धार्मिक कहानियां सिखाती हैं जीने की कला
AI द्वारा निर्मित प्रतीकात्मक चित्र |
सार्थक और देवकी का परिवार बहुत धार्मिक है। उनके माता-पिता अकसर श्री रामचरितमानस और श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। एक दिन सार्थक और देवकी अपनी माँ के पास बैठे थे। उनके मन में जिज्ञासा उठी कि मम्मी और पापा धार्मिक किताबें क्यों पढ़ते रहते हैं। एक ही प्रकार की पुस्तक को बार-बार पढ़ने से क्या होता है? दरअसल, सार्थक और देवकी को धर्म-अध्यात्म और भारतीय संस्कृति की उतनी अधिक जानकारी नहीं थी क्योंकि वे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, वहाँ के पाठ्यक्रम में भी भारत की कहानियां नहीं पढ़ाई जाती हैं।
सार्थक और देवकी ने अपने मन में आए प्रश्न माँ से पूछ लिए। बच्चों के इन प्रश्नों से पूजा घर में दीपक लगा रही माँ के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव उभर आए। उन्हें अच्छा लगा कि अपनी संस्कृति को जानने की इच्छा बच्चों में है। सार्थक-देवकी के माता-पिता भी अप्रत्यक्ष रूप से अपने बच्चों को धार्मिक संस्कार देने का प्रयास करते थे। उन्होंने दोनों बच्चों को अपने पास बिठाया और कहा- बच्चो, रामायण और महाभारत की ये कहानियां हमें जीवन जीने की कला सिखाती हैं। हमारे भगवानों ने मानव रूप में जन्म लेकर हमारे सामने उदाहरण प्रस्तुत किया है कि कैसी परिस्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम रामायण बार-बार इसलिए पढ़ते हैं ताकि राम की कहानी को हम आत्मसात कर सकें। एक आदर्श बेटा, आदर्श पिता, आदर्श पति, आदर्श राजा कैसा होता है, यह राम के जीवन से सीखना चाहिए। जब तुम लोग रामायण पढ़ोगे तो भगवान राम तुम्हें बताएंगे कि जीवन में धैर्य और त्याग कितना महत्वपूर्ण हैं। राम का जीवन हमें सिखाएगा कि हमें मुश्किल समय में भी हार नहीं माननी चाहिए। इसी तरह, जब हम कृष्ण की कहानी को पढ़ते हैं तो सीखते हैं कि हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए और दूसरों की मदद करनी चाहिए। राम और कृष्ण के बारे में बताते समय माँ ने सार्थक और देवकी को दोनों के जीवन के कुछ प्रसंग भी सुनाए।
माँ ने दोनों बच्चों को ध्रुव की कहानी भी सुनायी और बताया कि जिस प्रकार ध्रुव ने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी। उसी प्रकार हमें अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समर्पित होकर अध्ययन करना चाहिए। आज के समय में अध्ययन ही तपस्या है।
माँ दोनों से कहती है कि भारत के इतिहास में ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं, जिनकी कहानियां बार-बार पढ़ने और सुनने से हमारे मन में भी वैसा बनने का भाव जागता है। जब हम श्रवण कुमार की कहानी सुनते हैं, तो माता-पिता की सेवा का भाव पैदा होता है। जब हम भक्त प्रह्लाद की कहानी सुनते हैं तो बुराई के बीच में भी अच्छे और सच्चे कैसे रहना चाहिए, यह सीखते हैं। “तो बच्चो, इसलिए मैं और आपके पापा, बार-बार रामायण, महाभारत और दूसरी पुस्तकों का पाठ करते हैं ताकि हम अपने धर्म और संस्कृति से अच्छा मनुष्य बनना सीखते रहें। अपने धर्म की सीख को भूलें नहीं।”
माँ की बातें सुनकर दोनों बच्चों के चेहरे पर संतुष्टी का भाव था। मन ही मन उन्होंने भी तय किया कि अब हम भी इन कहानियों को पढ़ेंगे।
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