बुधवार, 2 नवंबर 2016

पुलिस और जनता की बड़ी कामयाबी

 भोपाल  केंद्रीय जेल से भागे आठों आतंकियों को जिस तत्परता से पुलिस ने ढूंढ़ कर ढेर किया है, उसके लिए मध्यप्रदेश पुलिस की प्रशंसा की जानी चाहिए। जेल से भागे आतंकियों को चंद घंटों में मार गिराना पुलिस और सुरक्षा बलों के बढ़े मनोबल का ताजा उदाहरण हैं। देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी प्रकार के आतंक से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को साहसिक फैसले लेने की खुली छूट दे रखी है। सरकार के इस रुख से देशभर में पुलिस और सुरक्षा बलों के हौसले बुलंद हैं, जिसका परिणाम भी सामने आ रहा है। हालांकि कुछ राजनीतिक दल, संगठन और वामपंथी विचारधारा के लोग पुलिस के साहसिक और सराहनीय काम से आहत हैं। उन्हें इस बात की प्रसन्नता नहीं है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मप्र की पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली है, बल्कि उन्हें इस बात की अधिक चिंता हो रही है कि आतंकियों को जिंदा क्यों नहीं पकड़ा? इनका दु:ख तब प्रकट नहीं हुआ, जब इन्हीं आतंकियों ने जेल से भागने के लिए दीपावली के दिन एक संतरी की गला रेतकर हत्या कर दी। शहीद जवान रमाकांत के घर में अगले माह बेटी का विवाह है। बर्बर तरीके से इस जवान की हत्या हमारे मानवाधिकारियों के कलेजों को पिघला नहीं सकी, लेकिन आतंकियों की मौत से यह सब विचलित हैं।
 
       कांग्रेस, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, आम आदमी पार्टी और मुस्लिम नेता आवैसी (इस व्यक्ति का उल्लेख करना ही बेकार है) पुलिस के साहस पर सवाल उठा रहे हैं। इन्हें आतंकियों के मानवाधिकार याद आ रहे हैं। प्रतिबंधित आतंकी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के इन आतंकियों ने भोपाल जेल के संतरी से पहले प्रदेश और देश में अनेक लोगों की हत्याएं की थीं। यह आतंकी सांप्रदायिक दंगों के दोषी थे। आतंकी गतिविधियों के संचालन के लिए बैंक डकैती भी की थी। जब आतंकी इन घटनाओं को अंजाम दे रहे थे, तब इनमें से किसी को भी समाज के सामान्य व्यक्ति के मानवाधिकारों की चिंता नहीं हुई। यह वही लोग हैं, जिन्होंने कुछ दिन पहले आतंकवादियों के खिलाफ भारतीय सेना द्वारा किए सर्जिकल स्ट्राइक पर भी सवाल उठाए थे। यह कोई संयोग नहीं कि यह लोग पुलिस के इस साहसिक कार्य पर विवाद खड़ा करना चाहते हैं। 
          दरअसल, एक खास किस्म की राजनीति और सहानुभूति के लिए इस कदर नैतिक रूप से गिर जाना उनकी प्रवृत्ति हो गई है। गुजरात (इशरत जहाँ) और बाटला हाउस से लेकर जहाँ कहीं भी आतंकी मारे जाते हैं, इन लोगों का हृदय अपार पीड़ा से भर जाता है। पुलिस मुठभेड़ पर सवाल उठाने वाले लोगों को यह तो मालूम ही होगा कि इससे पहले यह आतंकी खण्डवा जेल से भाग चुके थे। खण्डवा जेल से भागकर इन आतंकियों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में अपराध किए थे। अगर इस बार भी आतंकी बचकर भाग निकलते, तब फिर से देश को लहूलुहान करते, आम नागरिकों की हत्या करते, लूटपाट और डकैती करते। इसलिए यह अच्छा ही हुआ कि पुलिस ने उनका सफाया कर दिया। आतंकवाद को लेकर इस समय देश में जिस प्रकार का वातावरण बना है, उन स्थितियों में आठ खूंखार आतंकियों को मार गिराना न केवल मध्यप्रदेश की उपलब्धि है, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में देश की यह बड़ी जीत है। 
         इस घटनाक्रम में हमें जनता की सजगता को प्रमुखता से रेखांकित करना चाहिए। गाँववासियों से प्राप्त सूचना के कारण ही पुलिस महज आठ घंटे में आठ आतंकियों का खेल खत्म करने में सफल रही है। उल्लेखनीय है कि दशहरे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में जनता की भूमिका के महत्त्व को बताया था। उन्होंने जटायु का उदाहरण देकर बताया था कि आतंकवाद (रावण) के खिलाफ पहली लड़ाई किसी फौज ने नहीं, बल्कि जटायु (समाज) ने लड़ी। जटायु ने साहस दिखाया और बिना अस्त्र-शस्त्र के ही युद्ध में कुशल आतंकी रावण से भिड़ गए। आतंकी को रोकने का यथाशक्ति प्रयास किया। लेकिन, रावण उन्हें घायल करके भाग निकला। बाद में, जटायु ने ही भगवान श्रीराम को आतंकी की पहचान बताई। कहने का आशय यह है कि समाज को आतंकवाद और अपराध के प्रति जागरूक रहना होगा। सभी प्रकार के आतंकवाद की पहचान करके उसका विरोध करना होगा। ताकि आतंकवाद को जड़ से खत्म किया जा सके। देश के 125 करोड़ लोग यदि जटायु से सबक लेकर आतंकवाद और उनको पनाह देने वाले देश के खिलाफ खड़े हो जाएं तो ऐसी ताकतें खुद-ब-खुद परास्त हो जाएंगी। मध्यप्रदेश के खेजड़ादेव गाँव की जनता ने सिमी के आतंकियों के नाश के लिए अपनी भूमिका से देश के शेष नागरिकों के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
          बहरहाल, इस प्रकरण में सवाल कहीं उठने चाहिए, तो जेल प्रशासन और वहाँ के सुरक्षा इंतजाम पर। आखिर प्रदेश की सबसे सुरक्षित जेल से आतंकी भागने में कैसे सफल हुए? सिमी के शातिर आतंकियों को एक ही जगह क्यों रखा गया? जेल सुरक्षा में मुस्तैद ८० प्रतिशत जवानों को अवकाश क्यों स्वीकृत किया गया? सीसीटीवी कैमरे कैसे बंद हो गए? प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस घटनाक्रम गंभीरता से लिया है। जेल से भागने की खबर से लेकर आतंकियों के अंत तक लगातार वह पुलिस से संवाद करते रहे। आतंकियों से निपटने में अभूतपूर्व प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने पुलिस और जनता को बधाई दी है। वहीं, आतंकियों के जेल से भागने की घटना को भी उन्होंने उतनी ही गंभीरता से लिया है। मुख्यमंत्री ने इसे बड़ी चूक मानते हुए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से इसकी जाँच एनआईए से कराने का आग्रह किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। इसके साथ ही उन्होंने डीआईजी जेल सहित आठ जेल अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है और घटना की जाँच की जिम्मेदारी पूर्व डीजीपी नंदन दुबे को सौंप दी है। यह सच सामने आना ही चाहिए कि आखिर आतंकी जेल से भागने में कैसे सफल हुए? बहरहाल, प्रदेश की पुलिस और जनता को आतंकवाद के खिलाफ बड़ी उपलब्धि के लिए बधाई। 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पोस्ट बहुत पसंद आई. आपकी लेखनी कमाल की है.
    साधुवाद!!!

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  2. आतंकी भागे कैसे ?..खुलासा हो तो बहुत सारी बारें सामने आने की सम्भावना है। सही पोस्ट।

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  3. आतंकी भागे कैसे ?..खुलासा हो तो बहुत सारी बारें सामने आने की सम्भावना है। सही पोस्ट।

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