आ ज स्वच्छ भारत अभियान का एक वर्ष पूरा हो रहा है। पिछले वर्ष महात्मा गाँधी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के इस महत्वपूर्ण अभियान की शुरुआत की थी। अभियान का उद्देश्य शहरों और गाँवों को स्वच्छ बनाने का है। इसके तहत शहरों-गाँवों में शौचालयों का निर्माण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा, मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करना, स्वच्छ और शुद्ध पेयजल का प्रबंध करना आदि शामिल है। अभियान के माध्यम से प्रधानमंत्री स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहते हैं। स्वच्छता को आदत बनाना उनका मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है। इसके लिए उन्हें समाज के प्रमुख और प्रभावशाली व्यक्तियों को स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ा है। ताकि वे स्वच्छता के लिए लोगों को प्रेरित कर सकें।
यह बात सही है कि भारत को स्वच्छ बनाने के लिए सरकार ठोस उपाय तो कर देगी, जैसे शौचालयों का निर्माण कर देगी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा भी उपलब्ध करा दी जाएगी, पेयजल की शुद्धता के लिए भी प्रयास कर लेगी, लेकिन क्या इतने से स्वच्छता आ जाएगी? सरकार की ओर से ये प्रयास आवश्यक हैं। स्वच्छ भारत की तस्वीर बनाने के लिए ठोस उपाय जरूरी हैं। लेकिन, उससे भी अधिक स्वच्छता के प्रति समाज जागरण जरूरी है। शौचालय बनने के बाद उसकी साफ-सफाई की जितनी चिंता नगर निगम या ग्राम पंचायत को करनी है, उससे अधिक चिंता जनता को करनी होगी।
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के बाद से आम आदमी में साफ-सफाई के प्रति चेतना तो जागी है। पहले की तरह वह सड़कों पर यहां-वहां कचरा नहीं फेंकता। खाने-पीने की जिस दुकान या गुमटी पर कूड़ादान नहीं रखा होता, आम आदमी दुकानदार को कूड़ादान रखने के लिए टोकता है। आम आदमी में आई चेतना का विस्तार करना और उसे स्थायी भाव देना जरूरी है। यानी स्वच्छा को आदत बनाने पर अधिक ध्यान देना होगा।
बहरहाल, सरकार का यह अभियान पाँच साल का है। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि वह वर्ष २०१९ तक भारत को स्वच्छ बना देना है। स्वच्छ भारत अभियान का एक वर्ष पूरा होने पर सरकार को समीक्ष करनी चाहिए। उसे देखना चाहिए कि अभियान का क्या असर हुआ है? यह कितना सफल हुआ है? पाँच साल के अपने लक्ष्य की ओर एक साल में सरकार कितना आगे बढ़ सकी है?
सरकार को ईमानदारी से यह भी देखना होगा कि उसकी क्या कमियां-कमजोरियां हैं? स्वच्छ भारत अभियान पर सरकार जितना पैसा खर्च कर रही है, क्या उसका सही उपयोग हो पा रहा है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिन लोगों को अभियान के लिए नामित किया था, उनमें से कितने लोग फोटो खिंचवाने के बाद वापस नहीं लौटे हैं, यह भी देखना चाहिए। जिन महानुभावों ने स्वच्छता के लिए लोगों को प्रेरित करने का काम नहीं किया है, उनसे पूछना चाहिए कि आखिर समाज के प्रति उनका कोई दायित्व बनता है या नहीं? उनकी क्या व्यस्तताएं रहीं कि उन्होंने इतने महत्वपूर्ण अभियान के लिए समय नहीं दिया? अभियान से जुड़ी सरकारी संस्थाओं को भी सोचना होगा कि वे अपनी जिम्मेदारी कितनी गंभीरता से निभा रही हैं?
अभी हाल में केन्द्र सरकार ने स्वच्छ शहरों की सूची जारी की थी। इस सूची में मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत दयनीय थी। मध्यप्रदेश का शहर दमोह ४७६ शहरों की सूची में सबसे आखिरी पायदान पर रहा था। बाकि के शहर भी बहुत पीछे रह गए थे। मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। इसलिए उससे अपेक्षाएं अधिक हैं। मध्यप्रदेश और केन्द्र सरकार सहित भारत के आम नागरिकों को आज दो अक्टूबर को महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के अवसर पर संकल्प लेना चाहिए कि वे स्वच्छ भारत के लिए और गंभीरत से प्रयास करेंगे।
यह बात सही है कि भारत को स्वच्छ बनाने के लिए सरकार ठोस उपाय तो कर देगी, जैसे शौचालयों का निर्माण कर देगी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा भी उपलब्ध करा दी जाएगी, पेयजल की शुद्धता के लिए भी प्रयास कर लेगी, लेकिन क्या इतने से स्वच्छता आ जाएगी? सरकार की ओर से ये प्रयास आवश्यक हैं। स्वच्छ भारत की तस्वीर बनाने के लिए ठोस उपाय जरूरी हैं। लेकिन, उससे भी अधिक स्वच्छता के प्रति समाज जागरण जरूरी है। शौचालय बनने के बाद उसकी साफ-सफाई की जितनी चिंता नगर निगम या ग्राम पंचायत को करनी है, उससे अधिक चिंता जनता को करनी होगी।
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के बाद से आम आदमी में साफ-सफाई के प्रति चेतना तो जागी है। पहले की तरह वह सड़कों पर यहां-वहां कचरा नहीं फेंकता। खाने-पीने की जिस दुकान या गुमटी पर कूड़ादान नहीं रखा होता, आम आदमी दुकानदार को कूड़ादान रखने के लिए टोकता है। आम आदमी में आई चेतना का विस्तार करना और उसे स्थायी भाव देना जरूरी है। यानी स्वच्छा को आदत बनाने पर अधिक ध्यान देना होगा।
बहरहाल, सरकार का यह अभियान पाँच साल का है। सरकार ने लक्ष्य रखा है कि वह वर्ष २०१९ तक भारत को स्वच्छ बना देना है। स्वच्छ भारत अभियान का एक वर्ष पूरा होने पर सरकार को समीक्ष करनी चाहिए। उसे देखना चाहिए कि अभियान का क्या असर हुआ है? यह कितना सफल हुआ है? पाँच साल के अपने लक्ष्य की ओर एक साल में सरकार कितना आगे बढ़ सकी है?
सरकार को ईमानदारी से यह भी देखना होगा कि उसकी क्या कमियां-कमजोरियां हैं? स्वच्छ भारत अभियान पर सरकार जितना पैसा खर्च कर रही है, क्या उसका सही उपयोग हो पा रहा है? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिन लोगों को अभियान के लिए नामित किया था, उनमें से कितने लोग फोटो खिंचवाने के बाद वापस नहीं लौटे हैं, यह भी देखना चाहिए। जिन महानुभावों ने स्वच्छता के लिए लोगों को प्रेरित करने का काम नहीं किया है, उनसे पूछना चाहिए कि आखिर समाज के प्रति उनका कोई दायित्व बनता है या नहीं? उनकी क्या व्यस्तताएं रहीं कि उन्होंने इतने महत्वपूर्ण अभियान के लिए समय नहीं दिया? अभियान से जुड़ी सरकारी संस्थाओं को भी सोचना होगा कि वे अपनी जिम्मेदारी कितनी गंभीरता से निभा रही हैं?
अभी हाल में केन्द्र सरकार ने स्वच्छ शहरों की सूची जारी की थी। इस सूची में मध्यप्रदेश की स्थिति बहुत दयनीय थी। मध्यप्रदेश का शहर दमोह ४७६ शहरों की सूची में सबसे आखिरी पायदान पर रहा था। बाकि के शहर भी बहुत पीछे रह गए थे। मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। इसलिए उससे अपेक्षाएं अधिक हैं। मध्यप्रदेश और केन्द्र सरकार सहित भारत के आम नागरिकों को आज दो अक्टूबर को महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती के अवसर पर संकल्प लेना चाहिए कि वे स्वच्छ भारत के लिए और गंभीरत से प्रयास करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share