उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के त्यागपत्र ने सियासी प्याली में तूफान ला दिया है। विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष तक उनके अचानक त्यागपत्र देने के निर्णय से आश्चर्यचकित है। त्यागपत्र के पीछे की वजह उन्होंने अपने स्वास्थ्य को बताया है, लेकिन उनकी इस बात पर कोई भी सहज विश्वास करने को तैयार नहीं है। राजनीतिक गलियारे से बाहर निकलकर देखते हैं तो सामाजिक क्षेत्र से विशिष्ट एवं आमजन भी हैरान है। दरअसल, उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ ने अपनी एक अलग छवि बनायी थी। उनकी अपनी विशिष्ट शैली थी। स्वभाव से विनम्र थे लेकिन अपनी बात को कहने में कभी कोई संकोच नहीं किया। विपक्ष के नेता उनसे इसलिए परेशान रहते थे क्योंकि सदन को नियमों से चलाने में वे कतई कोताही नहीं बरतते थे। विपक्ष को खरी-खरी सुनाने में और सत्ता पक्ष को चेतावनी देने का कार्य वे बराबर करते थे।
आज भले ही विपक्षी नेता उनके प्रति हमदर्दी दिखाकर किसान और जाट राजनीति को साधने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सत्य यही है कि विपक्ष ने उन्हें अनेक अवसर पर आहत किया। उनके विनम्र स्वभाव को ‘बिना रीढ़ का व्यक्ति’ के तौर पर प्रचारित किया गया। उन पर आरोप लगाए गए कि वे विपक्ष को बोलने का अवसर नहीं देते हैं। यहाँ तक कि विपक्षी राजनीतिक दलों के दिग्गज नेताओं ने संसद परिसर में उनका उपहास उड़ाने के लिए मिमिक्री करके नैतिक मर्यादा को भी तार-तार किया।
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की मिमिक्री करके उनका उपहास उड़ाते विपक्षी दल के नेता |
उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ के लिए जो अचानक यह कहने लगे हैं कि “वे नियमों के पक्के थे और सदन को नियमों के अनुसार ही चलाते थे”। वही, विपक्षी दल यह कहकर उन्हें पद से हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाए थे कि “सभापति राज्यसभा की कार्यवाही जिस पक्षपातपूर्ण तरीके से संचालित कर रहे हैं, उसे देखते हुए विपक्षी गठबंधन से जुड़े सभी दलों के पास उनके खिलाफ औपचारिक रूप से अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है”। याद हो कि 10 दिसंबर, 2024 को कांग्रेस सहित विपक्षी दलों के सांसदों ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव दिया था। स्वतंत्र भारत में यह पहली बार था जब किसी किसी उपराष्ट्रपति के खिलाफ सदन में महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था। सब जानते थे कि विपक्ष का यह अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिरना था, हुआ भी वही। दरअसल, अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य केवल यही था कि जनता के बीच में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की प्रतिष्ठा को संदिग्ध बनाया जाए। हालांकि, उनकी छवि खराब करने के सभी विपक्षी हथकंड़ों को जनता ने अस्वीकार किया और एक मुखर उपराष्ट्रपति के रूप में उनका खूब सम्मान किया।
विपक्ष के कुछ नेता जिस प्रकार से उपराष्ट्रपति पद से त्यागपत्र देने के इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के पीछे साजिश देखने या श्री धनखड़ के अपमान की कहानी गढ़ने का प्रयास कर रहे हैं, वह भी उनकी पुरानी सोच को ही प्रकट कर रहा है। हालांकि ज्यादातर विपक्षी नेता एवं उनके समर्थक बुद्धिजीवी एवं सोशल मीडिया एक्टिविस्ट बहुत ही घटिया टिप्पणियां श्री धनखड़ के लिए व्यक्त कर रहें, जो इस बात की साक्षी हैं कि कुछ नेताओं ने असहमत राजनेताओं के प्रति एक नकारात्मक वातावरण बना दिया है।
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ विपक्ष के निशाने पर इसलिए भी रहते थे क्योंकि वे मुखरता के साथ अपने विचारों को प्रकट करते थे। जब पश्चिम बंगाल में वे राज्यपाल थे तब वहाँ की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से उनकी खटपट होती ही रहती थी क्योंकि श्री धनखड़ संविधान के विरुद्ध चलनेवाली गतिविधियों पर बिना संकोच आपत्ति जताते थे।
याद हो कि जब विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर झूठे आरोप लगाने चाहे तब उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ ने विपक्षी सांसद को वहीं टोक दिया और उनकी टिप्प्णी को रिकॉर्ड से हटाने के निर्देश दिए। उसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रशंसा करके विपक्षी दलों को आईना दिखाने का काम भी किया। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आसंदी से कहा कि "आरएसएस ऐसा संगठन है, जिसके पास इस राष्ट्र की विकास यात्रा में भाग लेने का पूरा संवैधानिक अधिकार है। संघ की साख बेदाग है और राष्ट्र सेवा के काम कर रहा है। इसमें शामिल लोग निस्वार्थ भाव से राष्ट्र की सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आरएसएस राष्ट्रीय कल्याण और संस्कृति के लिए योगदान दे रहा है। हर किसी को ऐसे संगठन पर गर्व करना चाहिए"। उपराष्ट्रपति द्वारा आरएसएस की प्रशंसा करना विपक्ष के नेताओं को कतई अच्छा नहीं लगा था।
उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने सदन में दमदारी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पक्ष लिया। उन्होंने @RSSorg को उल्टा-पुल्टा बोलने वालों की बत्ती गुल कर दी। #RSS #RSS4Nation pic.twitter.com/eRZdDeGmhf
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) July 31, 2024
बहरहाल, कुछ लोग भाजपा और उसके शीर्ष नेताओं से नाराजगी वाली कहानी सुना रहे हैं। कहा जा रहा है कि सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच अहम का टकराव हुआ। अगर नाराजगी होती तो तुरंत राष्ट्रपति उनका त्यागपत्र स्वीकार नहीं करती। पहले उन्हें मनाने की कोशिश की जाती। खैर, जब तक त्यागपत्र के पीछे की वास्तविकता नहीं आ जाती है, तब तक हमें श्री धनखड़ की बात को ही सच मानना चाहिए और उनके निर्णय का सम्मान करना चाहिए। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उन्होंने प्रभावी ढंग से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया।
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