कां ग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हालिया बयान और व्यवहार से देश अचम्भित है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, जिनके पास बुद्धिजीवी होने का भी तमगा है, ऐसे शशि थरूर क्या सोचकर देशद्रोह के आरोपी और एक औसत वामपंथी छात्र कन्हैया कुमार की तुलना शहीद भगत सिंह से करते हैं? पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में जाते हैं, वहाँ वामपंथी शिक्षकों और छात्रों को खुश करने के फेर में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद भगत सिंह का अपमान कर बैठते हैं। कितने दुर्भाग्य की बात है कि शशि थरूर ने बेहद निंदनीय बयानबाजी भगत सिंह के शहादत दिवस से महज तीन दिन पूर्व की। जब देश शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को नम आँखों से याद करता है, तब कांग्रेस के नेता शहीदों के व्यक्तित्व को बहुत छोटा दिखाने की कोशिश करते हैं। एक अतार्किक और निर्लज्ज राजनीतिक विमर्श को हवा देते हैं? आखिर शशि थरूर एक देशद्रोह के आरोपी की तुलना भगत सिंह से करके क्या साबित करना चाहते हैं? उनकी इस 'बुद्धिजीवी टाइप हरकत' से समूचे देश में आक्रोश है। सब दूर उनकी निंदा हो रही है। स्वयं कांग्रेस के कई नेताओं ने थरूर के बयान से पल्ला झाड़ लिया है। लेकिन, क्या सिर्फ पल्ला झाड़ लेने से कांग्रेस की छवि सुधर जाएगी? यह इसलिए संभव नहीं है क्योंकि एक तरफ कांग्रेस यह कहती है कि वह देशद्रोहियों के साथ नहीं है जबकि वहीं कांग्रेस के नेताओं के व्यवहार और बयानों से साबित होता है कि वह देशद्रोहियों की हिमायती हैं। कांग्रेस गलत स्टैंड लेने के कारण बुरी तरह फंस गई है।
कन्हैया कुमार को भगत सिंह के समक्ष खड़ा करने की हिमाकत शशि थरूर इसलिए भी कर सके हैं क्योंकि इस वक्त उनकी पार्टी कन्हैया कुमार के पीछे लट्टू है। यही कारण है कि थरूर के बयान से उपजी बहस की गर्मी शांत भी नहीं हो पाई और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अपनी करामात दिखा दी। क्या राहुल बता सकते हैं कि कांग्रेस के सामने वह कौन-सी मजबूरी आ गई है कि उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को देशद्रोह के आरोपी से मुलाकात करनी पड़ रही है? यह नहीं बता सकते तो कम से कम इतना तो बताना ही चाहिए कि आखिर कन्हैया कुमार से राहुल गांधी की क्या बातचीत हुई? (पूर्व में राहुल गाँधी भी जेएनयू जाकर देशद्रोही नारेबाजी के समर्थन में खड़े हो चुके हैं) भारतीय राजनीति का लम्बा अनुभव रखने वाली कांग्रेस आखिर किधर जा रही है? क्या समूची कांग्रेस पार्टी में भांग घुल गई है? कांग्रेस के व्यवहार को देखकर समझ आता है कि वह जेएनयू प्रकरण के बाद बने देश के मानस को समझने में नाकाम रही है। देश का आम आदमी भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों के साथ खड़े नेताओं को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
संभवत: कांग्रेस का कन्हैया प्रेम चुनावी है। लेकिन, यदि यह प्रेम चुनावी है तब भी कांग्रेस के लिए संकट का कारण है। अभी हाल में असम के चुनाव प्रचार अभियान के कुछ पोस्टर सामने आए हैं, जिनमें कन्हैया कुमार ने राहुल गांधी को रिप्लेस कर दिया है। क्या असम में कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को अपना पोस्टर ब्वाय बना लिया है? यदि कांग्रेस इसी नीति पर आगे बढ़ती है तो स्वाभाविक ही देश में संदेश जाएगा कि राहुल के चेहरे पर कांग्रेस को भरोसा नहीं है। दूसरी बात ऊपर कही जा चुकी है कि देश की बहुसंख्यक आबादी कन्हैया कुमार के साथ नहीं है। इसलिए ऐसा न हो कि कन्हैया कुमार का प्रेम कांग्रेस को ले डूबे। इस सब विमर्श के बीच बार-बार यह प्रश्न उठता है कि आखिर कांग्रेस कन्हैया के साथ क्यों खड़ी होना चाहती है? माना कि वह अभी देशद्रोही सिद्ध नहीं हुआ है लेकिन यह भी तो सच है कि वह अभी निद्रोष भी सिद्ध नहीं हुआ है। फिर कांग्रेस इतनी जल्दबाजी में क्यों है?
देश की सबसे पुरानी पार्टी कहलाने में सुख का अनुभव करने वाली कांग्रेस आखिर किस तरह की राजनीति को स्थापित करने का प्रयास कर रही है? कांग्रेस को अपने हाल के व्यवहार का आकलन करना चाहिए। उसका व्यवहार राजनीतिक शुचिता के लिहाज से ठीक नहीं है। यदि कांग्रेस की राजनीति की दिशा यही रही तो कांग्रेस के भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा।
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