भ्र ष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का चेहरा रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने 'लालू-केजरी मिलन' प्रकरण पर खुशी जताई है। लेकिन, यह खुशी अरविन्द केजरीवाल के लिए चिंता का बहुत बड़ा विषय होना चाहिए। कई ऐसे अवसर-प्रकरण गवाह हैं जब सब ओर से केजरीवाल की कड़ी आलोचना हो रही थी तब अन्ना ने केजरीवाल की पीठ पर हाथ रखा था। उनके प्रयासों का समर्थन किया था। आलोचकों के सामने खड़ा होने का हौसला दिया था। लेकिन, भ्रष्टाचार को गले लगाने के प्रकरण में अन्ना ने केजरीवाल से न केवल पल्ला झड़ा लिया है बल्कि कड़ी टिप्पणी भी कर है। उन्होंने कहा- 'लालू प्रसाद यादव को गले लगाकर अरविन्द ने अच्छा काम नहीं किया है। इससे समाज में गलत संदेश गया है। मैं खुश हूं कि मैं अरविन्द से नहीं जुड़ा हूं। वरना केजरीवाल की इस गलती पर लोग मुझ पर भी सवाल उठाते।'
अन्ना हजारे की इस टिप्पणी का आशय स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल अपने सिद्धांतों से डिग गए हैं। जिन उद्देश्यों और संकल्पों के साथ केजरीवाल राजनीति में आए थे, वे अब कहीं खो गए हैं। वैकल्पिक राजनीति के दावे की हवा निकल गई है। भ्रष्टाचार के दोषी लालू प्रसाद यादव के गले मिलने के बाद आम समाज की ओर से आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल को कड़ी आलोचना और नाराजगी झेलनी पड़ रही है। समाज के इसी दबाव के कारण अरविन्द केजरीवाल को सफाई देनी पड़ गई। यह संयोग ही है कि भ्रष्टाचार आंदोलन के अगुवा रहे अन्ना हजारे की टिप्पणी और अरविन्द केजरीवाल की सफाई लगभग साथ-साथ आई है। लेकिन, अन्ना की टिप्पणी गंभीर है, जबकि अरविन्द की 'सफाई' में बेईमानी साफ-तौर पर झलक रही है।
कल तक आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता, कार्यकर्ता और समर्थक लालू-केजरीवाल 'मिलन' को सामान्य शिष्टाचार बता रहे थे। वहीं अब केजरीवाल ने इसे 'लालू की जबरदस्ती' बता दिया है। आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अरविन्द केजरीवाल ने बिहार में नीतीश कुमार की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में हुए प्रकरण पर सफाई देते हुए कहा- 'जैसे ही वे मंच पर पहुंचे, लालू ने मुझसे हाथ मिलाया और उसके बाद उन्होंने मुझे खींच कर गले लगा लिया। मैं अब भी भ्रष्टाचार का विरोध करता हूं।' उनकी इस तरह की 'सफाई' पर जनता मर-मिटेगी, यदि केजरीवाल ऐसा सोच रहे हैं तो यह उनकी नासमझी है। जनता को यह 'शुतुरमुर्गी व्यवहार' स्वीकार नहीं है। लालू-केजरी मिलन को देश ने अपनी आँखों से देखा है। इसलिए उसको बेवकूफ बनाना इतना आसान न होगा। इस मिलन समारोह में 'जबरदस्ती' कहीं भी नहीं दिख रही है। जिस गर्मजोशी के साथ केजरीवाल नीतीश कुमार से मिले, उसी गर्मजोशी के साथ उन्होंने लालू को गले लगाया था। अपनी गलती को ईमानदारी से स्वीकार करने की जगह केजरीवाल इस प्रकरण को 'लालू की जबरदस्ती' साबित करना चाहते हैं तो यह उनके बेईमान व्यवहार को उजागर करता है।
वैसे केजरीवाल की ईमानदारी और नैतिकता तो उसी समय संदिग्ध हो जब उन्होंने बिहार चुनाव में नीतीश कुमार को वोट देने की अपील की थी। क्योंकि, नीतीश कुमार उस गठबंधन का हिस्सा थे जिसमें कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद हिस्सेदार थीं। कांग्रेस और लालू के भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगा-लगाकर केजरीवाल ने जनता का समर्थन और प्यार पाया था। आज जनता केजरीवाल से इसीलिए नाराज है। लालू को गले लगाने के प्रकरण को जनता मानती है कि केजरीवाल ने भ्रष्टाचार को गले लगाया है। भाजपा ने इस आशय के पोस्टर दिल्ली में जगह-जगह लगाए हैं। वहीं, आम आदमी पार्टी के संस्थापक रहे शांति भूषण, प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने भी कहा है कि केजरीवाल सिद्धांतों को भाड़ में झौंककर चलताऊ राजनीति में कूद पड़े हैं।
राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अरविन्द केजरीवाल को फिर से राष्ट्रीय संयोजक बनाने के निर्णय से पार्टी को व्यक्ति केन्द्रित करने और तानाशाह की तरह चलाने के आरोपों को भी पुष्टी मिली है। बहरहाल, अरविन्द केजरीवाल को समझना होगा कि ईमानदारी केवल नारों, बयानों और विचारों से नहीं आती, बल्कि व्यवहार से ईमानदारी की प्रामाणिकता साबित करनी पड़ती है।
आखिर अपनी जात बिरादरी से बाहर कितने लोग सोच पाते हैं। .. जात भाई बनने से कौन रोकने-टोकने वाला। ..राजनीति काजल को कोठरी है. ..
जवाब देंहटाएं