छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकार के हत्यारों को मिले कड़ी सजा
लोकतंत्र की मजबूती के लिए पत्रकारिता एवं पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। कहना होगा कि किसी भी देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं है। भारत में भी पत्रकारों पर हमले होते रहते हैं। यहाँ तक कि उनकी हत्या कर दी जाती है। हालिया घटना छतीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर से जुड़ी हुई है। हत्या के बाद उनके शव को सेप्टिक टैंक में डालकर ऊपर से प्लास्टर कर दिया गया। मुकेश की हत्या के पीछे एक रिपोर्ट को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। यह रिपोर्ट घटिया सड़क निर्माण की पोल खोलने से संबंधित है। पत्रकार मुकेश की रिपोर्ट के अनुसार, ठेकेदार सुरेश चंद्राकार ने मिरतुर से गंगालूर के बीच सड़क बनाने का ठेका लिया था, लेकिन सड़क अधूरी बनने के बाद भी प्रशासन ने 90 प्रतिशत से अधिक भुगतान कर दिया। इस मामले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। इसी मामले को स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकार मुकेश चंद्रकार ने उजागर किया था। उनकी खोजी रिपोर्ट के सामने आने के बाद सड़क निर्माण की परियोजना पर छत्तीसगढ़ सरकार ने जाँच बैठा दी थी। पूरी आशंका है कि इसी कारण ठेकेदारों ने मुकेश को अपने निशाने पर ले लिया। मामले में मुख्य आरोपी सहित चार लोग पकड़े गए हैं।
छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि अपराधियों को ऐसी सजा मिले कि यह अन्य के लिए सबक बन जाए। बताया जा रहा है कि ठेकेदार सुरेश चंद्राकार कांग्रेस का नेता है और उसके रिश्ते बड़े नेताओं से भी है। वह छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस समिति के अनुसूचित जाति विभाग का प्रदेश सचिव है। सुरेश चंद्राकर को कांग्रेस के छत्तीसगढ़ अध्यक्ष दीपक बैज का बहुत नजदीकी बताया जाता है। यह तथ्य सामने आने के बाद इस प्रकरण में राजनीति भी शुरू हो गई है। भाजपा और कांग्रेस एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं। पत्रकारिता क्षेत्र के सभी बंधुओं की माँग है कि पत्रकार की हत्या के मामले में राजनीति न करके निष्पक्ष जाँच की जाए और दोषियों को कड़ी सजा मिले ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इसके साथ ही सरकार खोजी पत्रकारों की सुरक्षा को ध्यान में रखकर कुछ ठोस कदम उठाए। पत्रकारिता की स्वतंत्रता की रक्षा करने का दायित्व सरकार के कंधों पर होता है। सरकार को अपनी इस जिम्मेदारी को समझना होगा।
इस पूरे प्रकरण में पत्रकार मुकेश ने अपना कार्य ईमानदारी से किया। एक पत्रकार का कार्य है कि वह लोकतंत्र के तीनों स्तम्भों की निगरानी करे और वहाँ होनेवाली गड़बड़ियों को उजाकर करे। कहना होगा कि बहुत ही कम समय में अपने कार्य से बीजापुर में रहकर ही 28 वर्ष के युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकार ने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। मुकेश का नाम 2021 में तब पहली बार चर्चा में आया जब बीजापुर में एक नक्सली मुठभेड़ में नक्सलियों द्वारा एक सीआरपीएफ जवान का अपहरण कर लिया गया था। मुकेश और उसके साथियों ने लगातार अपहरणकर्ताओं से संपर्क बनाकर बहुत सी कोशिशों के बाद सीआरपीएफ जवान को नक्सलियों के क़ैद से छुड़ा लिया था। मुकेश इतने अधिक साहसी थे क्योंकि उनका बचपन और किशोरवय बहुत कठिनाईयों में बीता। संघर्ष और जीवन की चुनौतियों को उन्होंने सलवा जुडूम के शिविर में रहकर समीप से देखा है। अपने इसी साहस के कारण वे जनहित की पत्रकारिता को पैनी धार दे रहे थे।
एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में उनका इतना प्रभाव था कि उनकी रिपोर्ट का प्रशासन पर असर होता था और जनता को समाधान मिलता था। मुकेश जैसी पत्रकारिता जिंदा रहे, इसकी चिंता सरकार के साथ-साथ समाज को भी करनी चाहिए। सबको याद रखना चाहिए कि स्वतंत्र और निर्भीक आवाजों को यदि आपराधिक तत्व हत्या करके इसी प्रकार दबाते रहेंगे, तब न तो पत्रकारिता बचेगी और न ही लोकतंत्र।
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