राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शुद्ध आचरण के लिए सात सूत्र दिए हैं- सेवाभाव, संतुलन, संयम, समन्वयन, सकारात्मकता, संवेदना और संवाद। असल में देखा जाए तो सार्वजनिक जीवन जीने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इन सात सूत्रों का पालन करना चाहिए। यह सात सूत्र राजनीति के मूल सूत्र और उद्देश्य भी हैं। सार्वजनिक तौर पर प्रत्येक बड़ा नेता यह ही कहते पाया जाता है कि जनता की सेवा करने और उसकी आवाज को शासन तक पहुंचाने के लिए उसने राजनीति को चुना है। भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया का इतिहास भी इसका गवाह है कि अनेक लोगों ने सकारात्मक बदलाव लाने के लिए राजनीति को माध्यम बनाया है। जिस व्यक्ति ने उक्त सात सूत्रों का अपनी राजनीति में पालन किया है, वह प्रभावशाली राजनेता साबित हुआ है। यह भी हकीकत है कि यदि किसी राजनेता ने इनमें से एक भी सूत्र की अनदेखी की है, तब उसका खामियाजा न केवल उसे उठाना पड़ता है बल्कि पार्टी, सरकार और मुखिया को भी काफी-कुछ नुकसान पहुंचा है। कार्यकर्ताओं और नेताओं के व्यवहार से ही पार्टी की साख बढ़ती है। इस बात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बखूबी समझते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी अपने मंत्रियों, सांसदों और पार्टी कार्यकर्ताओं को बार-बार ताकीद करते हैं कि जनता के साथ संवाद कायम करो। सेवाभावी रहो। अपनी राजनीति में संतुलन और समन्वय बनाए रखो।
प्रधानमंत्री ने सात सूत्र देते हुए कहा भी कि सत्ता सुख भोगने के लिए नहीं है बल्कि सेवा करने के लिए है। सत्ता की ताकत का अहसास करने से बचने की सलाह भी उन्होंने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को दी। क्योंकि, सत्ता की ताकत का अहसास होने पर अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। सेवाभाव कहीं पीछे छूट जाता है, सत्ता सुख की कामना बढ़ जाती है। सत्ता की ताकत के दुरुपयोग की आशंका बलवती हो जाती है। जनता और उससे किए वायदों को भूलकर नेता/कार्यकर्ता सत्ता के नशे में चूर हो जाते हैं। यदि भारतीय जनता पार्टी को अपने जनाधार को मजबूत करना है, अन्य राज्यों में भी विस्तार पाना है तब उक्त सातों सूत्रों का पालन करना और पालन कराना महत्वपूर्ण हो जाता है। सरकारी योजनाओं और उपलब्धियों को जनता के बीच ले जाने के लिए अपने सांसदों से बार-बार आग्रह करने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिंता सता रही है कि सरकार के कामकाज की वास्तविक रिपोर्ट का अहसास सामान्य आदमी को नहीं है। इसीलिए उत्तरप्रदेश के रण में उतरने से पहले मोदी कहते हैं कि देश का जनमानस सिर्फ नारों से संतुष्ट नहीं होता है, बल्कि उसे इस बात की चिंता होती है कि देश मजबूत हो रहा है या नहीं? यह बात सही भी है। अधिक नारेबाजी से वास्तविक काम छिप जाता है। जनता नारेबाजी के आधार पर सरकार और पार्टी के प्रति अवधारणा बना लेती है। पिछले दो वर्षों में एनडीए सरकार भी इस समस्या से दो-चार हुई है। भाजपा के नेताओं की बेतुकी बयानबाजी और नारेबाजी ने न केवल पार्टी के सामने बल्कि सरकार के सामने भी असहज स्थितियां खड़ी की हैं। संभवत: उन बयानवीर नेताओं को अपने प्रधानमंत्री की आवाज सुनाई दे जाए।
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समापन में इन सात सूत्रों को प्रस्तुत करने के पीछे कहीं न कहीं प्रधानमंत्री की अपेक्षा रही होगी कि भाजपा कार्यकर्ता सातों सूत्रों को अपने आचरण में उतारें। यदि कार्यकर्ता मोदी के सात सूत्रों को लेकर आगे नहीं बढ़ते हैं तब भाजपा के लिए आगे की राह आसान न होगी। बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इलाहाबाद में रैली को संबोधित करते हुए माया-मुलायम पर हमला बोलकर उत्तरप्रदेश चुनाव का बिगुल बजा दिया है। भाजपा मानकर चल रही है कि उसका सीधा मुकाबला माया और मुलायम सिंह से होगा। इस चुनाव में कांग्रेस कहीं नहीं होगी। यदि भाजपा नेतृत्व ऐसा सोच रहा है तब यह खतरनाक है। दुश्मन चाहे कितने मुश्किल दौर से गुजर रहा हो, लेकिन उसे कम आंकने की भूल नहीं करनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने अपने उद्बोधन से सकारात्मक संदेश उत्तरप्रदेश की राजनीति के लिए दिया है। उनके संकेतों को डी-कोड किया जाए तब स्पष्ट होता है कि उत्तरप्रदेश के चुनाव प्रचार में भाजपा संतुलन रखेगी और विकास पर पूरा फोकस रखेगी। इसलिए प्रधानमंत्री कह रहे हैं जनता को विकास का अनुभव होना चाहिए। उत्तरप्रदेश की जनता से भी उन्होंने आह्वान किया है कि एक बार उन्हें मौका देकर देखे। खैर, जनता को आकर्षित करने के प्रयास शुरू हो गए हैं। भाजपा ने भी अपनी चुनावी तैयारी का ऐलान कर दिया है।
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