बि हार में मतदान से एक सप्ताह पहले इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता का सर्वे एनडीए के लिए खुशखबरी लेकर आया है। लोकनीति और सीएसडीएस ने इंडियन एक्सप्रेस समूह के लिए चुनाव पूर्व यह सर्वेक्षण किया है। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के संकेत सर्वे से मिल रहे हैं। यह सर्वे भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने वाला साबित होगा। बिहार का मैदान फतेह करने के लिए पूरी ताकत से मेहनत कर रहीं एनडीए गठबंधन की सभी पार्टियां और उनके कार्यकर्ता अब आखिरी सप्ताह में और जोश-जज्बे के साथ मतदाताओं से मिलेंगे।
इंडियन एक्सप्रेस समूह का सर्वे कहता है कि भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए को महागठबंधन के मुकाबले चार प्रतिशत की अच्छी-खासी बढ़त मिल रही है। सितंबर के आखिरी सप्ताह तक एनडीए को ४२ फीसदी और महागठबंधन को ३८ फीसदी वोट मिलते दिख रहे हैं। बाकि गठबंधनों और मोर्चों को सर्वे ने प्रभावहीन बताया है। सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाला तीसरा मोर्चा और पप्पू यादव की पार्टी 'वोट कटवा' भी साबित नहीं हो पा रहे हैं। अगर ये वोट काट पाते हैं तो नीतिश कुमार के महागठबंधन को और अधिक नुकसान पहुंचाएंगे। वामपंथी दलों का गठजोड़ भी अब तक अपना प्रभाव नहीं छोड़ पाया है।
सर्वे पर भरोसा करें तो वामपंथी दलों और बसपा का जनाधार बिहार में अभी और कमजोर होगा। ओवैसी की पार्टी एमआईएम भी खास प्रदर्शन करती नहीं दिख रही है। हालांकि वह कुछ हद तक मुसलमानों को आकर्षित करने में कामयाब हो जाएगी। सर्वे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार के रण में मुकाबला सीधे तौर पर एनडीए और महागठबंधन में ही है। चुनावी मुकाबले के अहम पड़ाव पर भाजपानीत गठबंधन एनडीए नीतीश-लालू-सोनिया के महागठबंधन पर भारी पड़ता दिख रहा है। शहरी क्षेत्रों और शिक्षित वर्ग में विशेषतौर पर भाजपा को बढ़त मिलती नजर आ रही है। अति दलित और अति पिछड़ों का भी साथ भाजपा को मिल रहा है।
उधर, महागठबंधन को अपनी सहयोगी दलों के नेताओं के व्यवहार और बयानों के कारण नुकसान झेलना पड़ रहा है। कांग्रेस के 'एंग्री यंग मैन' राहुल गाँधी मैदान से बाहर हैं। लालू के साथ मंच साझा करने से इनकार करके वे जनता को दुविधा में डाल चुके हैं। वहीं, लालू प्रसाद यादव की कड़वी बयानबाजी के कारण मतदाता महागठबंधन से दूर भाग रहे हैं। बिहार के मतदाता नीतीश कुमार को तो पसंद कर रहे हैं लेकिन वे जंगलराज के प्रतीक लालू प्रसाद यादव और भ्रष्टाचार-तुष्टीकरण की मूर्ति कांग्रेस के कारण महागठबंधन पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं।
बिहार में लम्बे समय तक राजद और कांग्रेस का शासन रहा है। दोनों ही पार्टियां बिहार को बदहाली से बाहर नहीं निकाल सकी हैं। बिहार की जनता के सामने सबसे बड़ा सवाल है कि महागठबंधन में शामिल ये दोनों दल सत्ता में आने के बाद कैसे राज्य को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाएंगे? अब तक के चुनावी समर में राजद और कांग्रेस थकी हुई सैन्य टुकडिय़ां ही साबित हो रही हैं।
राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने तो 'गौ मांस' पर विवादित टिप्पणी करके नई मुसीबत मोल ले ली है। लालू ने महागठबंधन के सबसे 'पवित्र' उद्देश्य 'सेकुलर सोच' को उजागर कर दिया है। बिहार का हिन्दू मानस लालू प्रसाद यादव की टिप्पणी से बेहद आहत महसूस कर रहा है। निश्चित तौर पर आगामी किसी सर्वेक्षण में इसका असर दिखाई देगा। चुनावी अभियान को विकास के मुद्दे से हटाकर जाति के खांचों में समेटने का दोष भी महागठबंधन में बराबर के हिस्सेदार लालू प्रसाद यादव के सिर पर है। बहरहाल, यह सर्वे एनडीए का उत्साह बढ़ाने वाला है। लेकिन, जिस तरह बिहार में राजनीति तेजी से करवट बदलती है, उसे देखते हुए अभी कुछ भी कहना कठिन ही है।
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