बि हार चुनाव की करारी हार से भारतीय जनता पार्टी को कितना नुकसान पहुंचेगा, इसका आकलन अभी नहीं किया जा सकता। लेकिन, पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का आपसी मतभेद जरूरत पार्टी को गंभीर क्षति पहुंचा सकता है। बिहार चुनाव के बाद भाजपा नेता कुछ असंतुलित हो गए हैं। मध्यप्रदेश के कद्दावर नेता और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने पार्टी लाइन से अलग चल रहे सांसद शत्रुघन सिन्हा के लिए अमर्यादित टिप्पणी की तो बदले में सिन्हा ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, शांता कुमार, यशवंत सिन्हा और मुरली मनोहर जोशी ने भी बेमौके अपना आक्रोश प्रकट किया है। चारों वरिष्ठ नेता पार्टी के हितचिंतक के तौर पर देखे जाते हैं। बाहरी तौर पर देखने पर उनके बयान में पार्टी हित ध्वनित भी होता दिख रहा है। लेकिन, असलियत तो सब जानते हैं कि बिहार की चुनावी हार के संबंध में मीडिया में बयान जारी करके उन्होंने पार्टी की चिंता की है या स्वयं की?
मार्गदर्शकों की चौकड़ी को नरेन्द्र मोदी पर प्रहार करने का यह सुअवसर प्रतीत हो रहा है। वरना क्या कारण है कि मार्गदर्शकों ने पार्टी फोरम पर अपनी बात कहने की अपेक्षा सीधे मीडिया के माध्यम से संवाद किया? उनका कहना है कि जीत का श्रेय लेने वाले लोगों को हार की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। सही बात है- ’मीठा-मीठा गप-गप और कड़वा-कड़वा थू-थू’ - की मानसिकता कम से कम भाजपा में तो नहीं चलनी चाहिए। चुनाव में अप्रत्यासित हार के कारणों का ईमानदारी से विश्लेषण होना ही चाहिए और हार के लिए जिम्मेदारी भी तय होनी चाहिए।
मार्गदर्शकों की चिंता को संज्ञान में लेते हुए भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके वेंकैया नायडू, नितिन गडकरी और केन्द्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने भी संयुक्त बयान जारी करके आडवाणी की मंशा को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। उन्होंने कहा कि भाजपा सौभाग्यशाली पार्टी है कि इसका नेतृत्व अटल-आडवाणी की जोड़ी ने किया है। इस जोड़ी ने ही सामूहिक जिम्मेदारी लेने की स्वस्थ परंपरा की शुरुआत की थी। यानी बिहार चुनाव की हार के लिए सामूहिक जिम्मेदारी तय करके पार्टी उनकी ही परंपरा का पालन कर रही है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि पार्टी अपने वरिष्ठ नेताओं के सुझावों पर ध्यान देंगे। इधर और भी सांसद और बीजेपी नेता आडवाणी के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए कह रहे हैं- ‘आडवाणी जी बयान वापस लें, वरना उनके विरोध में मार्च निकालेंगे।‘
बहरहाल, आडवाणी की चिंता सही हो सकती है लेकिन उनके कथन की विश्वसनीयता इसलिए कम हो जाती है क्योंकि आम चुनाव के पूर्व से उनका नरेन्द्र मोदी विरोध जगजाहिर है। उन्होंने नरेन्द्र मोदी की राह में यथासंभव रोड़े अटकाए थे। यदि उस समय आडवाणी ने वक्त की नजाकत को समझकर खुद को पीछे कर लिया होता तो आज उनकी बात अधिक गंभीरता से सुनी जाती। इस समय तो उनकी बात का असर पार्टी के शीर्ष नेताओं को तो छोड़िए सामान्य कार्यकर्ताओं पर भी अधिक नहीं होगा। इसलिए आडवाणी और दूसरे असंतुष्ट नेताओं को समझना होगा कि सबसे पहले वे अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल करें। पार्टी की असल में चिंता है तो मीडिया में बयानबाजी की अपेक्षा पार्टी फोरम पर अपनी बात रखें। पार्टी पर दबाव बनाएं।
इसी तरह उन नेताओं को भी समझना होगा जो चुनावी हार का ठीकरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माथे पर फोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। यह मीडिया और भाजपा विरोधियों के मनमाफिक मुद्दे हैं। भाजपा के नेता अपने ही हाथों पार्टी के खिलाफ माहौल बनाने के लिए मीडिया और विरोधियों को मुद्दे दे रहे हैं। खुद को लोकतांत्रिक पार्टी मानने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए इस तरह का आपसी विवाद ठीक नहीं है। आपसी खींचतान में पार्टी और पार्टी के शीर्ष नेताओं का उपहास उड़ाया जा रहा है। आपसी मतभेद कम होने की जगह और गहरे हो रहे हैं। पार्टी ने जो जनाधार पाया है, आपसी तनाव उसको भी नुकसान पहुंचा रहा है।
बड़-बड़ बतिया के झाड़ लगवलीं
जवाब देंहटाएंकूड़ा-कबाड़ भइले घर ना बुहरलीं
तोर बुहरी मं लागल अगिनिया हो, धुआँ होइबे करी ॥
पनिया के जइसन पइसा बहवलीं
पटना सहरिया के मन नाहिं बुझलीं
गुंडवन के बंटलन टिकिटिया हो, हार होइबे करी ॥
गुन नाहीं देखलीं भोटवा गिरवलीं
गाई के दुधवा संपवा के पिलवलीं
फेर चोरवा के दिहलन चबिया हो, लूट होइबे करी ॥
अनुभव के पिटरिया के घर से भगवलीं
होतय बिहनिया माई-बाबू भी गइलीं
बबुनी के भइल उमिरिया हो, गजब होइबे करी ।
देहिंया मं नदिया अगिनिया लगवली
घूमि-घूमि घर-घर के दियरा बुतवली
गाँव हो गइल हमरओ सहरिया हो, पांक होइबे करी ।