राष्ट्रीय पर्यटन दिवस पर विशेष
श्री दुर्गदुर्गेश्वर रायगड़ में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने शौर्य प्रदर्शन करना सूर्या फाउंडेशन के युवाओं का दल |
श्री दुर्गदुर्गेश्वर अर्थात् हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी- रायगढ़। सह्याद्रि की पर्वत शृंखलाओं में प्राकृतिक रूप से सुरक्षित रायगढ़ हिन्दवी स्वराज्य का बेजोड़ किला है। किला अपने उत्तर और पूर्व से काल नदी से घिरा हुआ है। सह्याद्रि की लहरदार घाटियों एवं घने जंगल में छिपा यह किला दूर से नजर नहीं आता है। यह भी रायगढ़ की विशेषता है। यह किला दुर्जय है। महाराज के जीवित रहते रायगढ़ न केवल प्रतिष्ठा अर्जित कर रहा था अपितु अजेय भी रहा। सब प्रकार से अत्यंत सुरक्षित होने के कारण यूरोप के यात्रियों ने रायगढ़ को ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ भी कहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज सन् 1670 में हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी को राजगढ़ से रायगढ़ लेकर आए। राजसी गौरव एवं भव्यता के साथ 1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक समारोह रायगढ़ पर सम्पन्न हुआ। राज्याभिषेक समारोह में उपस्थित अंग्रेज प्रतिनिधि ऑक्झिंडन ने रायगढ़ राजधानी की सामरिक सुरक्षा और दुर्जेयत्व की प्रशंसा में अपनी दैनंदिनी में लिखा है-“यह किला केवल विश्वासघात से ही जीता जा सकता है, अन्यथा यह दुर्जेय है”। उसका यह कथन लगभग 15 वर्षों के पश्चात् सन् 1689 में प्रमाणित हुआ जब औरंगजेब की सेना के घेरे के समय दुर्गपति सूर्याजी पिसाल द्वारा विश्वासघात करने के कारण किले पर मुस्लिम सल्तनत का अधिकार हुआ। उस समय रायगढ़ में हिन्दवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति शंभूराजे का शासन था।
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हम सुबह 7 बजे तक किले की तलहटी में पहुँच गए थे। किले पर जाने के लिए 1700 से अधिक सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। वर्तमान में रज्जू-मार्ग (रोप-वे) से भी किले पर जा सकते हैं। हालांकि हमने तो पैदल ही किले की मुहिम करने का तय किया था। हम ‘जय भवानी-जय शिवाजी’ का उद्घोष बुलंद करते हुए निकल पड़े दुर्गदुर्गेश्वर रायगढ़ की मुहिम पर। लगभग 1400 सीढ़ियां चढ़कर हम महादरवाजे के सामने थे। किले में प्रवेश के लिए एकमात्र यही दरवाजा बनाया गया था। महादरवाजा दुर्गस्थापत्य का बेजोड़ नमूना है। दरवाजे की दीवारें इतनी मजबूत कि तोप के गोले भी कुछ न बिगाड़ पाएं। बुर्ज बनाकर दरवाजे को और सुरक्षा प्रदान की गई है। शुत्र सेना आसानी से किले में प्रवेश न पाए, इसके लिए दरवाजे से प्रवेश करते ही चौड़ा और सीधा रास्ता नहीं बनाया गया है अपितु पहाड़ के सहारे एक संकरा और घुमावदार गलियारा दिया गया है।
किले में प्रवेश करते ही एक ओर शिरकाई देवी मंदिर है, जिन्हें गढ़देवता की मान्यता प्राप्त है। यह देवता गढ़ की रक्षा करते हैं। दुर्ग में प्रवेश करने से पहले और बाहर जाते समय इनके दर्शन करके प्रार्थना की जाती थी। वर्तमान में जो मंदिर है, वह पुनर्निर्मित है। यहाँ से आगे बढ़ने पर एक खुला मैदान दिखाई देता है, जिसमें एक ओर सिंहासनारूढ़ छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा है और उनके सामने मैदान की दूसरी ओर बाजार पेठ है। बीच में जो खाली मैदान है, उसे ही होलिका माल कहा जाता है। बताते हैं कि यहाँ होलिका दहन किया जाता था, इसलिए इसका होलिका माल नाम पड़ गया।
रायगढ़ किले पर ही वाडेश्वर महादेव मंदिर (वर्तमान में जिसे जगदीश्वर मंदिर कहते हैं) के सामने छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि है। गढ़पति महाराज श्रीशिव छत्रपति ने रायगढ़ पर 3 अप्रैल 1680 में विश्राम लिया। उनके पुत्र और दूसरे छत्रपति शंभूराजे महाराज ने वाडेश्वर मंदिर के सामने अष्टकोणीय संरचना में समाधि बनायी थी। बाद में, जब रायगढ़ अंग्रेजों के कब्जे में चला गया, तब यहाँ के अन्य स्मारकों की तरह समाधि स्थल की भी अनदेखी की गई या कहें जानबूझकर नुकसान पहुँचाया गया ताकि समाधि स्थल पर आकर छत्रपति के जीवन से प्रेरणा लेकर अन्य कोई शिवाजी खड़ा न हो। परंतु बाद में बाल गंगाधर तिलक ने 1895 में समाधि स्थल का पुनर्निर्माण कराया। उन्होंने इसके लिए ‘श्री शिवाजी फंड समिति’ की स्थापना की थी। गुरुजी ने बताया कि लगभग 250 किलोमीटर दूर स्थित सांगली से प्रतिदिन कोई एक व्यक्ति आकार समाधि पर पुष्पार्चना करता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज का समाधी स्थल |
रायगढ़ का हुजूर बाजार या बाजारपेठ भी कौतुहल पैदा करता है। यह बाजार एक तरह से होल सेल मंडी था। यहां की दुकानों में धन–धान्य के प्रतिदर्श (सैंपल) रहते थे। सैंपल चयन करने के बाद उस सामग्री को दुर्ग से नीचे से खरीदा जाता था। बांई ओर 42 दुकानें और दाईं ओर 43 दुकानें थीं। कुल 85 दुकानें थीं। इन दुकानों में सभी प्रकार की सामग्री मिलती थी। दुकानों की ऊंचाई इतनी थी कि घुड़सवार घोड़े पर बैठे–बैठे खरीदारी कर सकता था। दुकान तीन हिस्से में थी– पहले हिस्से में दो चबूतरे, दूसरे में गोदाम और तीसरा हिस्सा रहने और खाना बनाने की लिए था।
रायगढ़ का राजदरबार हिन्दवी स्वराज्य के सामर्थ्य के दृश्य दिखाता है। एक विशाल द्वार से प्रवेश के बाद विस्तृत परिसर में राजदरबार फैला हुआ है। महाराज की शासन व्यवस्था में अष्टप्रधान यानी आठ प्रमुख मंत्री होते थे। दरबार को देखकर समझा जा सकता है कि सामने ऊंचे सिंहासन पर श्रीशिव छत्रपति विराजते होंगे और दोनों और मंत्रिगण एवं प्रशासन के प्रमुख अधिकारी बैठते होंगे। सिंहासन का स्थान दो मंजिला था। यह दरबार खुला हुआ था। राजदरबार के पीछे सचिवालय है, जिसे छोटा दरबार भी कहते हैं। ज्यादातर समय यहीं से शिवाजी काम करते थे। बड़े दरबार लगभग 5–6 बार ही लगाया गया था। इसी सचिवालय में अभिलेखागार भी था। सचिवालय से लगा हुआ राजप्रसाद था। जहां शिवाजी महाराज और उनकी रानियों का आवास था।
रायगढ़ पर हमने पश्चिमी छोर पर स्थित हिरकणी बुर्ज देखा। यहाँ से नीचे बसे ‘हिरकणी गाँव’ को देखा जा सकता है। पाचाड स्थित पुण्यश्लोका जिजाऊ माँ साहेब के महल के अवशेष भी स्पष्ट देखे जा सकते हैं। इसके अलावा रायगढ़ पर हमने कुशावर्त तालाब, हत्ती तालाब, गंगासागर तालाब, वाघ दरवाजा, बारुदखाना, बारह टाकी, टकमक टोक, भवानी कडा, हनुमान टांकी, हत्थी ताल और नगारखाना भी देखा।
भोपाल-इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्रिका 'सुबह सवेरे' में प्रकाशित |
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