"मेरी चिड़िया,
आज तुम पूरे एक साल की हो गयी हो।
तुम्हारी हँसी के मौसम में मौज का एक साल कब निकल गया,
पता ही नहीं चला।
तुम्हारे आने के बाद असल में अहसास हुआ,
पिता होने का अर्थ क्या है?
हृदय और अधिक संवेदनशील हो गया है।
लौट आया है मेरा भी बचपन तुम्हारे साथ।
तुम्हारी नन्ही कोमल अंगुलियां जब मेरे गालों को स्पर्श करती हैं,
मेरा रोम-रोम पुलकित हो उठता है।
सुबह-सुबह ऑफिस जाते वक्त रोज देखता हूँ,
किवाड़ के उस पार छूटता हुआ मेरा मन
और इस पार घुटने-घुटने चलकर आता तुम्हारा मन।
शाम को घर लौटने की व्याकुलता रहती है,
तुम्हारी हँसी के साथ झरने वाले
चमेली-चम्पा-गेंदा-गुलाब समेटने के लिए।
पता नहीं तुम कौन-सा जग जीत लेती हो,
मुझे सामने पाकर।
अपने नन्हे घुटनों पर खड़ी हो जाती हो, दोनों हाथ विजयी मुद्रा में उठाकर।
जब तक कलेजे से लटक नहीं जाती हो,
सुकून नहीं मिलता तुम्हें और मुझे भी।
मेरे साथ से तुम्हें कौन-सा खजाना मिलता, मुझे पता नहीं।
लेकिन हाँ, मुझे जरूर धरती पर स्वर्ग मिल जाता है।
तुम्हारी अजब लीला है।
मेरे घर आने के बाद तो जैसे धरती पर कांटे उग आते हैं,
गोदी से उतरने का नाम नहीं लेती हो।
फिर तो नींद भी तुम्हें मेरे कंधे पर ही आती है।
खैर, बहुत बात हैं लिखने-कहने को, ख़त्म नहीं होंगी।
कभी-कभी मन करता है, घड़ी की सुईयों से लटक जाऊँ,
कालचक्र के पहिये को थाम लूँ।
ऐसे ही रहे यह समय, हमेशा के लिए।
तुम नन्ही परी और मैं अल्हड़ पिता।"
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- लोकेन्द्र सिंह -
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