महाकुंभ का संदेश : एक हो पूरा देश
भारत की संस्कृति का आधार एकात्मता का स्वर है। भारतीय समाज में जो ऊंच-नीच की बीमारी आई, वह विशेष कालखंड की देन है। सत्य तो यह है कि भारत की संस्कृति में ऊंच-नीच के लिए कोई स्थान नहीं। यह दुनिया की इकलौती संस्कृति है जो कहती है कि हम सबमें ईश्वर का अंश है। यानी जो पिंड तुम्हारा है, वही पिंड मेरा है। भारत का दर्शन न तो जाति के आधार पर और न ही रंग-रूप एवं वेष-भूषा के आधार पर लोगों में विभेद करता है। भारत का दर्शन तो सबको अपना मार्ग चुनने की स्वतंत्रता देता है। यह बात हिन्दुत्व की आलोचना करनेवालों को समझनी चाहिए। हिन्दुत्व और भारतीयता के मूल विचार को समझना है तो उसका एक अवसर महाकुंभ के रूप में आ रहा है। कुंभ ऐसा मेला है, जहाँ भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं। सभी जाति-बिरादरी, प्रांत, भाषा और संप्रदाय के लोग कुंभ में शामिल होते हैं, बिना किसी भेदभाव के। सब मिलकर संगम में डुबकी लगाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा है कि “महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है। कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है। इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं। लाखों संत, हजारों परम्पराएँ, सैकड़ों संप्रदाय, अनेक अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है। कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है। अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा”।
नि:संदेह, एकात्मता के जो दर्शन महाकुंभ में होते हैं, वह कहीं और नहीं हो सकते। ईशा फांउडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं कि “भारतीय संस्कृति इस धरती पर सबसे जटिल और रंगबिरंगी संस्कृति है। अगर आप गौर से देखें, तो पाएंगे कि हर पचास से सौ किलोमीटर पर लोगों के जीने का तरीका ही बदल जाता है। एक स्थान ऐसा है जहां इस जटिल संस्कृति को आप वाकई बहुत करीब से देख सकते हैं, वह है-कुंभ मेला”। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सह-सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य कहते हैं- “ऐसा कहा जाता है कि हमारे यहाँ विविधता में एकता है। वास्तविकता यह है कि भारतीय संस्कृति का एक ही तत्व है, जो विविध रूप में अभिव्यक्त हुआ है। यह एक तत्व अध्यात्म है”। उनकी यह बात सर्वथा उचित है। क्योंकि विविधता को बाह्य आधार पर एक रखना मुश्किल है जबकि आंतरिक तत्व के कारण विविधता में सहज ही एकात्मता रहती है।
तीर्थराज प्रयाग में आस्था, भक्ति और श्रद्धा का अद्भुत संगम.... #प्रयागराज_महाकुंभ pic.twitter.com/vJLtFnnufu
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) January 1, 2025
वर्तमान परिस्थिति में हिन्दू समाज को महाकुंभ के इस दर्शन से सीख लेकर समाज जीवन में अपना व्यवहार करना चाहिए। हिन्दू समाज को बाँटने के लिए जो ताकतें जोर लगा रही हैं, उन्हें उत्तर देने का संकल्प महाकुंभ में लेना चाहिए। जिस प्रकार हम महाकुंभ में हिन्दू होकर शामिल होते हैं, वही भाव जीवन में रहना चाहिए। हमारी जातीय, भाषायी, प्रांतीय या अन्य पहचान कुछ भी हो सकती है लेकिन हम सब एक हैं। भारतीय संस्कृति के अभिन्न हिस्से हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ में एक आग्रह यह भी किया है कि “इस बार जब भी लोग महाकुंभ में शामिल हों तो वह वहाँ से समाज में एकता बनाए रखने का संकल्प लेकर लौटें”। हिन्दू समाज और उसकी संस्कृति की रक्षा के उद्देश्य से 8वीं शताब्दी में जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने कुंभ के महत्व को स्थापित किया और उसके वास्तविक स्वरूप को उभारा था। जब भारत और हिन्दू धर्म पर आक्रांताओं के आक्रमण हो रहे थे, तब कुंभ मेले हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की रक्षा का माध्यम बने। समय की आवश्यकता है कि हम एक बार फिर कुंभ मेले से एकता का संदेश लेकर समाज के बीच में जाएं।
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