दु निया के खूबसूरत शहर पेरिस पर इस्लामिक स्टेट (आईएस) का हमला समूची मानवता पर हमला है। आईएस के आतंकियों ने पेरिस की सड़कें लाल कर दी हैं। विश्व स्तब्ध है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए विख्यात फ्रांस पर यह तीसरा आतंकी हमला है। कार्टून पत्रिका ’शार्ली एब्दो’ के कार्यालय पर हुआ हमला अभी दुनिया भूली भी नहीं थी कि आईएसआईएस ने 14 नवम्बर (शुक्रवार) को फ्रांस की राजधानी पेरिस में सिलसिलेवार धमाके करके सैकड़ों लोगों की जान ले ली। हमले में सैकड़ों घायल हैं, जो जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हुए ईश्वर से पूछ रहे हैं कि आखिर उनका क्या दोष था? ये दरिन्दे मानवता का रक्त कब तक बहायेंगे? आईएस के इस हमले से फ्रांस ही नहीं दहला है, आतंक के निशाने पर रहने वाले दूसरे देश भी चिंतित हो उठे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने अपने देश की जनता को भरोसा और साहस देते हुए कहा है कि आतंकवाद के विरुद्ध हम एक ऐसा युद्ध छेड़ने जा रहे हैं, जिसमें किसी पर रहम नहीं होगा। आतंकियों को पता चलना चाहिए कि उनका सामना ‘प्रतिबद्ध-एकजुट’ फ्रांस से हुआ है।
दुनिया जब फ्रांस के नागरिकों के प्रति संवेदना व्यक्त कर रही है और बर्बरता की निंदा कर रही है तब कथित असहिष्णुता और अतिवाद पर तर्क करने वाले बुद्धिजीवियों और विचारधाराओं ने पेरिस हमले पर अजीब ढंग से खामोशी की चादर ओढ़ ली है, क्यों? पेरिस की आहत जनता के लिए उनके मुखारबिंद से संवेदना के दो शब्द भी नहीं फूट सके हैं, क्यों? बेशर्मी की हद तो यह है कि कुछ लोग इस हमले को सही साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। सीरिया में आतंकवाद के खिलाफ फ्रांस की लड़ाई को हमले के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। आखिर आतंक के खिलाफ सब एकजुट क्यों नहीं हो पा रहे हैं? विचारधाराएं, धर्म और देश आतंक के नाम पर भी खेमे में क्यों बंटे हैं? आतंक को निस्तनाबूद करना है तो सबको एक साथ आना पड़ेगा। धर्म को आतंक की स्पष्टतौर पर निंदा करनी होगी। विचारधाराओं को आतंक-आतंक में फर्क करना बंद करना होगा? आतंकियों से किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं रखनी चाहिए। दुनिया के तमाम देशों को भी आतंक के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना होगा। आतंक के खिलाफ जंग छेड़ने की जरूरत सिर्फ आतंक से पीड़ित देशों को ही नहीं है, बल्कि यह सबके लिए जरूरी है। आज नहीं संभले तो कल आतंक की यह आग और अधिक विकराल होकर शेष देशों तक भी पहुंच ही जाएगी।
भारत आतंक की पीड़ा को गहराई से समझता है। भारत के शरीर पर आतंक के बहुत घाव हैं। आईएस का खतरा भी भारत पर मंडरा रहा है। इसलिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार दुनिया से आग्रह कर रहे हैं कि सबसे पहले आतंक की परिभाषा तय की जाए। मोदी ने पेरिस में हुई बर्बरता को ‘मानवता पर हमला’ बताया है। उन्होंने कहा है कि दुनिया को स्वीकार करना चाहिए कि यह हमला केवल पेरिस पर नहीं है, केवल फ्रांस के नागरिकों पर नहीं है बल्कि यह तो समूची मानवता पर हमला है। इसलिए जो ताकतें मानवता में विश्वास रखती हैं, उन्हें एकसाथ आकर ऐसे हमलों की निंदा करनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी कहा है कि इससे पहले कि बहुत देर हो जाए संयुक्त राष्ट्र को आतंकवाद को परिभाषित करना चाहिए। ताकि दुनिया जान सके कि कौन आतंक के खिलाफ है और कौन आतंक के साथ खड़ा है?
मोदी की चिंता जायज है। आतंकवाद को स्पष्ट किए बिना उसके खिलाफ निर्णायक जंग लड़ना बहुत मुश्किल है। आतंक पर सब देशों की नीयत को समझ लेना भी जरूरी है। ताकि तय हो सके कि किससे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सहयोग की उम्मीद करें और किससे नहीं? वरना अभी तो आतंकवाद को पालने वाले खुद को ही आतंक से पीड़ित बताने लगते हैं। अपने स्वार्थों के कारण कुछ देशों, धर्मों और विचारधाराओं ने आतंकवाद को ‘अच्छे आतंकवाद’ और ‘बुरे आतकंवाद’ में बांटकर रखा है। बहरहाल, मानवता पर ऐसा हमला दोबारा न हो, इसके लिए समय गंवाए बिना भारत और भारतीय प्रधानमंत्री के आग्रह पर गंभीरता से दुनिया को चिंतन करना चाहिए। दुनिया के सब देशों को आतंकवाद के खिलाफ ‘प्रतिबद्धता-एकजुटता’ दिखानी ही होगी।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-11-2015) को "छठ पर्व की उपासना" (चर्चा-अंक 2163) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....