प्राचीन काल में हिन्दू राष्ट्र रहे अफगानिस्तान में अब हिन्दू समुदाय बदहाली के दौर से गुजर रहा है। उनका जीवन आतंकवाद और खौफ के बीच बीत रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक आतंकवाद, सांप्रदायिक हमले और धर्मांतरण के कारण पिछले 24 साल में अफगानिस्तान में हिन्दुओं की आबादी में दो लाख से अधिक कमी आई है। मौजूदा समय में वहाँ 220 से भी कम हिन्दू परिवार बचे हैं। मुस्लिम बहुल इस देश में हिन्दुओं की स्थिति दुनिया के सामने गंभीर प्रश्न खड़े करती है। क्या कारण रहे हैं कि गांधारी के देश में आज अंगुली पर गिनने लायक हिन्दू बचे हैं? जिस देश में कभी हिन्दूशाही रही, सन् 843 ईस्वी में कल्लार राजा तक हिन्दू राजाओं का शासन रहा, वहाँ आज हिन्दू पददलित क्यों हैं? 17वीं सदी तक अफगानिस्तान अलग देश नहीं था बल्कि हिन्दुस्थान का ही हिस्सा था, उसी भूमि पर हिन्दुओं के सामने विकट परिस्थितियां कैसे आ खड़ी हुईं?
सोमवार, 27 जून 2016
रविवार, 26 जून 2016
आतंक का अंत कब?
जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले के पांपोर में आतंकवादियों की ओर से घात लगाकर किए गए हमले में सीआरपीएफ के आठ जवानों की शहादत बहुत बड़ी क्षति है। यह हमला न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि चिंताजनक भी है। आखिर कब तक आतंकी भारत को इस तरह लहूलुहान करते रहेंगे? रह रहकर होने वाले इन आतंकी हमलों में भारत माता के अनेक लाल असमय ही काल के गाल में समा जाते हैं। क्या कभी हमने विचार किया है कि इन आतंकी हमलों में हमने कितने जवान खोए हैं? आखिर आतंक का अंत कब होगा? क्यों नहीं आतंक के समूल नाश के लिए आरपार की लड़ाई की पुख्ता योजना बनाई जाती? यदि हम वैश्विक मंच पर अपने देश की छवि एक शक्तिशाली राष्ट्र के तौर पर बनाना चाहते हैं तब हमें इन आतंकी हमलों को रोकना होगा।
शनिवार, 25 जून 2016
नियुक्ति और विदाई पर हंगामा क्यों?
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के दूसरे कार्यकाल को लेकर बेवजह का हंगामा किया जा रहा है। स्वयं राजन ने यह घोषणा की है कि वह अपने दूसरे कार्यकाल के लिए इच्छुक नहीं हैं। वह अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद 'विदेश' में शिक्षण कार्य करना पसंद करेंगे। राजन की इस घोषणा के बाद विपक्षी दलों सहित तथाकथित अनेक बुद्धिजीवियों और स्वयं-भू आर्थिक विशेषज्ञों की चीख-पुकार शुरू हो गई है। शायद ही इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की नियुक्ति या विदाई पर इस तरह का माहौल बना हो। दरअसल, यह विवाद भाजपा और मोदी विरोध की उपज है। पिछले दो वर्षों से देखने में आ रहा है कि न केवल विपक्षी दल बल्कि तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी, साहित्यकार और कलाकार भी सरकार की ओर से की गई प्रत्येक नियुक्ति पर नुक्ता-चीनी करने लगे हैं। सामान्य नियुक्तियों पर भी इतना हंगामा खड़ा किया जाता है कि सहज प्रक्रिया विवादित हो जाती है। वरना, क्या इससे पहले सभी गवर्नरों को दो-दो कार्यकाल दिए गए हैं?
शुक्रवार, 24 जून 2016
इसरो ने बढ़ाया मान
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक साथ 20 उपग्रह भेजकर अंतरिक्ष में भारत की धाक जमा दी है। अंतरिक्ष में एक साथ 20 या उससे अधिक उपग्रह भेजने के मामले में रूस (33) और अमेरिका (29) ही हमसे आगे हैं। हमारे वैज्ञानिकों की मेहनत को देखते हुए प्रतीत होता है कि वह दिन दूर नहीं जब हम सबसे आगे होंगे। आठ साल के भीतर ही इसरो ने एक साथ 10 उपग्रह भेजने के अपने कीर्तिमान को पीछे छोड़कर भी इस बात के संकेत दिए हैं। भारतीय वैज्ञानिकों ने हम सबको अपनी छाती चौड़ी करके चलने का अवसर दिया है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका जैसा उन्नत देश भी अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने के लिए भारत की सेवाएं ले रहा है। बुधवार को अंतरिक्ष में भेजे गए 20 उपग्रहों में से 13 अमेरिका के, दो कनाडा के, जर्मनी और इंडोनेशिया का एक-एक और भारत के तीन उपग्रह थे। इनमें से एक उपग्रह गूगल जैसी बड़ी कंपनी का भी है। इसका मतलब यह है कि भारत की क्षमता पर दुनिया भरोसा दिखा रही है। उपग्रह भेजने में भारत की सफलता दर 93 प्रतिशत है।
गुरुवार, 23 जून 2016
कौन हैं आतंकियों के पनाहगार?
पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के घाव अभी सूख भी नहीं पाए हैं कि नये जख्मों की आशंका जताई जाने लगी है। गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने सरकार को जानकारी दी है कि पठानकोट एयरबेस के आसपास गाँवों में आतंकवादी छिपे हुए हैं और वे एयरबेस पर फिर से हमला कर सकते हैं। समिति से प्राप्त सूचना के बाद सरकार ने सीआरपीएफ, बीएसएफ और सेना को सतर्क कर दिया है। पठानकोट एयरबेस की सुरक्षा भी बढ़ा दी है। केन्द्र सरकार को समिति की सूचनाओं और सिफारिशों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। दुर्भाग्य से यदि इस बार आतंकवादी पठानकोट एयरबेस या उसके आसपास कहीं भी विस्फोट करने के अपने मंसूबों में सफल हो जाते हैं, तब यह सरकार की बहुत बड़ी नाकामी होगी। सरकार की क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न खड़े होंगे ही। सवाल यह भी किया जाएगा कि आखिर पठानकोट हमले के बाद व्यापक स्तर पर चलाए गए सर्च अभियान के बाद भी यह आतंकी बचे कैसे रह गए? आतंरिक सुरक्षा को लेकर गृह मंत्रालय कहाँ चूक कर रहा है? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पठानकोट हमला सुरक्षा बलों की चूक और लापरवाही का ही नतीजा था। आतंकियों की घुसपैठ की सूचना और पुलिस अधीक्षक के अपहरण की घटना को गृह मंत्रालय ने गंभीरता से नहीं लिया था।
बुधवार, 22 जून 2016
भारत बन गया विश्व'योग'गुरु
अतंरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर दुनिया ने बाँहें फैलाकर भारत के ज्ञान का सुख लिया। विश्व के 192 देशों में द्वितीय अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। 21 जून को दुनियाभर में लोगों ने धरती पर माथा टेकते हुए और सूर्य को नमस्कार करते हुए भारत की तकरीबन पाँच हजार साल पुरानी योग परंपरा को अंगीकर किया। भारत की योग विद्या पहले से ही दुनिया को आकर्षित करती रही है। लेकिन, प्रथम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस से द्वितीय अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अंतराल में योग अभूतपूर्व ढंग से लोकप्रिय हुआ है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों से बीते दो वर्षों में भारत विश्व के लिए योग गुरु बन गया है। चंडीगढ़ में आयोजित मुख्य कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि योग एक बहुत बड़े कारोबार के रूप में भी विकसित हो रहा है। दुनिया के हर देश में योग प्रशिक्षकों की जरूरत है। निश्चित ही विश्व की यह माँग भारत बेहतर तरीके से पूरी कर सकता है। भारतीय युवाओं के लिए योग ने करियर की नई राह खोल दी है। हालाँकि भारतीय दर्शन योग को कारोबार नहीं मानता, बल्कि योग तो जीवनशैली का एक हिस्सा है। लेकिन, वर्तमान समय में यदि योग किसी के रोजगार में सहायक हो सकता है, तब यह आनंद का विषय होना चाहिए।
मंगलवार, 21 जून 2016
योगमय दुनिया
अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर दुनिया में भारत के ज्ञान-विज्ञान का परचम फहरेगा। एक बार फिर दुनिया भारतीय संस्कृति के रंग में रंगी दिखाई देगी। 21 जून को विश्व योगमय हो जाएगा। आनंद के साथ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने के लिए भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में तैयारियां चल रही हैं। प्रत्येक भारतीय को गर्व होना चाहिए कि योग और आयुर्वेद भारत की ओर से समूचे मानव समाज के लिए श्रेष्ठ उपहार हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा कि विशेषता है कि चर-अचर के हित के किसी भी प्रकार ज्ञान को हमने रोककर नहीं रखा, उसको बांधकर नहीं रखा, उसे दुनिया से छिपाया नहीं, बल्कि दुनिया उसे दुनिया में फैलाया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका यात्रा के दौरान इस बात को कहा भी कि भारत ने कभी योग के पेटेंट के लिए प्रयास नहीं किया है। दरअसल, भारत के मनीषी समूची सृष्टि को ध्यान में रखकर चिंतन और सृजन करते थे। भारतीय चिंतन परंपरा ने सदैव विश्व को एक परिवार की तरह देखा है। अपने इसी व्यापक दृष्टिकोण के कारण हमने कभी मानव कल्याण के ज्ञान-विज्ञान पर अपना एकाधिकार नहीं थोपा।
सोमवार, 20 जून 2016
नारी शक्ति का परचम
धीरे -धीरे ही सही महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। आज वह कौन-सा क्षेत्र है, जहाँ नारियों ने विशेष उपलब्धि अर्जित नहीं की हो? शिक्षा, सेवा, बैंकिग, व्यवसाय, कला, राजनीति, रक्षा और विज्ञान जैसे तमाम क्षेत्रों में महिलाओं ने न केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है बल्कि अपनी उपस्थिति को मजबूत भी किया है। भारतीय वायुसेवा में पहली बार तीन महिला सैनिकों ने फाइटर पायलट का कमीशन हासिल करके संदेश दिया है कि वे कहीं भी पीछे नहीं रहेंगी। समूची धरा को नापेंगी, समुद्र को लांघेंगी और आसमान की ऊंचाई को छू लेंगी। महिलाएं दशों दिशाओं में जाएंगी और अपनी खुशबू बिखेरेंगी। अब उनके हौसले के सामने कुछ भी असंभव नहीं है। वाकई यह महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
शनिवार, 18 जून 2016
स्कूल चलें हम : सब पढ़ें, सब बढ़ें
प्रत्येक सरकार का प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए कि वह प्रत्येक व्यक्ति को गुणवत्ता युक्त शिक्षा उपलब्ध कराए। किसी भी राज्य/देश के नागरिक सरकार से बुनियादी जरूरतों में रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ गुणवत्ता युक्त शिक्षा और स्वास्थ्य भी चाहते हैं। बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि उनके लिए शिक्षा सबसे पहली बुनियादी जरूरत होनी चाहिए। शिक्षा न केवल व्यक्ति के विकास में सहायक होती है, बल्कि संस्कारित समाज के निर्माण के लिए भी जरूरी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी भी देश की तरक्की में उसके शिक्षित नागरिकों की अहम हिस्सेदारी होती है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश सरकार ने अपने राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षित करने का संकल्प लिया है। अपने संकल्प की पूर्ति के लिए सरकार राज्य में 'स्कूल चलें हम' अभियान का संचालन करती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं इस अभियान का नेतृत्व करते हैं इसलिए अपेक्षित परिणाम भी प्राप्त हो रहे हैं।
गुरुवार, 16 जून 2016
कहाँ गई 'आप'की नैतिकता?
दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविन्द केजरीवाल अपने 21 विधायकों को लाभ का पद दिलाने के मामले में बुरी तरह फंस गए हैं। साफगोई से अपनी गलती स्वीकारने की जगह मुख्यमंत्री केजरीवाल हमेशा की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हमलावर हो गए। यही नहीं, इस बार तो उन्होंने हद ही कर दी है, अपने राजनीतिक भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए उन्होंने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी निशाना बना लिया। संभवत: मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल स्वयं को सभी संवैधानिक संस्थाओं और नियम-कायदों से ऊपर मानते हैं। अरविन्द केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन की उपज हैं। सबसे पहले तो उन्होंने राजनीति में नहीं आने की कसम खाई थी। लेकिन, बाद में वह अपनी बात से पलट गए और राजनीति के नये पैमाने तय करने के लिए आम आदमी पार्टी बनाकर मैदान में आ गए। अब तक के उनके राजनीतिक करियर को देखकर सामान्य आदमी भी बता सकता है कि केजरीवाल ने राजनीति में शुचिता की कोई नई लकीर नहीं खींची है। बल्कि, उन्होंने एक अजीब किस्म की राजनीति को जन्म दिया है। अपने अपराध पर पर्दा डालने के लिए वह खुद को पीडि़त बताते हुए दूसरों पर हमलावर हो जाते हैं। उनके नेताओं-मंत्रियों पर आपराधिक और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन उन्होंने ठोस संदेश देने वाली कोई कार्रवाई नहीं की। केजरीवाल के भरोसेमंद और दिल्ली सरकार के परिवहन मंत्री गोपाल राय पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा है। हालांकि उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है, लेकिन इस्तीफे का कारण बनाया है बीमारी को।
बुधवार, 15 जून 2016
प्रधानमंत्री के सात सूत्र
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शुद्ध आचरण के लिए सात सूत्र दिए हैं- सेवाभाव, संतुलन, संयम, समन्वयन, सकारात्मकता, संवेदना और संवाद। असल में देखा जाए तो सार्वजनिक जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इन सात सूत्रों का पालन करना चाहिए। यह सात सूत्र राजनीति के मूल सूत्र और उद्देश्य भी हैं। सार्वजनिक तौर पर प्रत्येक बड़ा नेता यह ही कहते पाया जाता है कि जनता की सेवा करने और उसकी आवाज को शासन तक पहुंचाने के लिए उसने राजनीति को चुना है। भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया का इतिहास भी इसका गवाह है कि अनेक लोगों ने सकारात्मक बदलाव लाने के लिए राजनीति को माध्यम बनाया है। जिस व्यक्ति ने उक्त सात सूत्रों का अपनी राजनीति में पालन किया है, वह प्रभावशाली राजनेता साबित हुआ है। यह भी हकीकत है कि यदि किसी राजनेता ने इनमें से एक भी सूत्र की अनदेखी की है, तब उसका खामियाजा न केवल उसे उठाना पड़ता है बल्कि पार्टी, सरकार और मुखिया को भी काफी-कुछ नुकसान पहुंचा है। कार्यकर्ताओं और नेताओं के व्यवहार से ही पार्टी की साख बढ़ती है। इस बात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बखूबी समझते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी अपने मंत्रियों, सांसदों और पार्टी कार्यकर्ताओं को बार-बार ताकीद करते हैं कि जनता के साथ संवाद कायम करो। सेवाभावी रहो। अपनी राजनीति में संतुलन और समन्वय बनाए रखो।
उत्तरप्रदेश में हिन्दू पलायन को क्यों हुए मजबूर?
उत्तरप्रदेश में कानून का राज खत्म-सा हो गया है। पुलिस प्रशासन मूक बना हुआ है। गुंडागर्दी चरम पर है। कैराना से करीब 346 हिन्दू परिवार आए दिन की सांप्रदायिक गुंडागर्दी से आजिज आकर पलायन कर गए, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सरकार की अनदेखी का कारण है, वोटबैंक। हिन्दू परिवारों को परेशान करने वाला समुदाय समाजवादी पार्टी का मतदाता है। इसीलिए सपा सरकार आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठ गई है। इतने बड़े पैमाने पर हिन्दू परिवारों का पलायन कोई छोटी घटना नहीं है। यह पलायन कितना खतरनाक साबित हो सकता है, इसे समझने के लिए हमें जम्मू-कश्मीर का इतिहास उलटकर देखना चाहिए। वहाँ भी मुस्लिम समुदाय ने हिन्दुओं के सामने ऐसी परिस्थितियां खड़ी कर दी थीं कि उन्हें अपने पुरुखों की जमीन-जायदात छोड़कर अपने ही देश में निर्वासित होकर रहना पड़ रहा है। कैराना की घटना का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तब स्पष्ट होता है कि यह घटना भी जम्मू-कश्मीर के षड्यंत्र से मेल खाती है। कैराना में हिन्दू कारोबारियों से जबरन हफ्ता वसूला जा रहा है। उनके साथ मारपीट की जा रही है। बहू-बेटियों का घर से बाहर निकला मुश्किल कर दिया गया है। यदि वक्त रहते इस तरह के वातावरण को नहीं बदला गया तब वह दिन दूर नहीं होगा जब कैराना सहित उत्तरप्रदेश के अन्य हिस्से जम्मू-कश्मीर में तब्दील हो जाएंगे।
गुरुवार, 9 जून 2016
हम कब ठुकराना सीखेंगे माल-ए-मुफ्त
स्विट्जरलैंड ने नागरिकों ने 'बिना काम किए घर बैठकर तनख्वाह प्राप्त करने के विचार' को नकार कर दुनिया के सामने श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया है। दुनिया में जब यह बहस चल रही है कि रोजगार की कमी, गरीबी और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए घर बैठे प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम और एक समान वेतन दिया जाना चाहिए, उस वक्त में स्विट्जरलैंड के स्वाभिमानी नागरिकों ने इस विचार को खारिज कर संदेश दिया है कि इस व्यवस्था से समस्याएं सुलझने की जगह और अधिक उलझ जाएंगी। डेनियल और एनो ने स्विट्जरलैंड में यूनिवर्सल बेसिक सैलरी का अभियान शुरू किया था। उनके मुताबिक मशीनीकरण के कारण रोजगार के अवसर लगातार कम होते जा रहे हैं। रोबोट लोगों के पेट पर लात मार रहे हैं। ऐसे में स्विट्जरलैंड का प्रत्येक नागरिक या वहाँ पाँच साल से नियमित रहने वाला व्यक्ति सम्मानपूर्वक अपना भरण-पोषण कर सके, इसके लिए बच्चों को करीब 42 हजार रुपये और बड़ों को एक लाख 71 हजार रुपये प्रति महीना न्यूनतम वेतन दिया जाना चाहिए। डेनियल और एनो के इस प्रस्ताव को करीब डेढ़ साल में एक लाख से अधिक स्विस नागरिकों ने हस्ताक्षकर करके अपना समर्थन दिया। एक लाख लोगों का समर्थन हासिल होने के कारण स्विट्जरलैंड सरकार को बेसिक सैलरी के प्रस्ताव पर जनमत संग्रह (मतदान) करवाना पड़ा। हालांकि, मतदान के द्वारा न्यूनतम वेतन के विचार को खारिज करके 77 प्रतिशत स्विस नागरिकों ने स्पष्ट संदेश दिया कि मुफ्त का पैसा देश, समाज और व्यक्ति यानी किसी के लिए भी ठीक नहीं है। इन 77 प्रतिशत लोगों को अंदाजा था कि मुफ्त की कमाई के लिए उन्हें क्या कीमत चुकानी पड़ती।
बुधवार, 8 जून 2016
मथुरा कांड : सरकार का जातिवादी होना
मथुरा के जवाहर बाग में कब्जा जमाए 'रामवृक्ष यादव' और उसके कथित 'सत्याग्रहियों' के खिलाफ देरी से कार्रवाई करने पर उत्तरप्रदेश की सरकार कठघरे में है। खासकर समाजवादी सरकार के कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री के चाचा शिवपाल सिंह यादव की भूमिका पर बड़े प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य दलों का आरोप है कि समाजवादी पार्टी के संरक्षण में रामवृक्ष यादव और उसके सहयोगी जवाहर बाग जैसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल पर कब्जा जमा पाने में कामयाब हो सके। वरना क्या कारण हो सकता है कि बाग के मुख्य द्वार पर तलवार लेकर पहरा देते कथित 'सत्याग्रहियों' को पुलिस और प्रशासन प्रतिदिन देख रहे थे, लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई करने का साहस नहीं कर सके? आखिर पुलिस पर गोली चलाने का साहस भी आपराधिक किस्म के रामवृक्ष यादव के अनुयायियों में कहाँ से आया? स्वाभाविक है कि उन्हें लगा होगा कि जब सैंया भये कोतवाल, फिर डर काहे का। सरकार का साथ हासिल है तब पुलिस क्या कर लेगी? सरकार के लचर रवैए के कारण पुलिस को अपने दो अधिकारी खोने पड़ गए। सरकार के संरक्षण के बिना यह कैसे संभव है कि एक ओर पुलिस लाइन, एसपी ऑफिस और दूसरी ओर जज कॉलोनी से घिरे जवाहर बाग में दो-ढाई साल कोई अवैध कब्जा जमाए रखे। रामवृक्ष यादव ने यहाँ सिर्फ कब्जा ही नहीं जमा रखा था बल्कि उसके उत्पाति सत्याग्रहियों ने आस-पड़ोस के लोगों का जीना मुहाल कर दिया था।
रविवार, 5 जून 2016
पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती भारतीय परम्पराएं
भौतिक विकास के पीछे दौड़ रही दुनिया ने आज जरा ठहरकर सांस ली तो उसे अहसास हुआ कि चमक-धमक के फेर में क्या कीमत चुकाई जा रही है। आज ऐसा कोई देश नहीं है जो पर्यावरण संकट पर मंथन नहीं कर रहा हो। भारत भी चिंतित है। लेकिन, जहाँ दूसरे देश भौतिक चकाचौंध के लिए अपना सबकुछ लुटा चुके हैं, वहीं भारत के पास आज भी बहुत कुछ बाकि है। पश्चिम के देशों ने प्रकृति को हद से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। पेड़ काटकर कांक्रीट के जंगल खड़े करते समय उन्हें अंदाजा नहीं था कि इसके क्या गंभीर परिणाम होंगे? प्रकृति को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए पश्चिम में मजबूत परंपराएं भी नहीं थीं। प्रकृति संरक्षण का कोई संस्कार अखण्ड भारतभूमि को छोड़कर अन्यत्र देखने में नहीं आता है। जबकि सनातन परम्पराओं में प्रकृति संरक्षण के सूत्र मौजूद हैं। हिन्दू धर्म में प्रकृति पूजन को प्रकृति संरक्षण के तौर पर मान्यता है। भारत में पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं। पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी को माँ स्वरूप माना गया है। ग्रह-नक्षत्र, पहाड़ और वायु देवरूप माने गए हैं। प्राचीन समय से ही भारत के वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों को प्रकृति संरक्षण और मानव के स्वभाव की गहरी जानकारी थी। वे जानते थे कि मानव अपने क्षणिक लाभ के लिए कई मौकों पर गंभीर भूल कर सकता है। अपना ही भारी नुकसान कर सकता है। इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ मानव के संबंध विकसित कर दिए। ताकि मनुष्य को प्रकृति को गंभीर क्षति पहुंचाने से रोका जा सके। यही कारण है कि प्राचीन काल से ही भारत में प्रकृति के साथ संतुलन करके चलने का महत्वपूर्ण संस्कार है। यह सब होने के बाद भी भारत में भौतिक विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति पददलित हुई है। लेकिन, यह भी सच है कि यदि ये परंपराएं न होतीं तो भारत की स्थिति भी गहरे संकट के किनारे खड़े किसी पश्चिमी देश की तरह होती। हिन्दू परंपराओं ने कहीं न कहीं प्रकृति का संरक्षण किया है। हिन्दू धर्म का प्रकृति के साथ कितना गहरा रिश्ता है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र ही अग्नि की स्तुति में रचा गया है।
शनिवार, 4 जून 2016
पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं के 'अच्छे दिन'
पाकिस्तान और बांग्लादेश में पीडि़त हिन्दुओं के हित में केन्द्र सरकार ने बेहद मानवीय फैसला लिया है। गृह मंत्रालय ने नागरिकता कानून-1955 में प्रस्तावित संशोधन का मसौदा तैयार कर लिया है। उम्मीद की जा रही है कि संसद के मानसून सत्र में भारत की नागरिकता कानून में बदलाव लाने के लिए विधेयक लाया जा सकता है। यदि संसद से यह विधेयक पारित हो जाता है तब वर्षों से अमानवीय पीड़ा का दंश भोग रहे पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं को राहत मिलेगी। अब तक 'अवैध प्रवासी' कहलाने वाले पीड़ित हिन्दू नागरिकता कानून में संशोधन के बाद आसानी से भारतीय नागरिक बन सकेंगे। दोनों देशों की बहुसंख्यक आबादी (मुस्लिम) के अत्याचारों से पीडि़त होकर अनेक हिन्दू भारत आते रहे हैं। लेकिन, उनका दुर्भाग्य है कि जिसे वह अपना घर (भारत) समझते हैं, वर्षों से वहाँ भी उनकी कद्र नहीं थी। भारत के प्रमुख राजनीतिक दल ने अपनी राजनीतिक लिप्साओं की पूर्ति के लिए बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ करने वाले मुस्लिमों की चिंता तो करते रहे, लेकिन बांग्लादेश और पाकिस्तान से पीडि़त होकर आने वाले हिन्दुओं का उन्हें कभी ख्याल नहीं रहा। केन्द्र की सत्ता में भाजपा के आने से अब भारत के बाहर बसे हिन्दुओं के भी अच्छे दिन आ गए हैं। गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र और चुनावी सभाओं में कहा था कि यदि उनकी सरकार बनती है तब पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिन्दुओं के हितों की चिन्ता की जाएगी। सताए गए इन हिन्दुओं के लिए भारत उनका आवास होगा। यहाँ उनका स्वागत किया जाएगा। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने इस वायदे को पूरा करते नजर आ रहे हैं।
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