सां सदों के वेतन और भत्ते तय करने के लिए सरकार ने एक स्वतंत्र वेतन आयोग के गठन की बात जाहिर की है। सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है। दरअसल, सांसदों के वेतन-भत्तों को लेकर समय-समय पर विवाद होता रहा है। सांसदों ने जब-जब अपना वेतन-भत्ता बढ़ाने का प्रयास किया है, तब-तब देश में हंगामा खड़ा हुआ है। सांसदों की जमकर निंदा की जाती रही है। मीडिया के मार्फत देशभर में नाराजगी का माहौल बनता रहा है। जबकि हकीकत यह भी है कि भारत के सांसदों का वेतन सरकारी अफसरों से कम है। कई राज्यों के विधायकों से भी सांसदों का वेतन कम है। फिर क्या कारण है कि सांसदों की वेतनवृद्धि हमेशा आलोचना का शिकार बनती है? क्या सांसद खुद अपना वेतन निर्धारण करते हैं, इसलिए? या फिर राजनेताओं के प्रति जनता में एक नकारात्मक वातावरण बन गया है, इसलिए? एक धारणा यह भी प्रचलित है कि अपने वेतन की बात आती है तो प्रत्येक राजनीतिक दल के सांसद एकजुट होकर एकमत से अपना वेतन बढ़ा लेते हैं। जबकि बाकि दिनों में संसद में जमकर हंगामा खड़ा करते हैं। संसद चलने नहीं देते। उक्त सब धारणाएं अपनी जगह आंशिक तौर पर सही हैं। लेकिन, आलोचना का महत्वपूर्ण कारण है, वेतन के संबंध में खुद निर्णय करना। देश में कर्मचारियों-अधिकारियों के वेतन निर्धारण की स्वतंत्र व्यवस्था है। वेतन आयोग निश्चित समय के बाद कर्मचारियों और अधिकारियों का वेतन बढ़ाता है। परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर भत्ते भी बढ़ाए जाते रहते हैं। लेकिन, जनप्रतिनिधियों के संबंध में ऐसी कोई स्वतंत्र व्यवस्था नहीं है।
वर्तमान में संविधान के अनुच्छेद १०६ और १९५४ में बने एक अधिनियम के अनुसार होता है। यदि सांसदों के वेतन निर्धारण के लिए वेतन आयोग बनाया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद १०६ और संबंधित अधिनियम में संसोधन करना पड़ेगा। संविधान संसोधन का रास्ता संसद से होकर जाता है। भले ही अन्य मुद्दों पर संसद नहीं चली हो लेकिन स्वंतत्र वेतन आयोग बनाने में आने वाली सभी अड़चनों को दूर करने के लिए सभी दलों के सांसद सहमति दे देंगे। यह जरूरी भी है। सांसदों को निंदा से बचने के लिए स्वतंत्र वेतन आयोग ही एक रास्ता है। इसीलिए विशाखपट्टनम् में दो दिवसीय अखिल भारतीय सचेतक सम्मेलन में संसदीय कार्य मंत्रालय ने सांसदों के वेतन-भत्ते के निर्धारण के लिए स्वतंत्र वेतन आयोग का प्रस्ताव रखा है। वर्तमान में सांसदों का मूल वेतन ५० हजार रुपये है। संसद सत्र या संसदीय समिति की बैठक में भाग लेने पर दो हजार रुपये दैनिक भत्ता मिलता है। प्रत्येक माह ४५ हजार रुपये निर्वाचन क्षेत्र भत्ता मिलता है। १५ हजार रुपये स्टेशनरी और ३० हजार रुपये सचिवालय में सहयोगी स्टाफ के वेतन के लिए मिलते हैं। सांसदों को अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं।
गौरतलब है कि भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने जून में सांसदों का मूल वेतन, कार्यालय और निर्वाचन क्षेत्र भत्ता दोगुना करने की सिफारिश की थी। पूर्व सांसदों की पेंशन भी ७५ प्रतिशत बढ़ाने की सिफारिश समिति ने की है। समिति की सिफारिश को लागू करने के लिए यदि सांसद प्रयास करेंगे तो फिर से एक नकारात्मक वातावरण बनेगा। इसलिए अच्छा है कि समय-समय पर सांसदों के वेतन का आकलन और निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र वेतन आयोग गठित कर ही दिया जाए।
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