पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले के घाव अभी सूख भी नहीं पाए हैं कि नये जख्मों की आशंका जताई जाने लगी है। गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने सरकार को जानकारी दी है कि पठानकोट एयरबेस के आसपास गाँवों में आतंकवादी छिपे हुए हैं और वे एयरबेस पर फिर से हमला कर सकते हैं। समिति से प्राप्त सूचना के बाद सरकार ने सीआरपीएफ, बीएसएफ और सेना को सतर्क कर दिया है। पठानकोट एयरबेस की सुरक्षा भी बढ़ा दी है। केन्द्र सरकार को समिति की सूचनाओं और सिफारिशों पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। दुर्भाग्य से यदि इस बार आतंकवादी पठानकोट एयरबेस या उसके आसपास कहीं भी विस्फोट करने के अपने मंसूबों में सफल हो जाते हैं, तब यह सरकार की बहुत बड़ी नाकामी होगी। सरकार की क्षमताओं पर प्रश्न चिह्न खड़े होंगे ही। सवाल यह भी किया जाएगा कि आखिर पठानकोट हमले के बाद व्यापक स्तर पर चलाए गए सर्च अभियान के बाद भी यह आतंकी बचे कैसे रह गए? आतंरिक सुरक्षा को लेकर गृह मंत्रालय कहाँ चूक कर रहा है? हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पठानकोट हमला सुरक्षा बलों की चूक और लापरवाही का ही नतीजा था। आतंकियों की घुसपैठ की सूचना और पुलिस अधीक्षक के अपहरण की घटना को गृह मंत्रालय ने गंभीरता से नहीं लिया था।
एयरबेस पर हमले की घटना भारत की अस्मिता और स्वाभिमान को चुनौती थी। एक बार फिर हमला हो गया तब सरकार और देश दोनों की छवि पर गहरा दाग लग जाएगा। गृह मंत्रालय के सामने चुनौती है कि आतंकी हमारे माथे पर गोली दागें उससे पहले ही उनको ढूंढ़कर ढेर कर दिया जाए। यह उम्मीद इसलिए है क्योंकि मजबूत इरादों वाले राजनेता राजनाथ सिंह गृहमंत्री हैं। खुफिया एजेंसियों की निशानदेही पर उनके ही कार्यकाल में कई आतंकवादी वारदात से पहले ही धराए जा चुके हैं। हालांकि यह दीगर बात है कि अब भी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था में कई छेद हैं। गृह मंत्रालय न तो सीमापार से हो रही आतंकी घुसपैठ पर लगाम लगा सका है और न ही आतंकी हमलों पर। दरअसल, हमले के बाद जाँच करने की हमारी आदत बन गई है। इस आदत से हमें बाज आना होगा। इस बार मौका है कि हमले से पहले ही आतंकियों के छिपने के ठिकानों को चिह्नित, उन्हें खत्म कर दिया जाए।
बहरहाल, सरकार से सवाल-जवाब करने के साथ ही हमें अपनी जिम्मेदारी और जागरूकता को भी जाँच लेना चाहिए। क्योंकि, एक बड़ा सवाल यह भी है कि आतंकियों के पनाहगार कौन लोग हैं? सीमापार से घुसपैठ करके आने वाले आतंकी गुफा, कंदराओं और जंगलों में तो छिपते नहीं है? मानवता के दुश्मनों से आखिर मोहब्बत किसे है? गृह मामलों पर संसद की स्थाई समिति जब अंतरराष्ट्रीय सीमा के आसपास सुरक्षा बंदोबस्त की समीक्षा करने जम्मू-कश्मीर पहुंची और उससे पूर्व समिति ने पठानकोट का दौरा किया तब यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि पठानकोट के आसपास के गाँवों में आतंकी शरण लिए हुए हैं। समिति के अध्यक्ष पी. भट्टाचार्य ने बताया कि ग्रामीणों ने उन्हें बताया है कि कुछ आतंकवादी अब भी वहाँ के गाँवों में छिपे हुए हैं। यह सवाल बार-बार कटौचता है कि हमारे ही बीच के कुछ लोग आखिर किस कारण आतंकियों को अपने घरों में छिपाते हैं? सच तो यह भी है कि यह लोग आतंकियों और अपराधियों को न केवल छिपाते हैं, बल्कि उनका संरक्षण भी करते हैं। आतंकियों को बचाने के लिए सुरक्षा बलों पर पथराव करने से भी नहीं चूकते हैं। जम्मू-कश्मीर में अमूमन यह देखने में आता है कि आतंकियों को पकडऩे गए सुरक्षा बलों पर वहाँ के लोग पथराव करने लगते हैं। बीते अप्रैल की ही घटना है, जब सुरक्षा बलों ने पत्तुशाही लोलाब में तीन आतंकियों को मार गिराया था और दो आतंकियों को दबोचने के लिए उनकी घेराबंदी की जा रही थी तभी स्थानीय नागरिकों ने पथराव कर दिया था। सुरक्षा बलों पर किए गए इस पथराव का फायदा उठाकर दोनों आतंकी भाग निकले थे। संप्रदाय विशेष का यह व्यवहार जाहिर करता है कि वे आर्थिक लालच या आतंकियों के भय के कारण उन्हें संरक्षण नहीं देते हैं। बल्कि कुछ लोगों को आतंकियों से सहानुभूति है।
आतंकियों के पनाहगारों को समझ लेना चाहिए कि ऐसा करके वह अपने समाज/संप्रदाय को भी सवालों के घेरे में खड़ा करने का काम करते हैं। अपने प्रति अविश्वास और घृणा बढ़ाते हैं। आतंकियों को पनाह देना सभ्य समाज की पहचान नहीं है। लोगों का यह व्यवहार देश के लिए किसी भी सूरत में ठीक नहीं है। इस स्थिति में आतंकी गतिविधियों पर लगाम नहीं लगा पाने के लिए सिर्फ सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता। आतंकी जिन बस्तियों/घरों में छिप रहे हैं, वहाँ कार्रवाई करना बेहद संवेदनशील है। खासकर जिस सरकार पर जबरन हिन्दूवादी सरकार होने का ठप्पा लगाया जाता हो, उसके लिए इन बस्तियों में कार्रवाई करना और चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इन बस्तियों/घरों में अव्वल तो सुरक्षाबल घुस ही नहीं सकते (जून के पहले सप्ताह में ही उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद क्षेत्र में 1.62 लाख रुपये की डकैती के मुख्य आरोपी मोहम्मद साजिद को पकडऩे गई पुलिस पर पथराव कर दिया गया था)। यदि ताकत का उपयोग करके कड़ी कार्रवाई कर भी दी तो वोटबैंक की राजनीति करने वाले दल और तथाकथित प्रगतिशील आसमान सिर पर उठा लेते हैं। बहरहाल, इसके बावजूद सरकार को अपनी खुफिया एजेंसियों को अधिक चौकस करना होगा। आतंकियों के पनाहगारों की पहचान करके उनके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करनी होगी। साँपों को कुचलना है तो उनके बिलों को भी ध्वस्त करना होगा। क्योंकि यहाँ सवाल देश की सुरक्षा का है।
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