शनिवार, 11 जनवरी 2025

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर पर आरएसएस के प्रचारक के विचार

पुस्तक चर्चा : बाबा साहब के विविध पहलुओं की अभिव्यक्ति - राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. अंबेडकर

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संबंध में सबने अपने-अपने दृष्टिकोण बना रखे हैं। उनके विचारों एवं व्यक्तित्व को समग्रता से देखने के प्रयास कम ही हुए हैं। बाबा साहब को लेकर राजनीतिक क्षेत्र से उठी एक बहस जब देश में चल रही है, तब एक पुस्तक ‘राष्ट्र-ऋषि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर’ पढ़ने में आई। अर्चना प्रकाशन, भोपाल से प्रकाशित यह पुस्तक केवल 80 पृष्ठ की है लेकिन लेखक निखिलेश महेश्वरी जी ने ‘गागर में सागर’ भरने का प्रयत्न बड़ी कुशलता से किया है। बाबा साहब से जोड़कर अकसर उठनेवाली बहसों के लगभग सभी मुद्दों को छूने और उन पर एक सम्यक दृष्टिकोण पाठकों के सामने रखने का कार्य लेखक ने किया है। राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाकर जिस एकात्मता के लिए बाबा साहब ने प्रयास किए, उसी एकात्मता के लिए साहित्य के धर्म का निर्वहन निखिलेश जी ने किया है। लेखक का मानना है कि बाबा साहब आधुनिक भारत के ऋषि हैं, जिन्होंने समाज जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। उल्लेखनीय है कि निखिलेश महेश्वरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं। आप इस समय देश के सबसे बड़े शैक्षिक संगठन विद्या भारती में मध्यभारत प्रांत के संगठन मंत्री हैं। यह पुस्तक पढ़कर पाठक जान सकते हैं कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति संघ में अपार श्रद्धा है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिस सामाजिक समता का स्वप्न बाबा साहब ने देखा था, वह संघ की शाखा से लेकर समाज में साकार होता दिखायी देता है। इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति बाबा साहब से लेकर महात्मा गांधी तक कर चुके हैं।

देखिए : पत्रकारिता में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान

आरएसएस और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर :

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर सन् 1935 में पुणे में आयोजित महाराष्ट्र के पहले संघ शिक्षा वर्ग में आए थे। इस अवसर पर संघ के संस्थापक सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से उनकी भेंट एवं चर्चा भी हुई। वे अपने व्यवसाय के निमित्त दापोली गए, तब वहाँ की शाखा पर भी गए और स्वयंसेवकों के साथ खुलेमन से चर्चा की। इसका उल्लेख भारतीय मजदूर संघ सहित अनेक सामाजिक संगठनों के संस्थापक रहे विचारक दत्तोपंत ठेंगठी ने अपनी पुस्तक ‘डॉ. अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ में किया है। इसके साथ ही बाबा साहब डॉ. अंबेडकर से जुड़े रहे पूर्व लोकसभा सांसद बालासाहेब सालुंके ने भी इसका उल्लेख किया है। उनके पुत्र काश्यप सालुंके ने भानुदास गायकवाड़ के साथ मिलकर बालासाहेब सालुंके के संस्मरणों एवं विचारों का संकलन किया है- ‘आमचं सायेब : दिवंगत खासदार बालासाहेब सालुंके’। इस पुस्तक के पृष्ठ 25 और 53 पर डॉ. अंबेडकर और आएसएस के संदर्भ में उपरोक्त उल्लेख आते हैं। याद रहे कि बाला साहेब सालुंके और उनके पुत्र काश्यप सालुंके का संघ से कोई संबंध नहीं है। सन् 1937 में करहाड शाखा (महाराष्ट्र) के विजयादशमी उत्सव पर बाबा साहब का भाषण हुआ। सन् 1939 में एक बार फिर बाबा साहब पुणे के संघ शिक्षा वर्ग के सायंकाल के कार्यक्रम में आए थे। सन् 1940 में भी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर पुणे में संघ की शाखा में गए थे। यहाँ स्वयंसेवकों के समक्ष अपने विचार प्रकट किए। इस संबंध में हाल ही में विश्व संवाद केंद्र, विदर्भ ने 9 जनवरी 1940 को प्रकाशित प्रसिद्ध मराठी दैनिक समाचारपत्र ‘केसरी’ की प्रति साझा की है। इसके बाद भी उनका संघ के साथ संपर्क बना रहा। संघ पर लगे पहले प्रतिबंध को हटाने में बाबा साहब का जो सहयोग एवं परामर्श मिला, उसके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने सितंबर-1949 में बाबा साहब से दिल्ली में भेंट की।  इसी तरह, महात्मा गांधी ने भी निकट से संघ दर्शन किया। उन्होंने तो संघ के शिविर और शाखा में जाने का उल्लेख स्वयं ही किया है।

पुस्तक में हैं पाँच अध्याय :

बहरहाल, ‘राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर’ में लेखक निखिलेश महेश्वरी ने बाबा साहब के विराट व्यक्तित्व एवं उनकी विचार संपदा की चर्चा पाँच संक्षिप्त अध्यायों में की है- पृष्ठभूमि, जीवन संघर्ष, जीवन यात्रा के सहयोगी, विविध विषयों पर विचार, इस्लाम और ईसाईयत। लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि बाबा साहब किसी एक जाति या वर्ग तक सीमित नहीं थे अपितु वे संपूर्ण समाज के नायक हैं। लेखक ने लिखा भी है कि “डॉ. अंबेडकर के कार्यों के लिए संपूर्ण राष्ट्र को उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए”। बाबा साहब पर केंद्रित इस छोटी पुस्तक के बड़े महत्व को रेखांकित करते हुए बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलाधिपति डॉ. प्रकाश सी. बरतूनिया लिखते हैं- “यह पुस्तक भारतीय समाज में जाति भेदभाव समाप्त करने तथा सामाजिक समरसता का वातावरण निर्मित कर देश की एकता और अखंडता को दृढ़ करने की दृष्टि से बहुत उपयोगी होगी”।

इस्लाम और ईसाईयत पर बाबा साहब के विचार :

पुस्तक की भाषा-शैली सहज-सरल है। लेखक तर्कों-तथ्यों के साथ अपनी बात को पाठकों तक पहुँचाने में सफल होते दिखायी देते हैं। निखिलेश जी ने कई नये प्रसंगों एवं जानकारियों को सामने लाकर, उस दिशा में गहन शोध का मार्ग प्रशस्त किया है। एक अध्याय यह स्मरण कराता है कि बाबा साहब के संघर्ष और आंदोलन में उन्हें हिन्दू समाज के सभी वर्गों का सहयोग मिला। अकसर कुछ लोग अपने छिपे हुए स्वार्थों के चलते ‘जय भीम’ के साथ ‘जय मीम’ के खोखले नारे को चिपकाने का प्रयास करते हैं। इस पुस्तक में बेबाकी से उन तथ्यों को उजागर किया गया है, जिनसे पता चलता है कि बाबा साहब इस्लाम और ईसाईयत के संबंध में किस प्रकार के विचार रखते थे। इन विचारों को यदि बाबा साहब के नाम के बिना लिखा या बोला जाए तो लोग कहेंगे कि ये किसी कट्टर हिन्दू नेता के विचार हैं। अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए जो राजनीतिक दल अचानक से अपना ‘अंबेडकर प्रेम’ प्रकट कर रहे हैं, क्या वे बाबा साहब के उन विचारों से सहमति प्रकट करेंगे जो उन्होंने इस्लाम और ईसाईयत के संबंध में व्यक्त किए हैं। नि:संदेह, वे भाग खड़े होंगे। उन्होंने अब तक बाबा साहब के विचारों पर पर्दा डालने का ही काम किया है। बाबा साहब के विचारों पर समग्रता से ने तो अध्ययन हुआ है और न होने दिया है।

लेखक निखिलेश महेश्वरी की यह पुस्तक उन सभी को पढ़नी चाहिए, जो बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन एवं विचारों के दूसरे पहलुओं को जानना चाहते हैं। याद रखें कि किसी भी महापुरुष का समग्रता से अध्ययन करना चाहिए। उनके विचारों को एक विशेष दृष्टिकोण से नहीं अपितु तत्कालीन संदर्भ और प्रसंग के साथ देखना चाहिए। 


पुस्तक : राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर

लेखक : निखिलेश महेश्वरी

पृष्ठ : 80

मूल्य : 75 रुपये (पेपरबैक)

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल

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