मंगलवार, 1 जुलाई 2025

हमारे आसपास की जरूरी कहानियां, जो जीवन सिखाती हैं

17 साल की लेखिका की 13 चुनी हुई कहानियां – वत्सला@2211


अपने पहले ही कहानी संग्रह ‘वत्सला @2211’ के माध्यम से 17 वर्षीय लेखिका वत्सला चौबे ने साहित्य जगत में एक जिम्मेदार साहित्यकार के रूप में अपनी कोमल उपस्थिति दर्ज करायी है। उनके इस कहानी संग्रह में 13 चुनी हुई कहानियां हैं, जो हमें कल्पना लोक के गोते लगवाती हुईं, कठोर यथार्थ से भी परिचित कराती हैं। सुधरने और संभलने का संदेश देती हैं। बाल कहानियों की अपनी दुनिया है, जिसमें बच्चे ही नहीं अपितु बड़े भी आनंद के साथ खो जाते हैं। यदि ये बाल कहानियां किसी बालमन ने ही बुनी हो, तब तो मिथुन दा के अंदाज में कहना ही पड़ेगा- क्या बात, क्या बात, क्या बात। बहुत दिनों बाद बाल कहानियां पढ़ने का अवसर मिला। एक से एक बेहतरीन कहानियां, जिनमें अपने समय के साथ संवाद है। अतीत की बुनियाद पर भविष्य के सुनहरे सपने भी आँखों में पल रहे हैं। एक किशोर वय की लेखिका ने अपने आस-पास की दुनिया से घटनाक्रमों को चुना और उन्हें कहानियों में ढालकर हमारे सामने प्रस्तुत किया है। इन कहानियों में मानवीय संवेदनाएं हैं। सामाजिक परिवेश के प्रति जागरूकता है। अपने कर्तव्यों के निर्वहन की ललक है। अपनी जिम्मेदारियों का भान है। संग्रह के प्राक्कथन में वरिष्ठ संपादक गिरीश उपाध्याय ने उचित ही लिखा है- “ये कहानियां भले ही एक बच्ची की हों, लेकिन इनमें बड़ों के लिए या बड़े-बड़ों के लिए बहुत सारे संदेश, बहुत सारी सीख छिपी हैं, बशर्ते हम उन्हें समझने की और महसूस करने की कोशिश करें”। 

वत्सला अपनी पहली कहानी ‘किट्टू की नर्मदा यात्रा’ के बहाने बच्चों को साहस देती हैं कि कभी मेले-ठेले में या अन्य किसी कारण से अपने परिवार से बिछड़ जाएं तो क्या करना चाहिए। यह पाठ पढ़ाने के लिए ‘किट्टू’ अपने पाठकों को मछलियों की रंगीन दुनिया की सैर कराती हैं। अगली कहानी में वह हमें नंदनकानन के वन में लेकर जाती हैं और स्वच्छता का महत्व सिखाती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘स्वच्छ भारत’ का सीधा असर किसी के मन पर पड़ा है, तो वह बच्चे हैं। कई बार देखा गया है कि बच्चे बड़ी उम्र के नादान लोगों को स्वच्छा की सीख दे रहे होते हैं। किट्टू की इस कहानी पर भी आपको प्रधानमंत्री मोदी और उनके स्वच्छ भारत अभियान का प्रभाव दिखायी देगा। जब मैं कहानी ‘बस्ते का बोझ’ पढ़ रहा था, तब मुझे वरिष्ठ साहित्यकार गिरिजा कुलश्रेष्ठ याद आईं, उनकी कहानी ‘बिल्लू का बस्ता’ याद आई। बिल्लू के बस्ते में किताबें कम खिलौने ज्यादा मिला करते हैं। विद्या के नाम पर किताबों में किसी पक्षी के रंगीन पंख और पौधे की पत्तियां। कंचे, डिब्बे-डिब्बियां, किताबों से काटे गए कार्टून और फूल के चित्र, न जाने क्या-क्या। यही तो उसके लिए कुबेर का खजाना है। गिरिजा दीदी के कहानी संग्रह ‘अपनी खिड़की से’ में आप यह रोचक और गुदगुदाने वाली कहानी पढ़ सकते हैं। बच्चों के बस्तों में क्या होना चाहिए, इसके प्रति हमें थोड़ा संवेदनशील होना पड़ेगा। बच्चों के बस्तों में बोझ नहीं, खुशियां होनी चाहिए। वैसे तो सभी कहानियों में आप ‘वत्सला’ की प्रत्यक्ष अनुभूति एवं उपस्थिति को देख पाएंगे परंतु यह कहानी तो साफतौर पर संकेत करती है कि ‘किट्टू’ ने अपने अनुभव से हम बड़ों को संदेश देने का प्रयास किया है कि बच्चों को बस्ते के बोझ से मुक्ति चाहिए। बोझ उन्हें आगे नहीं ले जाएगा, बल्कि उनके कंधे झुका देगा।

पर्यावरण को स्वस्थ रखना हम सबकी साझी जिम्मेदारी है। वत्सला ने इस अनुकरणीय विचार को अपनी कहानियों के जरिए हम सबके मन में उतारने का साधु कार्य किया है। इको वारियर्स, एकांत पार्क, सच्ची श्रद्धांजलि एवं पेड़ और तालाब जैसी कहानियां प्रकृति के प्रति नागरिक कर्तव्यों का स्मरण कराती हैं। वत्सला अपनी कहानियों से बच्चों के मन में साहस भी पैदा करती दिखायी देती हैं। ‘साथी हाथ बढ़ाना’ हर उस बच्चे की कहानी है, जो स्कूल वैन की खिड़की से कुछ बच्चों की पीठ और कंधों पर कूड़ा-करकट बीनने वाले थैले लटके हुए देखकर सोचता है कि ये स्कूल से दूर क्यों हैं? ये कैसे पढ़-लिख सकते हैं। क्या इन्हें पढ़ाने की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं? स्वामी विवेकानंद ने अपने शिष्यों और गाँव-गाँव जानेवाले साधु-संतों से कहा था कि जो बच्चे विद्यालय तक नहीं आ सकते, तब हम शिक्षा को उन तक लेकर क्यों नहीं जा सकते हैं? किट्टू यही करती है, वह ऐसे बच्चों के पास जाती है, उनसे संवाद करती है और अपनी दोस्ती की डोर से उनकी दोस्ती किताबों से कराती है। कहानी का शीर्षक कहता है कि यदि हम सब अपने आसपास के चार-चार बच्चों को भी पढ़ाना शुरू कर दें, तो तस्वीर बदल सकती है। 

कहानी ‘दि ब्रांड’ उन सबको पढ़नी चाहिए, जो अपने परंपरागत व्यवसाय को छोटा मानकर कॉरपोरेट की नौकरी के लिए या कॉरपोरेट की नौकरी में जूते घिस रहे हैं। यह कहानी प्रेरणा देती है कि हम चाह लें तो अपने स्वदेशी उत्पाद को भी वैश्विक ‘ब्रांड’ में बदल सकते हैं। छोटे कार्य को बड़े कारोबार में बदल सकते हैं। हमें अपना दृष्टिकोण बड़ा करना चाहिए और किसी के काम को और उस काम को करने वाले व्यक्ति को छोटा नहीं समझना चाहिए।

‘सर्तकता ही बचाव’ में लेखिका ने मौजूदा समय के सबसे बड़े खतरे की ओर ध्यान आकर्षित किया है। नशे के कारोबारी जिस तरह स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों को नशे की अंधेरी खायी में धकेल रहे हैं, वह केवल इन बच्चों के लिए नहीं अपितु देश और समाज के लिए भी बड़ा खतरा है। अपने समय से संवाद करते हुए वत्सला किशोर लड़कियों को उस मानसिकता से भी सावधान करती हैं, जो सोशल मीडिया के जरिए लड़कियों को फंसाने और उनका शोषण करने के घिनौने अपराध को ‘सवाब’ का काम मान रहे हैं। संग्रह की पहली कहानी ‘किट्टू की नर्मदा यात्रा’ से लेकर प्रतिनिधि कहानी ‘वत्सला @2211’ तक हम समय के साथ यात्रा करते हैं। किट्टू से वत्सला तक की यात्रा। यह यात्रा सुखद भी है और गंभीर चिंतन भी देती है। 

वत्सला की लेखनी की विशेषता है कि वह बच्चों से लेकर बड़ों तक को कहानी के पहले सिरे से आखिरी छोर तक बांधे रखती है। भाषा में सहज प्रवाह है। छोटे वाक्य हैं। आम बोल-चाल की शब्दावली है। कहानियों के विषय पाठकों को अपने से लगते हैं। इसलिए कोई भी आसानी से इन कहानियों के साथ जुड़ जाता है। वत्सला का यह कहानी संग्रह साहित्य जगत में न केवल पढ़ा जा रहा है, अपितु वरिष्ठों का दुलार, आशीर्वाद और उनके हाथों सम्मानित भी हो रहा है। इसका प्रकाशन आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल ने किया है। मूल्य केवल 200 रुपये है। याद रखें, मूल्य केवल कागज और छपायी से संबंधित लागत का है। कहानियां तो बेशकीमती हैं। अमूल्य हैं।  

पुस्तक : वत्सला @2211

मूल्य : 200 रुपये (पेपरबैक)

पृष्ठ : 54

प्रकाशक : आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल