिटायरमेंट की व्यवस्था होती है। प्री-मैच्योर रिटायरमेंट लेने वाले सैनिकों की संख्या करीब 40 प्रतिशत बताई गई है। यानी जवानों का एक बड़ा हिस्सा वन रैंक वन पेंशन योजना का लाभ लेने से वंचित हो जाता। प्री-मैच्योर रिटायरमेंट सैनिकों का हक है।
        तरुणाई में देश की रक्षा के लिए सेना में शामिल हुए सैनिक के 15-17 साल घर से दूर देश की सीमा पर और संवेदनशील क्षेत्रों में बीत जाते हैं। ज्यादातर सैनिक अपने बूढ़े माँ-पिता की सेवा के लिए, अपनी पत्नी-बच्चों के साथ जीने के लिए, अपनी खेतीबाड़ी सम्भालने के लिए प्री-मैच्योर रिटायरमेंट लेकर वापस आ जाते हैं। अपनी जवानी देश की रक्षा में समर्पित करने के बाद घर लौटना स्वाभाविक है। इसीलिए सैनिकों ने 'वीआरएस' पर सवाल खड़े किए। आखिर, 40 प्रतिशत सैनिकों को कैसे वन रैंक वन पेंशन योजना से वंचित रखा जा सकता है। यदि प्रधानमंत्री इन सैनिकों को योजना के दायरे में लाने की घोषणा नहीं करते तो सैनिकों के समक्ष वन रैंक वन पेंशन मिलने के बाद भी 'नहीं मिलने' जैसी स्थिति होती। 
       बहरहाल, मोदी ने सैनिकों को निराश नहीं किया। उनका स्वाभिमान कायम रखा। प्रधानमंत्री ने साबित कर दिया है कि सेना का सम्मान उनके लिए महत्वपूर्ण है। मोदी की घोषणा के बाद से सैनिक खुश हैं। सैनिकों ने कहा भी है कि हमें प्रधानमंत्री से उम्मीद थी। हमें भ्रमित करने का प्रयास जरूर किया जा रहा था लेकिन हमें वर्तमान केन्द्र सरकार पर पूरा भरोसा था। जल्द ही सैनिक अपना आंदोलन वापस ले सकते हैं। सेना के लिए अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री जवानों को प्रेम करते हैं। मोदी ने फरीदाबाद के भाषण से संकेत दिया है कि वे उन सैनिकों की भी चिंता करते हैं, जो छोटे-छोटे पदों पर हैं, साधारण परिवारों से आए हैं। युद्ध हो या शांति, सबसे आगे खड़े होने वाले साहसी सैनिकों के प्रति उनके हृदय में सम्मान है। प्रधानमंत्री की घोषणा और सेना के प्रति उनके प्रेम-सम्मान से सेना का मनोबल बढ़ेगा। प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी नारे 'अच्छे दिन आएंगे' को कुछ हद तक चुटकुला बनने से भी बचा लिया। कह सकते हैं कि सैनिकों के 'अच्छे दिन आ गए'।

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