क थित बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में साहित्यकारों की सम्मान वापसी की मुहिम में अब कलाकार, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी शामिल हो गए हैं। पद्म भूषण सम्मान लौटाने की घोषणा करने वाले वैज्ञानिक पुष्पमित्र भार्गव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया है कि वे भारत को हिन्दू धार्मिक तानाशाह बनाना चाहते हैं। यह बात अलग है कि उनके पास ऐसी कोई दलील नहीं है, जिससे वह अपने आरोप को साबित कर सकें। उन्होंने भी साहित्यकारों के रटे-रटाए आरोपों को ही दोहराया है। प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाने वाले साहित्यकारों, इतिहासकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों ने सरकार से संवाद करने के लिए कितने प्रयास किए हैं? या सिर्फ अपनी भैंस हांके जा रहे हैं? वामपंथियों का मूल चरित्र है-'आरोप लगाओ और भाग खड़े हो।' साहित्य अकादमी अवार्ड लौटाने वाले अशोक वाजपेयी खुद भी स्वीकारते हैं कि विरोध में 'नाटक' लाने के लिए विरोध का यह तरीका चुना है।
साहित्यकारों के चयनित विरोध का समर्थन कर रहे लोग बड़े उत्साहित होकर सवाल उछाल रहे हैं कि क्या इतिहासकार और वैज्ञानिकों का विरोध भी राजनीतिक है? यानी वे यह तो मानते ही हैं कि साहित्यकारों का विरोध राजनीतिक है। ये मासूम समर्थक क्या यह कहना चाह रहे हैं कि इतिहासकार और वैज्ञानिक वैचारिक तौर पर शून्य होते हैं? यहां अभिनेता अनुपम खैर सच साबित होते दिखते हैं। वे कहते हैं कि नकली धर्मनिरपेक्ष लोगों की असलियत सामने आ रही है। भारत के इतिहास को विकृत करने के लिए कुख्यात रोमिला थापर, केएन पनिक्कर, आरएस शर्मा, डीएन झा और इरफान हबीब जैसे इतिहासकारों का अगला-पिछला पृष्ठ पलटकर देखा जाए तो फिर यह सवाल बेमानी हो जाएगा कि क्या इतिहासकारों का विरोध भी राजनीतिक है? कांग्रेस की सरपरस्ती में इन वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के इतिहास का लेखन ही अपनी पार्टियों के हितों को ध्यान में रखकर किया है। इनकी नैतिकता तो तभी संदिग्ध हो गई जब इन्होंने औरंगजेब को 'जिंदा पीर' और हिन्दू ऋषि-मुनियों को गोमांस खाने वाला साबित करने के लिए अपनी लेखनी का दुरुपयोग किया था।
क्या इन इतिहासकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों में वे लोग शामिल नहीं है, जिन्होंने सीधे तौर पर आमचुनाव-2014 में नरेन्द्र मोदी और भाजपा के खिलाफ चलाए गए हस्ताक्षर अभियान का समर्थन किया था? फिर कैसे कहा जा सकता है कि इनके विरोध की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है? भाजपा के प्रवक्ता पीवीएल नरसिम्हा राव ने भार्गव के पद्मभूषण सम्मान लौटाने का कड़ा विरोध करते हुए कहा है कि वे आदतन भाजपा विरोधी हैं। भाजपा और केन्द्र सरकार के खिलाफ उनका पूर्वाग्रह रहा है। भार्गव भाजपा विरोधी मुहिमों का हिस्सा रहे हैं। वैज्ञानिकों द्वारा सम्मान लौटाने को इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर 'शोबाजी' बताते हैं और इसका विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि असहिष्णुता के मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है। इसके पीछे राजनीतिक एजेंडा हो सकता है। इसी तरह फिल्मकारों ने अवार्ड लौटाते हुए संयुक्त बयान में कहा है कि दलीलों का जवाब तर्कों से नहीं बुलेट से दिया जा रहा है। कोई बताएगा कि खुलकर सरकार के खिलाफ बयानबाजी कर रहे कितने साहित्यकारों, फिल्मकारों, इतिहासकारों और वैज्ञानिकों को सरकार या हिन्दूवादी संगठनों ने गोली मारी है। कलाकारों को जानकारी होनी चाहिए कि विरोधियों को खामोश करने के लिए 'बुलेट' की अनिवार्यता बताने वाली विचारधारा तो वामपंथ है। तर्क का जवाब बुलेट से वामपंथी ही देते हैं। भरोसा न हो तो पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार के 30 साल का इतिहास उठाकर देख सकते हैं। केरल में विरोधी विचारधारा के लोगों की हत्याओं को भी देख सकते हैं।
बहरहाल, विरोध करने वाले एक तरफा विरोध किए जा रहे हैं। सरकार उनके विरोध की लगातार अनदेखी कर रही है। अगर वाकई देश का माहौल खराब है और सम्मान वापस करने वाले चिंतित हैं तो उन्हें सरकार से बात करनी चाहिए। मीडिया में आकर तथ्यहीन और एक तरफा बाचतीच से माहौल सुधरने वाला नहीं है, बल्कि आपकी कलई ही खुल रही है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-11-2015) को "ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर" (चर्चा अंक-2147) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, डे लाईट सेविंग - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंसबका अपना अपना मत है। कोई सहमत है तो कोई असहमत। पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में धार्मिक असिहष्णुता बढ़ी है।
जवाब देंहटाएं