शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

शताब्दी वर्ष में संघ का प्रवेश

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा और जीवंत सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन है। वर्ष 1925 में जब विजयादशमी के पावन प्रसंग पर संघ की स्थापना की जा रही थी, तब देश अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहा था। एक ओर अंग्रेजी राजसत्ता भारत के वैभव एवं गौरव का सर्वनाश कर रही थी, वहीं दूसरी ओर मुस्लिम तुष्टीकरण एवं आक्रामकता भी अपनी जड़ें गहरी करने लगी थी। हिन्दू समाज आत्मदैन्य की स्थिति की ओर जा रहा था। इस प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भारत की स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी राजनेता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।

‘डॉक्टर साहब’ के रूप में सम्मानित डॉ. हेडगेवार दूरदृष्टा थे। उन्होंने उन परिस्थितियों के बारे में गहरायी से विचार-मंथन किया, जिनके कारण बार-बार बाहरी शक्तियां भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेती थीं। डॉक्टर साहब देख पा रहे थे कि भारत को स्वतंत्रता मिलने ही वाली है लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि भारत फिर से किसी बाहरी ताकत के चंगुल में नहीं फंसेगा। भली प्रकार विचार करने के बाद वे इस परिणाम पर पहुँचे कि जब तक भारत का मूल समाज एकजुट नहीं होगा और जागृत नहीं रहेगा, तब तक भारत की स्वतंत्रता को अक्षुण्य नहीं रखा जा सकता। भारत में अपना शासन स्थापित करनेवाली सभी प्रकार की ताकतों ने सबसे पहले भारत के मूल समाज अर्थात् हिन्दू समाज को बाँटा, उसके बाद भी वे यहाँ अपनी सत्ता स्थापित करने में सफल हो सके। 

पुस्तक - संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति

भारत को कमजोर करने और यहाँ की सत्ता में हस्तक्षेप करने के लिए आज भी विदेशी ताकतें हिन्दू समाज को बाँटने के प्रयासों में लगी रहती हैं। यद्यपि संघ ने अपनी 99 वर्ष की यात्रा में परिस्थितियों को बदल दिया है। आज भारत का मूल समाज जागृत और एकजुट है। इसलिए भारत विरोधी ताकतें अपने मंसूबों में सफल नहीं हो पाती हैं। आज हिन्दू पहले की तरह अपनी संस्कृति, स्वाभिमान और पहचान पर संकोच नहीं करता है अपितु गर्व के साथ कहता है कि “हाँ, मैं हिन्दू हूँ”। हालांकि, अभी भी कई बार हिन्दू समाज को चेताना पड़ता है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इसी संदर्भ में कहना पड़ा- “बंटेंगे तो कटेंगे”। भारत के इतिहास का सिंहावलोकन करते हैं तब योगी आदित्यनाथ की यह बात सत्य साबित होती दिखायी पड़ती है।

देखें- संघ में शामिल हो सकते हैं सरकारी कर्मचारी

बहरहाल, आज से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है। संघ की जगह कोई और संगठन होता, तो अपने शताब्दी वर्ष को भव्यता के साथ मनाता। लेकिन, संघ सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पित संगठन है। इसलिए उसने अपने शताब्दी वर्ष में ‘पंच परिवर्तन’ के विषय को जन-जन तक लेकर जाने का संकल्प लिया है। पंच परिवर्तन के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण जागरूकता, स्व पर जोर तथा नागरिकों के कर्तव्यों पर जोर देगा। भारत के विकास की यात्रा में संस्कारित और जिम्मेदार समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रहनेवाली है। पंच परिवर्तन में संघ ने जो विषय लिए हैं, उनका प्रबोधन आज की स्थिति में अत्यंत आवश्यक है।

देखें- संविधान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्या हैं विचार

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