राष्ट्रीय उद्देश्य और आध्यात्मिक अधिष्ठान पर केंद्रित है छत्रपति शिवाजी महाराज का 'हिन्दवी स्वराज्य' : हेमंत मुक्तिबोध
लेखक लोकेंद्र सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ की चर्चा कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता श्री हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज और समर्थ रामदास ने उस समय के हिंदू समाज के भीतर आत्मविश्वास जगाया। याद रखें कि यह सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष नहीं था। यह भारत के ‘स्व’ को स्थापित करने के लिए किया गया राष्ट्रीय संघर्ष था। उनके संघर्ष का राष्ट्रीय उद्देश्य था और अध्यात्म उसका अधिष्ठान था। इसलिए उस समय के समाज में विश्वास जगा कि यह राजा साधारण नहीं है। ‘हे हिंदवी स्वराज्य व्हावे, ही तर श्रींची इच्छा यात’ शिवाजी महाराज का यह वाक्य विश्व के महान भाषणों से भी बढ़कर है। पुस्तक चर्चा का यह कार्यक्रम विश्व संवाद केंद्र के मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी सभागार में हुआ। इस अवसर पर साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत के संघचालक श्री अशोक पांडेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
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श्री मुक्तिबोध ने कहा कि लोकेंद्र सिंह ने इस जीवंतता के साथ पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ को लिखा है कि हम भी पढ़ते–पढ़ते छत्रपति शिवाजी महाराज के दुर्गों का भ्रमण करते हैं। एक–एक प्रसंग और घटना का जीवंत वर्णन उन्होंने किया है। यात्रा वृत्तांत में दर्शन की दृष्टि, मन की आंखों और विवेक–बुद्धि के साथ देखते हैं तो कुछ प्रेरणा देनेवाला और सकारात्मक साहित्य का सृजन होता है। लोकेंद्र सिंह ने शिवाजी महाराज के किलों को केवल सामान्य पर्यटक के तौर पर नहीं देखा है, उन्होंने विवेक बुद्धि के साथ दुर्गों का दर्शन किया हैं। उन्होंने कहा कि किलों का महत्व इतना नहीं है, जितना उनमें रहने वालों का महत्व है। शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की स्थापना में किलों को जीता, संधि में किले हारे और फिर किलों को प्राप्त करने के लिए संधि तोड़ी। पुस्तक में सिंहगढ़ की कथा भी आती है। जिस किले को प्राप्त करने में तानाजी मालूसरे का बलिदान हुआ। अपने साथी के बलिदान पर छत्रपति ने कहा था– “गढ़ आला लेकिन सिंह गेला”।
सेल्फी नहीं, सेल्फहुड को जगाने के स्थान है शिवाजी महाराज के दुर्ग:
श्री मुक्तिबोध ने कहा कि ये दुर्ग छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की प्रेरणा देनेवाले स्मारक हैं। ये स्थान सेल्फी खींचने के लिए नहीं अपितु अपने सेल्फहुड को जाग्रत करने के स्थान है। उन्होंने पुरंदर की संधि और युद्ध का वर्णन करके बताया कि उस समय ऐसी स्थितियां थी कि सनातनी मिर्जाराजा जयसिंह भी औरंगजेब के लिए उस शिवाजी महाराज को पकड़ने के लिए आया, जो हिंदवी स्वराज्य के लिए मुगलों से लड़ रहे थे। रायगढ़ के किले का वर्णन भी पुस्तक में आया है, जो हिंदवी स्वराज्य की राजधानी थी। ग्वालिन हिरकनी की कहानी का रोचक वर्णन पढ़ना चाहिए। श्री मुक्तिबोध ने कहा कि शिवाजी महाराज ने केवल नौसेना ही नहीं बनाई अपितु जलदुर्गों का निर्माण भी किया। छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य की सबसे बड़ी विशेषता थी कि उन्होंने भारत के स्वत्व का जागरण किया।
हिंदवी स्वराज्य के दर्शन कराती है लोकेंद्र सिंह की पुस्तक : डॉ. विकास दवे
छत्रपति शिवाजी महाराज की चेतना को समझना है तो लेखक लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ का अध्ययन करना चाहिए। यह एक यात्रा वृत्तांत है लेकिन यह पुस्तक छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदवी स्वराज्य के विचार का दर्शन भी कराती है। लेखक ने शिवाजी महाराज के महत्वपूर्ण दुर्गों से जुड़े इतिहास और रोचक प्रसंगों का वर्णन किया है। डॉ. दवे ने बताया कि यात्रा वृत्तांत का उद्देश्य है कि उसमें प्रेरणा का कोई तत्व होना चाहिए और यह पुस्तक तो हिंदवी स्वराज्य की प्रेरणा से परिपूर्ण है। लेखक लोकेंद्र सिंह ने शिवाजी महाराज के किलों की आत्मा का वर्णन किया है। छत्रपति ने जिस प्रकार स्वराज्य के साथ स्वदेशीकरण का अभियान चलाया, उसका विवरण भी पुस्तक में हमें प्राप्त होता है। आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस है। हमें याद आता है कि शिवाजी महाराज ने अरबी और फारसी शब्दों को हटा कर शासन–प्रशासन में स्वभाषा को स्थापित किए। पुस्तक में पर्वत से लेकर समुद्र तक के प्रमुख किलों का वर्णन है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत के संघचालक श्री अशोक पांडेय ने कहा कि राज्याभिषेक का रोचक वर्णन लेखक ने ऐसे किया है कि इतिहास की वह घटना जीवंत हो उठती है।
विश्व संवाद केंद्र के सभागार में लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन' का विमोचन |
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