भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के दूसरे कार्यकाल को लेकर बेवजह का हंगामा किया जा रहा है। स्वयं राजन ने यह घोषणा की है कि वह अपने दूसरे कार्यकाल के लिए इच्छुक नहीं हैं। वह अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद 'विदेश' में शिक्षण कार्य करना पसंद करेंगे। राजन की इस घोषणा के बाद विपक्षी दलों सहित तथाकथित अनेक बुद्धिजीवियों और स्वयं-भू आर्थिक विशेषज्ञों की चीख-पुकार शुरू हो गई है। शायद ही इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर की नियुक्ति या विदाई पर इस तरह का माहौल बना हो। दरअसल, यह विवाद भाजपा और मोदी विरोध की उपज है। पिछले दो वर्षों से देखने में आ रहा है कि न केवल विपक्षी दल बल्कि तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी, साहित्यकार और कलाकार भी सरकार की ओर से की गई प्रत्येक नियुक्ति पर नुक्ता-चीनी करने लगे हैं। सामान्य नियुक्तियों पर भी इतना हंगामा खड़ा किया जाता है कि सहज प्रक्रिया विवादित हो जाती है। वरना, क्या इससे पहले सभी गवर्नरों को दो-दो कार्यकाल दिए गए हैं?
क्या रघुराम राजन भारतीय रिजर्व बैंक के संस्थापक गवर्नर हैं, जिन्हें मोदी सरकार ने हटा दिया? क्या राजन के अलावा दुनिया में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का पद सम्भालने वाला कोई व्यक्ति नहीं है? राजन के दूसरा कार्यकाल नहीं सम्भालने पर ऐसी हाय-तौबा मचाई जा रही है कि जैसे ही राजन अपना वर्तमान कार्यकाल पूरा करके विदेश जाएंगे, भारतीय अर्थव्यवस्था गड्डे में चली जाएगी। मजेदार बात यह है कि केन्द्र सरकार ने रघुराम राजन के संबंध में किसी भी प्रकार की प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है। उनके कार्यकाल को बढ़ाने या नहीं बढ़ाने के संबंध में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और वित्तमंत्री अरुण जेटली ने किसी भी प्रकार के संकेत नहीं दिए हैं। इसके बावजूद विरोधी राजन की घोषणा को सरकार के मंतव्य से जोड़कर देख रहे हैं। हाँ, भाजपा के नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रह्मयम स्वामी ने जरूर खुलकर रघुराम राजन और उनकी नीतियों का विरोध किया है। लेकिन, यह महज व्यक्तिगत असहमति है। सरकार ने कभी भी स्वामी के बयानों के साथ खुद को नत्थी नहीं किया। बल्कि, उनकी टिप्पणियों से भी सरकार ने पर्याप्त दूरी बनाए रखी है। इसके बाद भी कुछ लोग राजन को एक संवैधानिक संस्था से बड़ा बनाने पर उतारू हैं। भाजपा सरकार के प्रति घोर असहिष्णु लोगों के अतिवाद को देखकर स्वयं रघुराम राजन को कहना पड़ा है कि गवर्नर कोई भी हो, रिजर्व बैंक अपना काम करता रहेगा। गवर्नर पद की पहचान व्यक्तियों से नहीं की जानी चाहिए। यह पद किसी भी गवर्नर से बड़ा है। भारतीय स्टेट बैंक की आर्थिक अनुसंधान इकाई ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रघुराम राजन के जाने से भारतीय रिजर्व बैंक पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा? कोई संस्थान किसी भी व्यक्ति से अधिक महत्वपूर्ण होता है।
बात का बतंगड़ बना रहे लोगों को राजन की बात को गंभीरता के साथ सुनना और मनन करना चाहिए। उन्हें भारतीय स्टेट बैंक की रिपोर्ट का भी अध्ययन करना चाहिए। तब शायद उन्हें समझ आए कि वह सरकार का विरोध कम कर रहे हैं बल्कि संवैधानिक संस्था को क्षति अधिक पहुंचा रहे हैं। इस बात से किसी को इनकार नहीं है कि रघुराम राजन ख्यातनाम अर्थशास्त्री हैं। रिजर्व बैंक के गवर्नर के तौर पर उनके योगदान की अनदेखी भी नहीं की जा सकती। उन्होंने कई कठोर फैसले लिए हैं, उसके लिए उनको सदैव याद किया जाएगा। सरकार और राजन के बीच कोई विवाद भी ध्यान नहीं आता है। राजन ने कभी यह शिकायत नहीं की है कि सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही है। इसी कारण आश्चर्य होता है कि राजन पर बेवजह विवाद क्यों?
सामयिक विचारणीय प्रस्तुति ..
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