सोमवार, 21 जुलाई 2025

न्यायालय की सुने समाज- लव जिहाद के विरुद्ध भय और संकोच छोड़कर सच बोलना ही होगा

लव जिहाद की साजिश जिस तरह सामाजिक संरचना को चोट पहुँचा रही है, उसे देखकर अब न्यायालय भी चिंतित दिखायी देने लगा है। हरियाणा के एक प्रकरण में ‘लव जिहाद’ के दोषी मुस्लिम युवक को सजा सुनाते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट की न्यायमूर्ति रंजना अग्रवाल ने जो चिंता व्यक्त की है, उसे समाज के प्रबुद्ध वर्ग को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। लव जिहाद पर न्यायालय की चिंता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि “यह भी प्रामाणिक तथ्य है कि पिछले कई वर्षों से मुस्लिम पुरुष प्रेम के नाम पर भोली-भाली हिंदू लड़कियों को किसी न किसी तरह से बहकाकर उनसे विवाह कर लेते हैं और फिर इस्लाम में मतांतरित कर लेते हैं। यदि इस प्रक्रिया को उदार दृष्टिकोण अपनाकर जारी रहने दिया गया तो यह हमारे देश की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए खतरा बन जाएगा। यह मामला दर्शाता है कि हरियाणा में लव जिहाद एक वास्तविकता है”। न्यायालय की यह टिप्पणी उन सबको सुननी चाहिए, जो स्वयं को सेकुलर दिखाने के चक्कर में लव जिहाद की घटनाओं को स्वीकार ही नहीं करना चाहता है। 

शायद ही कोई दिन जाता हो, जब देश के किसी न किसी कोने से लव जिहाद के समाचार सामने न आते हों। लव जिहाद के पीछे कितनी बड़ी साजिश और नेटवर्क है, इसका संकेत हमें उत्तरप्रदेश से पकड़े गए छांगुर मौलाना प्रकरण से ही ध्यान आ जाना चाहिए। यह हिन्दू समाज के लिए सजग होने का अवसर है। समाज को यह भी देखना चाहिए कि छांगुर के प्रकरण के सामने आने के बाद भी कई लोगों, समूहों एवं राजनीतिक दलों ने बेशर्म चुप्पी साध रखी है। बात-बेबात हिन्दू समाज को निशाना बनानेवाले ये लोग हिन्दुओं के खिलाफ इतनी बड़ी साजिश पर भी चुप रह जाते हैं। इसके गहरे निहितार्थ हैं, जिन्हें हिन्दू समाज को समझना चाहिए। 

कई बार हम लोग ऐसे मुद्दों पर इसलिए भी बात नहीं करते हैं कि समाज में द्वेष न बढ़ जाए। कई बार यह डर भी रहता है कि अपराधि हमें ही निशाना न बना ले क्योंकि लव जिहाद की साजिश में शामिल लोग सज्जन तो हैं नहीं, आपराधिक प्रवृत्ति के ही हैं। याद रखें कि हम भले ही आज उनके निशाने पर नहीं हैं। लेकिन उनकी साजिश के दायरे में हम आज नहीं तो कल आ ही जाएंगे। भविष्य में यह आग हमारे घर तक न पहुँचे इसलिए हमें आज ही मुखर होना होगा। हमारे इस संकोच और डर को लेकर भी न्यायालय ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति रंजना अग्रवाल साफ कहती हैं कि समाज को यह संकोच और डर छोड़कर सच बोलना ही होगा। वह कहती हैं- “हम किसी ऐसी चीज के अस्तित्व को नकार नहीं सकते, जो देश को नष्ट कर देगी। कभी-कभी हम सच नहीं बोलते, क्योंकि समाज में संतुलन बिगड़ना नहीं चाहते। लेकिन, सच तो बोलना ही होगा, भले ही डरना भी क्यों न हो। सच तो यह है कि हरियाणा राज्य में लव जिहाद का आंदोलन चल रहा है। इसमें शामिल लोग एक खास एजेंडे के तहत काम कर रहे हैं। यह चिंता का विषय है”। 

लव जिहाद के विरुद्ध आवाज बुलंद करने और डटकर खड़े होने का यह एक नैतिक आह्वान न्यायालय की ओर से आया है, जो समाज को आत्ममंथन करने के लिए भी प्रेरित करता है। एक सुनियोजित साजिश के तहत युवतियों को प्रेमजाल में फंसाकर, उनकी धार्मिक आस्था को तोड़ा जा रहा है, उनका जीवन बर्बाद किया जा रहा है। क्या हम इसी प्रकार हिन्दू युवतियों को जिहादियों का शिकार होते देखते रहेंगे? या फिर सामाजिक जिम्मेदारी को निभाने के लिए अपना भय और संकोच छोड़कर आगे आएंगे। चिंता की बात इसलिए भी है क्योंकि हिन्दू समाज के विरुद्ध यह साजिश व्यक्तिगत स्तर पर नहीं चल रही है, बल्कि एक सुनियोजित आंदोलन में परिवर्तित हो चुकी है। हिन्दू युवतियों को फंसाना मुस्लिम लड़कों के लिए सवाब का काम हो गया है। मुस्लिम लड़के लव जिहाद को अपना धार्मिक दायित्व मानकर इस ‘आंदोलन’ में बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं। इसलिए न्यायालय को कहना पड़ा है कि “लव जिहाद अब एक आंदोलन बन चुका है”। 

जब न्यायालय जैसी संस्था यह स्वीकार करती है, तो समाज को चुप नहीं बैठना चाहिए। यह चेतावनी है, सच्चाई है और परिवर्तन की पुकार भी। याद रहे कि यह पहली बार नहीं है जब न्यायालय ने लव जिहाद को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है। इससे पहले भी न्यायालय इस घिनौने अपराध पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। हम ही हैं जो इतना जगाने के बाद भी सोये पड़े हैं। स्मरण रखें कि न्यायालय ने ही सबसे पहले ‘लव जिहाद’ शब्द की अवधारणा को स्पष्ट किया था। केरल हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति केटी शंकरन ने पहली बार लव जिहाद शब्द का उपयोग किया और इस पर चिंता जताई थी। अभी हाल ही में ‘द केरल स्टोरी’ नाम से एक फिल्म भी आई थी, जिसने लव जिहाद के घिनौने, क्रूर और खतरनाक चेहरे को एकसाथ उजागर किया था।

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