गां धी परिवार के करीबी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता माखनलाल पोतदार के खुलासे से कांग्रेस में गांधी परिवार के 'राजनीतिक उत्तराधिकारी' की बहस को फिर से हवा मिल सकती है। पोतदार ने दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर प्रियंका गांधी को देखना चाहती थीं। वे उसकी राजनीतिक समझ की कायल थीं। इंदिरा गांधी का मानना था कि प्रियंका में नेतृत्व के गुण हैं, वह आगे चलकर एक महान नेता के तौर पर पहचानी जा सकती है। वाकया 1984 का है। इंदिरा गांधी जम्मू-कश्मीर में थीं। वहां वह मंदिर और मस्जिद, दोनों जगह गईं। मंदिर दर्शन के बाद उन्हें आभास हुआ कि उनका जीवन जल्द समाप्त होने वाला था। तब विचारमग्न इंदिरा गांधी ने पोतदार से कहा कि प्रियंका गांधी को राजनीति में आना चाहिए। इंदिरा गांधी अपनी पोती प्रियंका में खुद को देखती थीं। पोतदार ने इस बारे में अपनी किताब 'चिनार लीव्स' में विस्तार से लिखा है। उनकी किताब जल्द ही आने वाली है।
उक्त खुलासा चौंकाने वाला नहीं है। चौंकाने वाली बात तो प्रियंका के नाम पर सोनिया गांधी का नाराज होना है। पोतदार ने दावा किया है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब उन्होंने राजीव गांधी और सोनिया गांधी को इंदिरा की इच्छा के बारे में बताया तो सोनिया खूब नाराज हुईं। कांग्रेस की कमान बेटी को सौंपने के नाम पर आखिर सोनिया गांधी नाराज क्यों हो उठी थीं? क्या सोनिया की 'अंतरआत्मा' ने बेटी को कमान सौंपने से मना कर दिया था? वर्तमान समय में यह सवाल और अधिक इसलिए पूछा जाने वाला है क्योंकि अपने जिस बेटे राहुल गांधी को उन्होंने आगे बढ़ाने का प्रयास किया है, वह राजनीति के खेल में हारा हुआ खिलाड़ी साबित हो चुका है। कांग्रेसी ही राहुल गांधी की राजनीतिक समझ और उसके नेतृत्व पर प्रश्न चिह्न खड़े करते हैं।
भारतीय राजनीति में राहुल गांधी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए हैं। जबकि प्रियंका गांधी सक्रिय राजनीति से दूर रहकर भी राजनेताओं और जनता को प्रभावित करती रहती हैं। राहुल गांधी की असफलता और अलोकप्रियता कांग्रेस पर बोझ की तरह है। जबकि प्रियंका कई कांग्रेसियों को उम्मीद की रोशनी की तरह दिखती हैं। कांग्रेस के अंदरखाने से कई बार आवाजें आती हैं- प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ। 10-जनपथ से लेकर देशभर में कांग्रेस के नेता समय-समय पर प्रियंका के समर्थन में होर्डिंग और नारे लगा चुके हैं। इसके बावजूद सोनिया गांधी कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी को सौंपने का मन नहीं बना सकी हैं।
दरअसल, सोनिया गांधी मूलत: इटली की नागरिक हैं। इटली में पितृसत्तात्मक समाज है। वहां बेटियों की जगह बेटों को उत्तराधिकार सौंपा जाता है। यही कारण है कि सोनिया गांधी अपनी सास और ताकतवर नेता इंदिरा गांधी की राजनीतिक समझ को अनदेखा कर देती हैं। इंदिरा की 'अंतरआत्मा की आवाज' को भी सोनिया ने अनसुना कर दिया। प्रियंका की राजनीतिक समझ की तारीफ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी कई अवसर पर करते थे। राजीव ने कहा था कि कम उम्र से ही प्रियंका राजनीतिक गहराइयों को समझने लगी थीं। यानी सोनिया गांधी अपने पति की राय से भी इत्तेफाक नहीं रखती हैं।
दरअसल, सत्ता से प्राप्त शक्ति के हस्तांतरण का भय भी सोनिया को बना रहता है। प्रभावशाली नेता शक्ति का केन्द्र हमेशा अपने पास रखते हैं। यदि प्रियंका आज राहुल की जगह होती तो निश्चित ही सोनिया गांधी की भूमिका बहुत सीमित हो जाती। कांग्रेस के नेता सोनिया के दरवाजे की जगह प्रियंका के दरबार में हाजिरी लगाते नजर आते। नेहरू-गांधी परिवार के राजनीतिक उत्तराधिकार की परंपरा में राहुल कहीं छूट जाते और भविष्य के उत्तराधिकारी प्रियंका के बच्चे होते। इसका उदाहरण हैं, संजय गांधी का परिवार। मेनका गांधी आज कहाँ हैं? बहरहाल, गांधी परिवार के करीबी लोग अच्छे से समझते हैं कि सोनिया गांधी के पुत्र मोह का कारण क्या है? उनके पुत्र मोह पर पहले भी सवाल उठते रहें हैं, अब गांधी परिवार के करीबी कांग्रेसी नेता माखनलाल पोतदार के 'बुक बम' से ये सवाल और आग पकड़ सकते हैं।
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