पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को बताया लुटेरा
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को आक्रमणकारी और डाकू-लुटेरा बताकर खलबली मचा दी है। आसिफ ने समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि “महमूद गजनवी आता था और लूटमार करके वापस चला जाता था। हालांकि, हमारे यहाँ उसे हीरो के तौर पर चित्रित किया जाता है, लेकिन मैं उसे हीरो नहीं मानता”। उनके बयान को पाकिस्तान में ‘एंटी पाकिस्तान’ कहा जा रहा है। पाकिस्तान के दूसरे बड़े नेता रक्षा मंत्री के बयान को ‘भारतीय सोच’ बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान महमूद गजनवी को अपना आदर्श मानता है। यहाँ तक कि पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों को गजनवी का नाम दिया है। हालांकि, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का कहना बिल्कुल ठीक है क्योंकि जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और यहाँ लूट-मार की थी, तब पाकिस्तान नाम का अस्तित्व ही नहीं था। भले ही पाकिस्तान इतिहास को झुठलाए लेकिन यह सत्य है कि भारत और पाकिस्तान का साझा इतिहास है। वह इतिहास बताता है कि पाकिस्तान के लिए भी महमूद गजनवी एक लुटेरा ही था।
दुर्भाग्य की बात यह है कि जिस सच को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री आसिफ ने स्वीकार कर लिया है, उसे भारत में बैठे कई लोग स्वीकार नहीं करते हैं। भारत पर हमला करनेवाले महमूद गजनवी और चंगेज खान से लेकर बाबर तक को यदि आक्रांता कहा जाता है तब यहाँ भी अनेक सेकुलर नेता एवं बुद्धिजीवी उनके वकील बनकर खड़े हो जाते हैं। ऐसे लोग लुटेरों को लुटेरा कहे जाने से इतने अधिक आहत हो जाते हैं कि वैचारिक हिंसा पर उतर आते हैं। यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में अनेक स्थान ऐसे ही बर्बर लुटेरे एवं आक्रांताओं के नाम से पहचाने जाते हैं। जब वर्तमान मोदी सरकार आक्रांताओं के निशानों को मिटाने का प्रयत्न करती है, तब यही सेकुलर ब्रिगेड हो-हल्ला मचाती है। सोचिए, जिस बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को नष्ट करने का भयंकर अपराध किया, उसके नाम पर हमारे यहाँ रेलवे स्टेशन है। जिस बाबर ने भारत में कत्लोगारत की, उसके नाम से एक समय तक तथाकथित बाबरी ढांचा था, जिसे मस्जिद बताकर एक बड़ा वर्ग उसके साथ खड़ा होता था।
आक्रांताओं के संबंध में पाकिस्तान के रक्षा मंत्री की सोच स्पष्ट है लेकिन भारत में कई लोग भ्रम का शिकार हैं। जिस बाबर के नाम पर भारत में छाती पीटी जाती है, उसे तो अफगानिस्तान ने भी अपना नहीं माना। जनसंघ के बड़े नेता रहे बलराज मधोक ने अपनी पुस्तक ‘जिन्दगी का सफर-2, स्वतंत्र भारत की राजनीति का संक्रमण काल’ में उल्लेख किया है कि वह अगस्त 1964 में काबुल यात्रा पर गए। वहाँ उन्होंने काबुल स्थित बाबर का मकबरा देखा। इतने बड़े बादशाह के मकबरे की हालत खस्ता थी। इसके ईदगिर्द न सुन्दर मैदान था और न फूलों की क्यारियां। यह देख बलराज मधोक ने मकबरा की देखभाल करनेवाले एक अफगान कर्मचारी से पूछा कि इसके रखरखाव पर विशेष ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? उसका उत्तर सुनकर वे अवाक रह गए और शायद आप भी सोचने पर मजबूर हो जाएं। उसने मधोक को उत्तर दिया था – “कुत्सित विदेशी के मकबरे का रखरखाव हम क्यों करें?” वास्तव में बाबर काबुल के लोगों के लिए विदेशी ही था। उसने फरगना से आकर काबुल पर अधिकार कर लिया था। परन्तु कैसी विडम्बना है कि जिसे काबुल वाले विदेशी मानते हैं उसे हिन्दुस्तान के पथभ्रष्ट बुद्धिजीवी हीरो मानते हैं। इसका मूल कारण उनमें इतिहास-बोध और राष्ट्रभावना का अभाव होना है।
जिस दिन लोग निरपेक्ष भाव से इतिहास को देखना शुरू करेंगे, उन्हें भी पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ की भाँति महमूद गजनवी से लेकर बाबर तक में आक्रांता और लुटेरा नजर आने लगेगा। जो लोग केवल संप्रदाय के नाम पर इन लुटेरों को अपना हीरो मानते हैं, उन्हें एक बार अपने बारे में विचार करना चाहिए। साथ ही, पाकिस्तान के रक्षा मंत्री के बयान पर गहराई और गंभीरता से चिंतन करना चाहिए। विचार करना चाहिए कि हमें अपना हीरो किन्हें बनाना चाहिए?
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