वि घ्न संतोषियों के अनेक प्रकार के कुप्रचार के बावजूद अपने पूरे वैभव और गौरव के साथ यमुना के तट पर विश्व संस्कृति महोत्सव सम्पन्न हो गया। अभूतपूर्व सांस्कृतिक आयोजन में शामिल होने आए करीब 122 देशों के प्रतिनिधि निश्चित ही भारतीय धर्म, सांस्कृतिक एकता, शांति और अहिंसा का संदेश लेकर लौटे होंगे। आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर महाराज और उनकी संस्था आर्ट ऑफ लिविंग की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों को यमुना के तीर एकत्र कर भारत को उनका नेतृत्व करने का अवसर दिया। हमें यह खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए कि इस महोत्सव ने भारत को विश्व में गौरव दिलाने का काम किया है। भारत की सांस्कृतिक विविधता और उनके बीच अनूठी एकता का संदेश भी दुनिया में गया है। भारत ने लम्बे समय तक विश्वगुरु की भूमिका का निर्वाहन किया है। विश्व संस्कृति का नेतृत्व करने की भारत की उसी क्षमता का प्रदर्शन दिल्ली में यमुना किनारे हुआ। लेकिन, क्षुद्र मानसिकता के लोगों ने न केवल इस महत्वपूर्ण आयोजन को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा, बल्कि इसे रद्द तक कराने की कोशिशें कीं।
यमुना के प्रदूषण और पर्यावरण के संबंध में एनजीटी की आपत्ति को इस तरह प्रचारित किया गया मानो इस आयोजन से यमुना का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। भारी आपदा आ जाएगी। भारतीय संस्कृति से चिढऩे वाली तमाम ताकतों ने एकसुर में कार्यक्रम की निंदा की। कार्यक्रम के प्रयोजन पर सवाल उठाए। सरकार की घेराबंदी करने का प्रयास भी किया। संसद में भी विरोध के सुर सुनाई दिए। संसद की भीतर और बाहर विरोध का यह स्वर इतना कर्कश था, मानो किसी गंभीर अपराधी के संबंध में बातचीत की जा रही हो। लोकतांत्रिक व्यवस्था में बरसों का अनुभव रखने वाले तथाकथित नेता भी आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर के लिए तू-तड़ाक की भाषा में बात कर रहे थे।
हम ध्यान दें तो समझ पाएंगे कि भारतीय संस्कृति से संबद्ध इस कार्यक्रम का विरोध वही लोग कर रहे हैं, जिन्होंने 'विश्व योग दिवस' का उपहास उड़ाया था। योग को ढोंग बताया था। विश्व योग दिवस का विरोध करने के लिए निम्नतर स्तर पर ये लोग उतर गए थे। लेकिन, हुआ क्या? भारतीय योग परंपरा को दुनिया ने स्वीकार किया। एक साथ 21 जून को 192 देशों में सूर्य नमस्कार की एक मुद्रा में धरती के श्रीचरणों में साष्टांग प्रणाम किया। बहरहाल, विश्व संस्कृति महोत्सव का विरोध करने वाले लोग क्या इस बात का जवाब दे सकते हैं कि यमुदा की बदहाली के लिए कौन जिम्मेदार है? अब तक उनका पर्यावरण प्रेम कहाँ था? यमुना में मिल रहे शहरों के सीवेज को रोकने के लिए उन्होंने कभी कोई प्रयास किया है? यमुना की सफाई में ही उनका कितना योगदान है? उन कारखानों के विरोध में कब-कब इन्होंने आवाज बुलंद की है, जिनसे निकला जहर यमुना सहित भारत की अन्य नदियों का गला घोंट रहा है? हम पहले से ही कैसे तय करके बैठ गए कि विश्व संस्कृति महोत्सव से यमुना प्रदूषित होगी? पर्यावरण बचाने और पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने वाली संस्था 'आर्ट ऑफ लिविंग' के सब कार्यों को भूलाकर उसे पर्यावरणहंता घोषित करने की जल्दबाजी हमने क्यों दिखाई?
हम क्यों भूल जाते हैं कि हमारे यहाँ बरसों से नदियों के किनारे पर इससे भी बड़े-बड़े आयोजन होते आए हैं। कुम्भ मेले के समक्ष यह विश्व संस्कृति महोत्सव कितना बड़ा आयोजन था? यानी कल को हम कुम्भ मेला भी आयोजित नहीं होने देंगे। कुम्भ में तो लाखों-करोड़ों की संख्या में आम समाज नदी की गोद में एकत्र होता है। उज्जैन में मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के किनारे महाकुम्भ 'सिंहस्थ-2016' का आयोजन 22 अप्रैल से होना है। आज शिप्रा की जो दुर्दशा है, क्या उसके लिए कुम्भ दोषी है? उत्तर स्पष्ट है, शिप्रा की बदहाली के लिए कुम्भ नहीं बल्कि हम सब जिम्मेदार हैं। हमारा दोहरा चरित्र दोषी है। हमारी गाल बजाने की आदत जिम्मेदार है। कुम्भ के बहाने तो फिर भी शासन ने शिप्रा की सुध ले ली है। उसकी सफाई के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। श्रीश्री रविशंकर और उनकी संस्था ने भी पर्यावरण की चिंता और यमुना की स्वच्छता के लिए अपना संकल्प दोहराया है। उन्होंने कहा कि हम यमुना की रक्षा का अपना कर्तव्य पूरा करेंगे, यमुना और उसके तट को पहले से ज्यादा बेहतर बनाएंगे। विरोध करने वालों को संभवत: यह भी दिखाई नहीं दिया होगा कि आयोजन की सफलता के लिए और विदेश से आने वाले महानुभावों को सुखद अनुभूति कराने के लिए हिन्दू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम स्वयंसेवक भी अपना योगदान दे रहे थे। सही मायने में इस तरह के आयोजन देशों, संस्कृतियों और समाज को जोडऩे का काम करते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि भारतीयता को पुष्ट करने वाले कार्यक्रमों और विचारों के विरोध के पीछे क्षुद्र मानसिकता और संकीर्ण राजनीति ही है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन धरती से अंतरिक्ष तक बेटियों की धमक - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंऐसे सार्थक महोत्सव को रोकने का प्रयत्न देेश की छवि को बिगाड़ने का प्रयास था बहुत सुन््दर आलेख।
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