गुरुवार, 31 जुलाई 2025

डॉ. देवेन्द्र दीपक जी : जिन्होंने अपनी मेधा से राष्ट्रीयता के दीपक को प्रज्वलित रखा

श्री देवेन्द्र दीपक जी को प्रो. संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक 'लोगों का काम है कहना' भेंट करते लोकेन्द्र सिंह

वरिष्ठ साहित्यकार श्रद्धेय देवेंद्र दीपक जी का सुखद सान्निध्य प्राप्त हुआ। निमित्त बने युवा पत्रकार आयुष पंडाग्रे। आयुष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गीतों की पुस्तक देवेंद्र दीपक जी को भेंट करने के लिए जाने वाले थे, तब मैंने उनसे कहा कि "साथ चलते हैं। मुझे भी जाना है।" लगभग डेढ़ घंटे हम श्रद्धेय दीपक जी के पास रहे। घड़ी की सुइयों पर कौन ध्यान देता, हम तो बस उनको सुनते जा रहे थे। बाहर सावन की रिमझिम थी और भीतर नेह की बारिश। हम एक विरले साहित्यकार की बौद्धिक यात्रा में गोते लगा रहे थे। राष्ट्रीय विचार की पगडंडी पर उनके जीवन में जो संघर्ष आए, उनके समाधान कैसे निकाले, वह सब हमारे सामने आ रहा था। डॉ. दीपक जी ने काव्य विधा में अद्भुत काम किया है। हमें आठ पंक्ति की कविता लिखने में जोर लगाना पड़ना है, आपने कई काव्य नाटक लिखे हैं। नि:संदेह आप पर माँ सरस्वती की विशेष कृपा है। आपने अपनी मेधा राष्ट्रीय चेतना के जागरण में समर्पित की है। आप राष्ट्रीय धारा के यशस्वी साहित्यकारों की माला के चमकते मोती हैं।

शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

कविताओं से आती गाँव-माटी-अपनत्व की महक

पुस्तक चर्चा : ‘चलो! चलते हैं अपने गाँव’ (काव्य संग्रह)


मन की भाव-भूमि उर्वर होती है, तब उससे काव्यधारा बह निकलती है। कविता की महक बताती है कि वह किस वातावरण में पल्लवित हुई है। युवा कवि कृष्ण मुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ की कविताओं में गाँव, घर, समाज और देश के प्रति अपनत्व की खुशबू है। कर्तव्य का भाव है। अभिमान की अभिव्यक्ति है। उनके मन की पीड़ा भी कभी-कभी कविता का रूप धरकर प्रकट हुई है। कवि ने स्वयं माना है कि “गाँव-माटी, परम्पराएं, अपनापन और निश्छल मन मेरे हृदय तथा भावनाओं में बसता है। जो मेरी लेखनी को कागज के पन्नों में किसी न किसी रचना के रूप में उतारता रहता है”। जैसे अपने काव्य संग्रह ‘चलो! चलते हैं अपने गाँव’ की प्रतिनिधि कविता में अटल अपने गाँव को विविध रूपों में याद करते हैं। उन्हें गाँव की गलियां याद आती हैं, आँगन बुलाते हैं। गाँव का आध्यात्मिक वातावरण उनको राम की भक्ति से सरोबोर करता है। दादी-नानी के किस्से, अम्मा की लोरी, कक्कू की डांट, सब उन्हें अपने गाँव बुलाते हैं। अपनी इस कविता में जहाँ उन्होंने निर्दोष गाँव की उजली तस्वीर हमारी आँखों में उतारने की कोशिश की है, वहीं अपने काव्य संग्रह की आखिरी कविता ‘कोई लौटा दो- मेरा वही पुराना गाँव’ में वह गाँव के उस वातावरण को पुन: पाना चाहते हैं, जो गाँव को गाँव बनाता है। अपने गाँव, गाँव के बाशिदों एवं गाँव की प्रकृति को अटल ने अपनी कविताओं में खूब चित्रित किया है। अपनी लेखनी से वह अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अनथक प्रयास करते हैं और पाठकों को भी प्रेरित करते हैं कि वे भी अपनी जड़ों की ओर लौटें।

गुरुवार, 24 जुलाई 2025

उपराष्ट्रपति के त्याग-पत्र ये सियासी प्याली में आया तूफान

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के त्यागपत्र ने सियासी प्याली में तूफान ला दिया है। विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष तक उनके अचानक त्यागपत्र देने के निर्णय से आश्चर्यचकित है। त्यागपत्र के पीछे की वजह उन्होंने अपने स्वास्थ्य को बताया है, लेकिन उनकी इस बात पर कोई भी सहज विश्वास करने को तैयार नहीं है। राजनीतिक गलियारे से बाहर निकलकर देखते हैं तो सामाजिक क्षेत्र से विशिष्ट एवं आमजन भी हैरान है। दरअसल, उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ ने अपनी एक अलग छवि बनायी थी। उनकी अपनी विशिष्ट शैली थी। स्वभाव से विनम्र थे लेकिन अपनी बात को कहने में कभी कोई संकोच नहीं किया। विपक्ष के नेता उनसे इसलिए परेशान रहते थे क्योंकि सदन को नियमों से चलाने में वे कतई कोताही नहीं बरतते थे। विपक्ष को खरी-खरी सुनाने में और सत्ता पक्ष को चेतावनी देने का कार्य वे बराबर करते थे।

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

पाठ्यक्रम से साफ हुई कम्युनिस्टों की दूषित सोच

अब पढ़ाया जाएगा- भारत का सच्चा और संतुलित इतिहास


राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने अपनी पाठ्य पुस्तकों को संशोधित करने का बहुप्रतीक्षित काम किया है। देश में लंबे समय से यह बहस चल रही थी कि पाठ्य पुस्तकों में भारत का संतुलित इतिहास क्यों नहीं पढ़ाया जाता है? आखिर वह क्या सोच रही होगी जिसने भारतीय नायकों को इतिहास में न केवल सीमित स्थान दिया, अपितु उनको पराजित राजा की तरह ही प्रस्तुत किया? वहीं, भारत को लूटने के उद्देश्य से आए मुगल आक्रांताओं का न केवल महिमामंडन किया अपितु इतिहास की पुस्तकों में उन्हें सर्वाधिक स्थान देकर यह स्थापित करने का प्रयास किया कि मुगल काल ही भारत का वास्तविक इतिहास है। बौद्धिक चतुराई दिखाकर मुगलिया शासन की क्रूरताओं पर पर्दा डाल दिया गया। अब जबकि एनसीईआरटी ने भारत के इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने की दिशा में जनाकांक्षाओं के अनुरूप पहल की है, तब यही सोच विरोध कर रही है।

विपक्ष को चर्चा नहीं… हंगामा चाहिए

जैसा कि अपेक्षित था कि संसद के मानसून सत्र की शुरुआत में विपक्ष हंगामा करेगा, वही हुआ। विपक्ष का आरोप है कि सरकार चर्चा से भागती है, जबकि सरकार का कहना है कि वह हर प्रकार से चर्चा के लिए तैयार है। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? मानसून सत्र की शुरुआत होने से पहले ही हंगामा करना, यही संकेत देता है कि विपक्ष को चर्चा नहीं अपितु हंगामा चाहिए। दरअसल, विपक्ष की कोशिश है कि वह यह वातावरण बना दे कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर पर जवाब देने में असमर्थ है। इसलिए विपक्षी नेता अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के युद्ध विराम कराने के दावों की गिनती भी करते रहते हैं। उन्हें अपने देश की सेना और जिम्मेदार अधिकारियों पर विश्वास नहीं है। याद हो, भारतीय सेना स्पष्ट कह चुकी है कि पाकिस्तान की सेना की ओर से युद्ध विराम का प्रस्ताव आया था, जिसे भारतीय सेना ने इसलिए भी मान लिया क्योंकि हम जो चाहते थे, वह प्राप्त कर लिया था। लेकिन विपक्ष के नेताओं को ट्रंप के दावों पर विश्वास है, जो स्वयं ही अपनी बातों से कई बार पलट जाते हैं।

सोमवार, 21 जुलाई 2025

न्यायालय की सुने समाज- लव जिहाद के विरुद्ध भय और संकोच छोड़कर सच बोलना ही होगा

लव जिहाद की साजिश जिस तरह सामाजिक संरचना को चोट पहुँचा रही है, उसे देखकर अब न्यायालय भी चिंतित दिखायी देने लगा है। हरियाणा के एक प्रकरण में ‘लव जिहाद’ के दोषी मुस्लिम युवक को सजा सुनाते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट की न्यायमूर्ति रंजना अग्रवाल ने जो चिंता व्यक्त की है, उसे समाज के प्रबुद्ध वर्ग को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। लव जिहाद पर न्यायालय की चिंता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि “यह भी प्रामाणिक तथ्य है कि पिछले कई वर्षों से मुस्लिम पुरुष प्रेम के नाम पर भोली-भाली हिंदू लड़कियों को किसी न किसी तरह से बहकाकर उनसे विवाह कर लेते हैं और फिर इस्लाम में मतांतरित कर लेते हैं। यदि इस प्रक्रिया को उदार दृष्टिकोण अपनाकर जारी रहने दिया गया तो यह हमारे देश की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए खतरा बन जाएगा। यह मामला दर्शाता है कि हरियाणा में लव जिहाद एक वास्तविकता है”। न्यायालय की यह टिप्पणी उन सबको सुननी चाहिए, जो स्वयं को सेकुलर दिखाने के चक्कर में लव जिहाद की घटनाओं को स्वीकार ही नहीं करना चाहता है।

बुधवार, 16 जुलाई 2025

अमर्यादित नहीं हो सकती है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

जब हम विरोध, आलोचना और असहमति के वास्तविक स्वरूप को भूलते हैं तब हमारी अभिव्यक्ति घृणा और नफरत में बदल जाती है। मौजूदा समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय विचार के संगठनों एवं कार्यकर्ताओं पर टिप्पणी का स्वर ऐसा ही दिखायी पड़ रहा है, जो अमर्यादित है। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी ही अमर्यादित अभिव्यक्ति के मामलों की सुनवाई के दौरान बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं है, जिन पर हमें गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है। इस पर किसी प्रकार के बाहरी प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा। लेकिन यदि इसी प्रकार अमर्यादित लिखा-पढ़ी, बयानबाजी और कार्टूनबाजी जारी रही तब समाज में वैमनस्य और सांप्रदायिक तनाव को फैलने से रोकने के लिए कुछ न कुछ युक्तियुक्त प्रबंध करने ही पड़ेंगे। सोशल मीडिया के इस दौर में किसी को भी अमर्यादित और असीमित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती है। नागरिकों को भी समझना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की एक मर्यादा है, उसे लांघना किसी के भी हित में नहीं है। उचित होगा कि नागरिक समाज इस दिशा में गंभीरता से चिंतन करे। सर्वोच्च न्यायालय ने उचित ही कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल समाज में नफरत और विघटन को जन्म दे सकता है। इसलिए नागरिकों को चाहिए कि वे जिम्मेदारी से बोलें, संयम रखें और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें

मंगलवार, 15 जुलाई 2025

चुनाव आयोग के काम में दखल नहीं देने का उच्चतम न्यायालय का सराहनीय निर्णय

फर्जी मतदाताओं के बल पर लोकतंत्र को लूटने का सपना देखनेवालों को सर्वोच्च न्यायालय ने ढंग से संविधान का पाठ पढ़ाया है। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय की सीख उनके दिल-दिमाग में उतरेगी, इसकी संभावना कम ही है। क्योंकि वास्तव में यह लोग जागे हुए हैं, सोने का केवल अभिनय कर रहे हैं। जो सोने का अभिनय करे, उसे भला कौन जगा सकता है। इसलिए कभी मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाकर वितंडावाद खड़ा करते हैं तो कभी मतदाता सूची को व्यवस्थित किए जाने की प्रक्रिया का विरोध करते हैं। यह सब कवायद देश को गुमराह करने की है। अपने गिरेबां में झांकने की बजाय कभी चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर तो कभी ईवीएम पर तो कभी मतदाता सूची पर सवाल उठाना, अपरिपक्व राजनीति का प्रदर्शन है।

अपने कुतर्कों के आधार पर खड़े किए जाने वाले विमर्श के लिए विपक्षी दलों को हर बार मुंह की खानी पड़ी है। इस बार भी सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कह दिया कि मतदाता सूची के परीक्षण की चुनाव आयोग की प्रक्रिया को वह नहीं रोकेगा। बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कांग्रेस की सरकार के समय में यानी वर्ष 2003 में भी कराया जा चुका है। आखिर इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है कि चुनाव आयोग यह सुनिश्चित कर रहा है कि चुनाव में फर्जी मतदाता भाग न ले सकें? मतदाताओं के परीक्षण की प्रक्रिया का विरोध करनेवाले नेता एवं राजनीतिक दल क्या यह चाहते हैं कि चुनाव में फर्जी मतदान होना चाहिए? क्या उनकी मंशा है कि जिन घुसपैठियों ने चोरी-चालाकी से मतदाता सूची में नाम जुड़वा लिया है, उन्हें भारत के लोकतंत्र को प्रभावित करने का अवसर मिले?

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ से प्रदेश होगा जल-समृद्ध

जल संरक्षण को लेकर सामूहिक जिम्मेदारी का भाव जगाता है यह अभियान, निकट भविष्य में आएंगे प्रभावी परिणाम

जलाशय की सफाई करते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपने अभिनव प्रयोगों से अपनी विशेष पहचान बना रहे हैं। मध्यप्रदेश में जल संरक्षण के लिए प्रारंभ हुआ ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ मुख्यमंत्री डॉ. यादव की दूरदर्शी पहल है। निकट भविष्य में हमें इसके सुखद परिणाम दिखायी देंगे। शुभ प्रसंग पर शुभ संकल्प के साथ जब कोई कार्य प्रारंभ किया जाता है, तब उसकी सफलता के लिए प्रकृति एवं ईश्वर भी सहयोग करते हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर मध्यप्रदेश सरकार ने गुड़ी पड़वा (30 मार्च) से 30 जून तक प्रदेश स्तरीय ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ चलाकर जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जो जनांदोलन में परिवर्तित हो गया। सरकार को भी विश्वास नहीं रहा होगा कि जल संरक्षण जैसे मुद्दे को जनता का इतना अधिक समर्थन मिलेगा कि सरकारी अभियान असरकारी बन जाएगा और समाज इस अभियान को अपनी जिम्मेदारी के तौर पर स्वीकार कर लेगा। ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ के अंतर्गत और इससे प्रेरित होकर प्रदेश में अनेक स्थानों पर जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया गया, उनको व्यवस्थिति किया गया और वर्षा जल को एकत्र करने की रचनाएं बनायी गईं। कहना होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल और प्रतिबद्धता ने  जल संरक्षण के इस अभियान को एक जनांदोलन का रूप दे दिया है, जिससे जल संरक्षण में अभूतपूर्व प्रगति हुई है।

जिहादियों के निशाने पर भारत और हिन्दू

 कन्वर्जन के नेटवर्क का एक छोटा-सा प्यादा है जमालुद्दीन उर्फ छांगुर

भारत को ‘गजवा-ए-हिंद’ बनाने और ‘लव जिहाद’ की साजिशें केवल गल्प नहीं है, बल्कि हिन्दू धर्म और भारत के लिए इन्हें बड़े खतरे के तौर पर देखा जाना चाहिए। ‘गजवा-ए-हिंद’ और ‘लव जिहाद’ की अवधारणाओं को नकारना एक प्रकार से सच्चाई से मुंह मोड़ना है। यह आत्मघाती प्रवृत्ति है। सच को स्वीकार करके उसका समाधान निकालने का प्रयत्न करना ही एक जागृत समाज की पहचान है। भारत में प्रतिदिन ही इस प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे यह स्थापित होता है कि लव जिहाद और गजवा-ए-हिंद के पीछे बड़े कट्टरपंथी गिरोह शामिल हैं। उत्तरप्रदेश में पकड़ा गया बहुस्तरीय कन्वर्जन का नेटवर्क चलानेवाला फेरीवाला जमालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा, इस व्यापक नेटवर्क का एक प्यादा भर है। अभी हाल ही में हिन्दू लड़कियों से लव जिहाद के लिए मुस्लिम लड़कों की फंडिंग करने के आरोप कांग्रेस के मुस्लिम नेता एवं पार्षद अनवर कादरी पर लगे हैं। जरा सोचकर देखिए कि भारत में हिन्दुओं को कर्न्वट करने का धंधा कितने बड़े पैमाने पर चल रहा है।

हिन्दुओं को कन्वर्ट करने के इस खेल में केवल इस्लामिक संस्थाएं ही नहीं है अपितु चर्च भी शामिल है। पूर्वोत्तर के राज्यों में चर्च ने अपने पैर किस तरह फैलाए हैं, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है। जनजातीय क्षेत्रों में चर्च व्यापक स्तर पर कन्वर्जन का धंधा चला रहा है। चर्च ने पंजाब को अपना हॉट स्पॉट बना रखा है। पंजाब के कितने ही गाँव ईसाई बन गए हैं। इसकी अनेक कहानियां बिखरी पड़ी हैं। हिन्दुओं को कन्वर्ट करने के लिए इस्लामिक संस्थाओं और मिशनरीज को बड़े पैमाने पर विदेशों से फंडिंग होती है। छांगुर बाबा की गिरफ्तारी के बाद हो रहे खुलासों में यह सब सामने आ रहा है। केवल 5-6 साल में ही कन्वर्जन का धंधा फैलाकर साइकिल पर सामान बेचनेवाला फेरीवाला जमालुद्दीन ने छांगुर बाबा बनकर आलीशान कोठी, लग्जरी गाड़ियों और कई फर्जी संस्थाओं का मालिक बन गया है। जांच एजेंसियों के अनुसार, जमालुद्दीन खुद को हाजी पीर जलालुद्दीन बताता था। लड़कियों को बहला-फुसलाकर जबरन उनका धर्मांतरण करवाता।

सोमवार, 7 जुलाई 2025

हिन्दी-मराठी को लड़ाने की राजनीति

अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए नेता किस हद तक उतर आते हैं, यह देखना है तो महाराष्ट्र की राजनीति में चल रही हलचल पर नजर जमा लीजिए। मराठी अस्मिता के नाम पर हिन्दी का विरोध करते हुए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों 20 वर्ष बाद एक मंच पर आ गए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) यह प्रयोग पहले भी कर चुकी है, उस समय भी हिन्दी प्रदेश के लोगों को परेशान करना और उनके साथ मारपीट करना, ठाकरे एंड कंपनी का धंधा हो गया था। लेकिन बाद में शिवसेना के शीर्ष नेताओं को समझ आया कि हिन्दी का विरोध करके उनकी राजनीति सिमट रही है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता का स्वभाव इस प्रकार का नहीं है। कहना होगा कि हिन्दी के विस्तार में महाराष्ट्र की बड़ी भूमिका रही है। चाहे वह भारतीय फिल्म उद्योग हो, जिसने देश में ही नहीं अपितु दुनिया में हिन्दी का विस्तार किया या फिर साहित्य एवं राजनीतिक नेतृत्व रहा हो। महाराष्ट्र की जमीन ऐसी नहीं रही, जिसने भाषायी विवाद का पोषण किया हो। इस प्रकार की राजनीति के लिए वहाँ कतई जगह नहीं है। ठाकरे बंधु मराठी अस्मिता के नाम पर जितना अधिक हिन्दी भाषी बंधुओं को परेशान करेंगे, उतना ही अधिक वह और उनकी राजनीति अप्रासंगिक होती जाएगी।

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

हमारे आसपास की जरूरी कहानियां, जो जीवन सिखाती हैं

17 साल की लेखिका की 13 चुनी हुई कहानियां – वत्सला@2211


अपने पहले ही कहानी संग्रह ‘वत्सला @2211’ के माध्यम से 17 वर्षीय लेखिका वत्सला चौबे ने साहित्य जगत में एक जिम्मेदार साहित्यकार के रूप में अपनी कोमल उपस्थिति दर्ज करायी है। उनके इस कहानी संग्रह में 13 चुनी हुई कहानियां हैं, जो हमें कल्पना लोक के गोते लगवाती हुईं, कठोर यथार्थ से भी परिचित कराती हैं। सुधरने और संभलने का संदेश देती हैं। बाल कहानियों की अपनी दुनिया है, जिसमें बच्चे ही नहीं अपितु बड़े भी आनंद के साथ खो जाते हैं। यदि ये बाल कहानियां किसी बालमन ने ही बुनी हो, तब तो मिथुन दा के अंदाज में कहना ही पड़ेगा- क्या बात, क्या बात, क्या बात। बहुत दिनों बाद बाल कहानियां पढ़ने का अवसर मिला। एक से एक बेहतरीन कहानियां, जिनमें अपने समय के साथ संवाद है। अतीत की बुनियाद पर भविष्य के सुनहरे सपने भी आँखों में पल रहे हैं। एक किशोर वय की लेखिका ने अपने आस-पास की दुनिया से घटनाक्रमों को चुना और उन्हें कहानियों में ढालकर हमारे सामने प्रस्तुत किया है। इन कहानियों में मानवीय संवेदनाएं हैं। सामाजिक परिवेश के प्रति जागरूकता है। अपने कर्तव्यों के निर्वहन की ललक है। अपनी जिम्मेदारियों का भान है। संग्रह के प्राक्कथन में वरिष्ठ संपादक गिरीश उपाध्याय ने उचित ही लिखा है- “ये कहानियां भले ही एक बच्ची की हों, लेकिन इनमें बड़ों के लिए या बड़े-बड़ों के लिए बहुत सारे संदेश, बहुत सारी सीख छिपी हैं, बशर्ते हम उन्हें समझने की और महसूस करने की कोशिश करें”।