शनिवार, 7 नवंबर 2015

असहिष्णुता पर अब कांग्रेस की राजनीति

 दे श में असहिष्णुता का माहौल हो न हो, राजनीति जरूर ऐसा अहसास करा देगी। बढ़ती कथित असहिष्णुता के खिलाफ सम्मान वापसी के प्रपंच को अब कांग्रेस ने लपक लिया है। इस मुद्दे पर कांग्रेस के तेवर देखकर समझा जा सकता है कि 'असहिष्णुता का माहौल' अभी ठंडा होने वाला नहीं है। इस बार (शीतकालीन सत्र) संसद को ठप करने का नया मुद्दा कांग्रेस को मिल गया है। कांग्रेस नेता मंगलवार को संसद भवन से मार्च करते हुए राष्ट्रपति भवन पहुंचे। पैदल मार्च में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मनमोहन सिंह सहित प्रमुख कांग्रेस नेता शामिल थे। उन्होंने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में डर और असहनशीलता के माहौल पर चिंता व्यक्त की गई है। कौन-सा डर और कैसी असहनशीलता? अब इसको स्पष्ट करने की जरूरत रह नहीं गई है। 

       रैली के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने खुलकर इस तरह की घटनाओं के लिए भारतीय जनता पार्टी को दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी की चुप्पी ऐसी घटनाओं को समर्थन दे रही है। शायद, सोनिया और राहुल को याद नहीं रहा होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मुद्दे पर अपनी बात कह चुके हैं। राष्ट्रपति दो-तीन दफा असहिष्णुता पर चिंता जता चुके हैं। प्रधानमंत्री ने अपनी ओर से कहा था कि भाजपा के किसी भी नेता और सरकार के किसी भी मंत्री की बात को तवज्जो नहीं दी जाए बल्कि राष्ट्रपति महोदय की बात को आचरण में लाया जाए। सब राष्ट्रपति के दिखाए मार्ग का अनुसरण करें। यानी स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री दादरी जैसी घटनाओं के साथ नहीं हैं बल्कि वे तो राष्ट्रपति के बयान के साथ हैं। अब कांग्रेस और क्या सुनना चाहती है प्रधानमंत्री से? 
       प्रधानमंत्री के इशारे पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बयानवीर भाजपा नेताओं और मंत्रियों को समझा भी चुके हैं। इस मसले के समाधान की ओर कोई नहीं बढ़ रहा है, सब 'असहिष्णुता' को बढ़ावा दे रहे हैं। भाजपा को घेरने के साथ राहुल गांधी कथित असहिष्णुता के मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घसीटने से भी नहीं चूके। दादरी की घटना से संघ या उसके किसी अनुषांगिक संगठन का भी कोई लेना-देना नहीं है। आखिर किस आधार पर वे संघ पर असहिष्णुता का वातावरण बनाने का आरोप लगा रहे हैं? या फिर ऐसे ही लफ्फाजी कर रहे हैं। 
      राहुल गांधी को समझना चाहिए कि भ्रष्टाचार के साथ-साथ अनैतिक हद तक हिन्दू विरोध ही उन्हें आम चुनाव-2014 में ले डूबा था। कांग्रेसी नेताओं ने चुनावी हार की समीक्षा में इस बात को स्वीकार भी किया था। संघ जैसे संगठन पर तथ्यहीन आरोप लगाकर राहुल गांधी बड़ी संख्या में लोगों को कांग्रेस के ही खिलाफ खड़ा कर लेते हैं। संघ ने दादरी की घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। प्रो. कलबुर्गी के प्रति भी संघ ने शोक संवेदनाएं प्रकट की हैं। इस सबकी अनदेखी करके भी यदि कांग्रेस संघ की प्रतिष्ठा को चुनौती देती है तो खुद की छवि ही धूमिल कराएगी। 
      कांग्रेस को चाहिए कि असहिष्णुता के मुद्दे पर जरा सोच-विचारकर राजनीति करे। यह राजनीति करने का मुद्दा नहीं है। राजनीति से यह मुद्दा शांत नहीं होगा बल्कि भड़केगा ही। कांग्रेस और वामपंथ को अपनी वैचारिक असहिष्णुता को त्यागकर केन्द्र सरकार से संवाद करना चाहिए। आग में घी डालने की अपेक्षा आग (यदि कहीं आग लगी हो तो) को ठंडा करने का प्रयास करना चाहिए। यह सामाजिक सौहार्द का विषय है, राजनीति का नहीं। राजनीति के लिए और भी विषय पड़े हैं। विरोधी पार्टियां सरकार के डेढ़ साल के काम-काज को आधार बनाकर राजनीति करें तो देश का अधिक भला होगा।  

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