स्व यं के व्यवहार में आदर्श को उतारना जितना कठिन होता है, दूसरों को उपदेश देना उतना ही आसान। दूसरों को ज्ञान देने का यह कार्य मनुष्य वर्षों से करता चला आ रहा है। वर्तमान में इस प्रवृत्ति ने अपना वृहद रूप धर लिया है। मनुष्यों के इस व्यवहार को देखकर तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही कह दिया था- 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे।' उर्दू के जानकारों ने इसी बात को कुछ इस तरह कहा- 'औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत।' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को इस लोकोक्ति का उपयोग लोकसभा में दिए अपने भाषण में किया। उन्होंने बिना नाम लिए राहुल गांधी के लिए इस लोकोक्ति का उपयोग किया। गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री और उनकी सरकार पर हास्य-व्यंग्य की शैली में हमला बोला था। मनरेगा योजना के लिए बजट में अधिक पैसे का प्रावधान करने पर राहुल ने तंज कसते हुए कहा कि यह तो कांग्रेस की योजना थी, जिसे मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले कोसते रहते थे। इसी तरह उन्होंने कालेधन पर वित्तमंत्री की योजना को 'फेयर एण्ड लवली' योजना बता दिया था। प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडिया' पर भी सवाल खड़े किए।
संसद में गुरुवार को बोलने का मौका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का था। उन्होंने राहुल गांधी के एक-एक हमले का जवाब दिया। प्रधानमंत्री का कहना था जिन्होंने 60 साल में कुछ नहीं किया, वह अब उपदेश दे रहे हैं। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि योजनाएं स्वयं से अच्छी-बुरी या सफल-असफल नहीं होती, यह योजनाओं के क्रियान्वयन के पीछे खड़े तंत्र पर निर्भर करता है। यह तो अच्छी बात होनी चाहिए कि कांग्रेस के समय में जो मनरेगा भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई थी, आज प्रधानमंत्री उसमें भरोसा दिखा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने माना है कि मनरेगा गरीबों के हित की योजना है। उसमें अधिक भ्रष्टाचार था, लेकिन उसे दूर भी किया जा सकता है। यह यूपीए सरकार का ही दोष है कि उनके समय में असफल योजनाएं आज प्रभावी दिख रही हैं। मोदी ने कहा भी कि कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में ही स्कूलों और गांवों में शौचालय बनवा दिए होते तो हमें नहीं बनवाने पड़ते। इसमें कोई दोराय नहीं कि बहुत-सी योजनाएं कांग्रेस की देन हैं। लेकिन, यूपीए के समय में उन योजनाओं की क्या स्थिति थी और अब क्या है? यह महत्वपूर्ण सवाल है।
बहरहाल, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह का जिक्र करते हुए राहुल गांधी को समझाइश देने की कोशिश की। कांग्रेस के नेताओं का उदाहरण प्रस्तुत करने के पीछ संभवत: प्रधानमंत्री की मंशा रही होगी कि राहुल गांधी अपने ही पूर्वजों और पार्टी के नेताओं से कुछ सीख लें। ताकि 'उपदेश' देने से बचें। प्रधानमंत्री ने कहा कि उपदेश देना आसान होता है लेकिन उस पर चलना मुश्किल। भाजपा नेताओं के चुप रहने का कारण राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री का डर बताया था। इसका जवाब प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी द्वारा अध्यादेश फाडऩे की घटना का जिक्र करके दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री देश का सम्माननीय नेता होता है। अपने कैबिनेट के साथ मिलकर पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक फैसला लिया। लेकिन, पार्टी का एक नेता इस अध्यादेश को उस समय फाड़कर फेंक देता है, जब प्रधानमंत्री देश से बाहर होते हैं। बड़ों के अपमान का यह वाकया यह देश कभी नहीं भूलेगा। मुलायम का पर्चा फाडऩे की घटना का भी जिक्र उन्होंने किया। उन्होंने यह भी कहा कि हमसे कोई भी सवाल पूछ सकता है लेकिन, कोई है जिससे कोई कुछ भी नहीं पूछ पाता है। उनका स्पष्ट इशारा राहुल गांधी और सोनिया गांधी की ओर था।
भारतीय जनता पार्टी और सरकार में जिस डर की बात राहुल गांधी कर रहे हैं, कांग्रेस में वह डर क्यों है? क्या राहुल इसका जवाब दे सकते हैं? इसीलिए कहा गया है कि 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे'। समूचे प्रतिपक्ष को प्रधानमंत्री के आग्रह पर ध्यान देना चाहिए। जिसका आशय है कि मर्यादित ढंग से संसद को चलाने और जनता के हित में कार्य करने में प्रतिपक्ष सरकार का सहयोग करे, उपदेश नहीं दे। प्रधानमंत्री ने कहा है- 'योजनाओं की कमी न कांग्रेस के समय थी न ही हमारे समय है। बस, हमें मिलकर काम करने की जरूरत है। मैं नया हूं आप (प्रतिपक्ष) अनुभवी हैं, आइए साथ में काम करें।'
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