उ त्तराखण्ड में चल रही राजनीतिक उठा-पटक का हाल-फिलहाल नतीजा यह रहा कि वहाँ पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। अभी आगे की कहानी और लिखी जानी है। उत्तराखण्ड में आगे की पटकथा कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने हिसाब से लिख रही हैं। इस सियासत का आगे का सीन क्या है? इस बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। राजनीतिक गलियारों से लेकर देशभर में यह सवाल खड़ा किया जा रहा है कि उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन के लिए दोषी कौन है? एक ओर कांग्रेस और उससे सहानुभूति रखने वाले लोग भाजपा को दोष दे रहे हैं। वहीं, भाजपा और उसके साथ खड़े लोगों का मत है कि राष्ट्रपति शासन के लिए कांग्रेस का नेतृत्व दोषी है।
कांग्रेस के ही पूर्व मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधायकों की बगावत के कारण हरीश रावत की सरकार अल्पमत में आ गई। विधानसभा में उसके पास बहुमत नहीं रहा। पूर्व में राज्यपाल केके पॉल ने मुख्यमंत्री हरीश रावत को बहुमत साबित करने के लिए 28 मार्च तक का समय दिया था। लेकिन, कांग्रेस ने बहुमत साबित करने के लिए जिस तरह का रास्ता चुना, उससे सियासी बवाल और गहरा गया। मुख्यमंत्री का एक स्टिंग सामने आया, जिसमें वह विधायकों की खरीद-फरोख्त करते पाए गए हैं। यही नहीं, वापस लौटने वाले विधायकों को वह खुलकर भ्रष्टाचार करने की छूट देने की बात कहते भी हुए पाए गए हैं। यह पेंतरा भी काम नहीं आया तब उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के सहयोग से बागी विधायकों की सदस्यता खत्म करा दी। आखिर में, बहुमत साबित करने के अंतिम दिन से एक दिन पूर्व ही राज्यपाल केके पॉल की रिपोर्ट पर केन्द्र सरकार ने उत्तराखण्ड में संवैधानिक संकट का हवाला देतेेे हुए राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की, जिस पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने मोहर लगा दी।
अब इस फैसले से भड़की कांग्रेस की ओर से भाजपा पर हमला बोला जा रहा है। कांग्रेस ने भाजपा पर 'लोकतंत्र की हत्या' करने का आरोप लगाया है। कांग्रेस का कहना है कि केन्द्र सरकार संवैधानिक मर्यादाओं की धज्जियां उड़ा रही है। सत्ता का अहंकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के सिर चढ़कर बोल रहा है। 'कांग्रेस मुक्त भारत' बनाने के लिए कांग्रेसी सरकारों को निशाना बनाया जा रहा है। कांग्रेस ने यह भी कहा है कि उत्तराखण्ड में भाजपा ने एक चुनी हुई सरकार को अस्थिर करने के लिए धन बल, सत्ता बल और बाहुबल का दुरुपयोग किया है।
कांग्रेस के यह आरोप महज उसकी बौखलाहट ही हैं। उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन का असल कारण कांग्रेस का नेतृत्व है। सरकार पर सवाल उठाने का अवसर भाजपा को दिया किसने? भाजपा की ओर से कहा भी जा रहा है कि बेबुनियाद आरोप लगाने की जगह कांग्रेस को अपना घर दुरुस्त करना चाहिए। कांग्रेस की सरकार में उसके ही विधायकों का भरोसा नहीं है, भाजपा को दोष देने से क्या लाभ?
बहरहाल, कांग्रेस आज लोकतांत्रिक और संवैधानिक मर्यादा की बात कर रही है, लेकिन जब उसने गैर-कांग्रेसी सरकारों को निशाना बनाया था, तब यह नैतिकता और संवैधानिक मर्यादा कहाँ गई थी? उत्तरप्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार और गुजरात में केशुभाई पटेल की सरकार को किस तरह कांग्रेस ने हटाकर राष्ट्रपति शासन थोपा था, यह कैसे भुलाया जा सकता है? देश के विभिन्न राज्यों में अब तक संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत 126 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में कांग्रेस शीर्ष पर है।
बहरहाल, भाजपा पर आरोप लगा रही कांग्रेस को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। आखिर पूर्व मुख्यमंत्री सहित उसके नौ विधायक बागी क्यों हुए? उत्तराखण्ड में राज्य के नेतृत्व और शीर्ष कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ इन विधायकों की नाराजगी अचानक प्रकट नहीं हुई है। बागी कांग्रेस विधायक समय-समय पर अपनी अनदेखी की बात जाहिर करते रहे हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ उनकी एक टिप्पणी बहुत मायने रखती है। बागी विधायकों का कहना है कि राहुल गाँधी के पास देशद्रोह के आरोपी कन्हैया कुमार से मिलने के लिए समय है, लेकिन अपने नेताओं की बात सुनने के लिए वक्त नहीं है।
क्या कांग्रेस इस बात का जवाब दे सकती है कि उत्तराखण्ड की विधानसभा में संवैधानिक मर्यादाओं का पालन किया जा रहा था? नियमानुसार किसी भी विधेयक पर मत विभाजन की माँग यदि एक विधायक भी करता है तो मत विभाजन कराया जाना जरूरी होता है। उत्तराखण्ड की विधानसभा में एक नहीं बल्कि नौ विधायकों ने बजट पर मत विभाजन की माँग की थी, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने कांग्रेस का पक्ष लेते हुए ध्वनिमत से बजट पारित करा दिया। नैतिकता का तकाजा तो यह कहता है कि अपने विधायकों का भरोसा खो चुकी सरकार और मुख्यमंत्री को उसी वक्त इस्तीफा दे देना चाहिए था। लेकिन, सरकार ने कुर्सी बचाने के लिए 'होर्स ट्रेडिंग' और असंवैधानिक प्रक्रिया का चुनाव किया। इन परिस्थितियों में लोकतंत्र के हित में संविधान के अनुच्छेद-356 का उपयोग आवश्यक हो गया था।
हम कह सकते हैं कि कांग्रेस का आचरण ही राष्ट्रपति शासन के लिए जिम्मेदार है। अब राष्ट्रपति शासन के खिलाफ कांग्रेस न्यायालय के दरवाजे पर पहुंच गई है। यह तय है कि आगे की कहानी भी दिलचस्प होगी। बहरहाल, उत्तराखण्ड प्रकरण के बहाने राजनीतिक लाभ-हानि से कहीं अधिक राजनीतिक शुचिता, संवैधानिक मर्यादा, लोकतांत्रिक मूल्य और संसदीय प्रक्रियाओं को मजबूत करने की दिशा में भी विमर्श खड़ा होना चाहिए।
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