पुस्तक चर्चा : ‘चलो! चलते हैं अपने गाँव’ (काव्य संग्रह)
मन की भाव-भूमि उर्वर होती है, तब उससे काव्यधारा बह निकलती है। कविता की महक बताती है कि वह किस वातावरण में पल्लवित हुई है। युवा कवि कृष्ण मुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ की कविताओं में गाँव, घर, समाज और देश के प्रति अपनत्व की खुशबू है। कर्तव्य का भाव है। अभिमान की अभिव्यक्ति है। उनके मन की पीड़ा भी कभी-कभी कविता का रूप धरकर प्रकट हुई है। कवि ने स्वयं माना है कि “गाँव-माटी, परम्पराएं, अपनापन और निश्छल मन मेरे हृदय तथा भावनाओं में बसता है। जो मेरी लेखनी को कागज के पन्नों में किसी न किसी रचना के रूप में उतारता रहता है”। जैसे अपने काव्य संग्रह ‘चलो! चलते हैं अपने गाँव’ की प्रतिनिधि कविता में अटल अपने गाँव को विविध रूपों में याद करते हैं। उन्हें गाँव की गलियां याद आती हैं, आँगन बुलाते हैं। गाँव का आध्यात्मिक वातावरण उनको राम की भक्ति से सरोबोर करता है। दादी-नानी के किस्से, अम्मा की लोरी, कक्कू की डांट, सब उन्हें अपने गाँव बुलाते हैं। अपनी इस कविता में जहाँ उन्होंने निर्दोष गाँव की उजली तस्वीर हमारी आँखों में उतारने की कोशिश की है, वहीं अपने काव्य संग्रह की आखिरी कविता ‘कोई लौटा दो- मेरा वही पुराना गाँव’ में वह गाँव के उस वातावरण को पुन: पाना चाहते हैं, जो गाँव को गाँव बनाता है। अपने गाँव, गाँव के बाशिदों एवं गाँव की प्रकृति को अटल ने अपनी कविताओं में खूब चित्रित किया है। अपनी लेखनी से वह अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अनथक प्रयास करते हैं और पाठकों को भी प्रेरित करते हैं कि वे भी अपनी जड़ों की ओर लौटें।
अटल की कविताओं में देशभक्ति का भाव भी खूब दिखायी देता है। युवा रगों में बहता खून अपने अंदाज में देशभक्ति को प्रकट करता है। देश के प्रति समर्पण के भाव को जागृत करता है। क्रांति के गीत गाता है। देश के नायकों को याद कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता है। ईश्वर के प्रति भक्ति भाव को प्रकट करती कविताएं बताती हैं कि कवि का मन अध्यात्म में खूब रमता है। शुभ के दाता भगवान श्री गणेश और विद्या की देवी माँ सरस्वती की वंदना लिखकर उन्होंने भारत की परंपरा का स्मरण किया है। कवि सतना से है तो मैहर की माँ शारदे से वरदान माँगना नहीं भूलते हैं। शिव की स्तुति में उन्होंने लिखा है- “मैं आदि हूँ-अनंत हूँ, और औघड़ संत हूँ। ब्रह्मांड का स्वरूप मैं, ओंकार मंत्र हूँ”। वहीं, एक कविता में वे राम से आग्रह करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति हृदय में आकर बस जाओ। रामराज्य की अवधारणा को साकार करने के लिए आवश्यक है कि सबके हृदय में रामत्व हो। वे लिखते हैं- “हे! राम तुम्हारी कृपा दृष्टि से, लोकमंगल, धर्मजय का सदा उन्मेष हो। सत्यमार्ग की नवकिरणों से, भारत का नवप्रभात हो”।
अपने देश भारत का समृद्ध परिचय उन्होंने ‘मैं आर्यावर्त हूँ’ में कराया है। कवि लिखता है कि “गीता का उपदेश जहाँ, स्वयं भगवान सुनाते हैं। मर्यादा का परिचय देने, श्रीराम जहाँ मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाते हैं। वह धर्मभूमि, वह कर्मभूमि, मैं भारतवर्ष कहलाता हूँ”। भारत के महान परिचय का विस्तार उन्होंने अपनी दूसरी कविता ‘सदा तेरी जय हो, मेरे भारत महान’ में किया है। अपनी कविता के माध्यम से अटल वीर भगत सिंह की गाथा को शब्द देते हैं, तो एक अन्य कविता में मातृभूमि की सेवा में अपने प्राणों को न्योछावर करनेवाले अमर बलिदानियों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
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कृष्णमुरारी त्रिपाठी 'अटल' की पुस्तक चलो! चलते हैं अपने गाँव का आवरण पृष्ठ |
उनकी कविताओं से होकर गुजरने पर सहज ही अनुभूति होती है कि देश-समाज के प्रति साहित्यकार होने के दायित्व का निर्वहन करने की एक छटपटाहट उनके मन में लगातार रहती है। उनके लिए कविता केवल मनोरंजन और स्वांत सुखाय का साधन नहीं है। प्रस्तावना में सतना के वरिष्ठ साहित्यकार चिंतामणि मिश्र ने लिखा भी है कि “अटल के लिए कविता रचना बौद्धिक जुगाली नहीं है, वे कविता के मार्फत जीवन को देखने का प्रयास करते हैं”। इसी तरह, हिन्दी प्राध्यापक डॉ. क्रांति मिश्रा लिखती हैं कि “अपनी कविताओं की पृष्ठभूमि में अटल जहाँ अपने वर्तमान में व्याप्त छल-छद्म और खोखलेपन को पहचानने की कोशिश में यत्नरत हैं, वहीं अतीत की स्मृतियों एवं भविष्य के सर्जन तथा कर्तव्यपथ की ओर जाने की आशा जगाते हैं”। यह सही बात है कि अटल की कई कविताएं निराशा से बाहर निकालकर पाठकों को कर्तव्यपथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करती हैं। कमजोर मन में आत्मविश्वास भर कर लोगों को समाज के लिए कुछ करने की प्रेरणा देती हैं।
‘चलो! चलते हैं अपने गाँव’ कृष्ण मुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ का पहला काव्य संग्रह है, जो मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित होकर साहित्य जगत से मुखातिब है। संदर्भ प्रकाशन, भोपाल ने इसे प्रकाशित किया है। 184 पृष्ठों के इस संग्रह में अटल की 103 कविताएं शामिल हैं। उनकी कविताओं में संस्कृतनिष्ठ हिन्दी प्रवाहमान है तो देशज शब्दावली का माधुर्य भी है। अटल की ये कविताएं कविता प्रेमी पाठकों को प्रिय और प्रेरक लगेंगी। वरिष्ठ कवियों का ध्यान आकर्षित करेंगी। यह भी कि उनकी कविताएं भविष्य में उनसे और नयी रचनाओं के सृजन की उम्मीद जगाती हैं। विश्वास है कि भविष्य में उनका रचना संसार और अधिक समृद्ध होगा। हिन्दी साहित्य जगत से आग्रह है कि वह कवि के रूप में युवा पत्रकार एवं साहित्यकार कृष्ण मुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ का भावभीना स्वागत करे और उनकी रचनाओं पर अपना स्नेह बरसाए।
पुस्तक : चलो! चलते हैं अपने गाँव
कवि : कृष्ण मुरारी त्रिपाठी ‘अटल’
मूल्य : 250 रुपये (सजिल्द)
प्रकाशक : संदर्भ प्रकाशन, भोपाल
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दैनिक समाचार पत्र 'स्वदेश ज्योति' में 20 जुलाई, 2025 को प्रकाशित |
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