उस पुस्तक का पृष्ठ, जहाँ मेरे आलेख (संत कबीर साहेब की तपस्थली 'कबीर चबूतरा') की सामग्री को ज्यों का त्यों लिया गया है। |
सतपुड़ा के सौंदर्य के आकर्षण में एक यात्रा वृत्तांत पढ़ रहा था। सतपुड़ा की घाटियों से बैतूल और अन्य स्थानों के वर्णन का रसास्वादन करके अमरकंटक के अध्याय पर पहुंचा। अमरकंटक के प्रति मेरे मन में एक अबूझ-सा प्रेम-आकर्षण है। अमरकंटक पर मैंने भी अपना कुछ लिखा-पढ़ा है, जो कई जगह प्रकाशित भी है।
जैसे ही एक-डेढ़ पैराग्राफ के बाद पढ़ना शुरू किया, मुझे लगा कि यह तो मैंने ही लिखा है। अमरकंटक की यह मेरे हृदय की अनुभूति है। एक स्थान को लेकर क्या दो लेखकों के हृदय की अनुभूति इतनी समान हो सकती है कि एक-एक शब्द, एक-एक पंक्ति, एक-एक भाव एक समान रूप से अभिव्यक्त हो! लेखक ने 2022 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में 2019 में लिखे/प्रकाशित मेरे आलेख को जैसे का तैसा उतार (कॉपी-पेस्ट) दिया है। यहां तक कि इस व्यक्तिगत उल्लेख को भी नहीं बदला- पहले ही अनुभव में प्राकृतिक-नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर इस स्थान ने अमिट छाप मन पर छोड़ दी। अच्छी बात यह है कि यहाँ अभी तक बाजार की पहुँच नहीं हुई है। इसलिए यह तीर्थ-स्थल अपने मूल को बचाए हुए है। यहाँ के वातावरण में अब तक गूँज रहे कबीर के संदेश को अनुभूत करने के लिए लगभग तीन-चार घंटे तक यहाँ रहा। यकीन मानिये, माँ नर्मदा के तट पर बैठना और यहाँ कबीरीय वातावरण में बैठना, अमरकंटक प्रवास के सबसे सुखकर अनुभव रहे। उस समय आश्रम में रह रहे कंबीरपंथी संन्यासी रुद्रदास के पास बैठकर कबीर वाणी सुनी-
कबीर बादल प्रेम का, हम पर बरसा आई।
अंतरि भीगी आतमा, हरी भई बनराई ॥
अर्थात् संत कबीर कहते हैं- 'प्रेम का बादल मेरे ऊपर आकर बरस पड़ा, जिससे अंतरात्मा तक भीग गई, आस-पास पूरा परिवेश हरा-भरा हो गया, खुश हाल हो गया, यह प्रेम का अपूर्व प्रभाव है। हम इसी प्रेम में क्यों नहीं जीते।' यकीनन, कबीर की वाणी हमारी अंतरात्मा को भिगो देती है। कबीर चबूतरा से जब लौटे तो लगा कि कबीर प्रेम गहरे पैठ गया है। अंतर्मन एक अल्हदा अहसास में डूबा हुआ है।
मुझे कभी बुरा नहीं लगता कि किसी ने मेरा लिखा बिना बिना अनुमति या बिना उल्लेख/संदर्भ के अपना बता कर छाप दिया। मेरा तो मन प्रसन्न हो होता है कि अपना लिखा लोगों को इतना पसंद आ रहा है कि वे उसका अपने ढंग से उपयोग कर रहे हैं। इससे पहले भी एक अन्य पुस्तक में मैंने ऐसा देखा। कई लोग तो ऐसे भी देखे जिन्होंने पूरा का पूरा लेख ही उठाकर अपने नाम से प्रकाशित करा लिया। एक बार तो आधा आलेख निर्वाचन आयोग ने मतदाता जागरूकता अभियान में प्रकाशित विज्ञापन में उपयोग किया।
सतपुड़ा का यात्रा वृत्तांत बताकर प्रकाशित उस पुस्तक के बारे में मुझे यही लगता है कि अन्य सामग्री भी इधर-उधर से संकलित की गई। पुस्तक और लेखक की पहचान मैं जानबूझकर उजागर नहीं कर रहा हूँ। क्योंकि मैं नहीं चाहता कि उनकी पुस्तक को पूर्वाग्रह के साथ पढ़ा जाए या फिर उसे पढ़ा ही नहीं जाए।
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