क रीब तीन साल पहले तक प्राइम टाइम में भूत-प्रेत की कहानियां, रियलिटी शो और मनोरंजन के नाम पर फूहड़ सामग्री दिखा रहे टीवी चैनल्स की स्क्रीन अब कुछ बदली-बदली सी नजर आती है। प्राइम टाइम में न्यूज चैनल्स पर सार्थक बहस और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर शुद्ध खबरें अब दिखने लगी हैं। युवा हो रही टीवी पत्रकारिता के चरित्र में यह सकारात्मक बदलाव कुछ लोगों की स्पष्ट सोच और संकल्प का नतीजा है। अलबत्ता, इस बदलाव में ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के लगातार तीसरी बार महासचिव चुने गए नवलकिशोर सिंह (एनके सिंह) की महती भूमिका है। टीआरपी की होड़ में दीवाने हुए न्यूज चैनल्स के प्रबंधकों-संपादकों को चैनल्स पर दिखाई जा रही सामग्री और उसके प्रभाव के प्रति चेताने में एनके सिंह को काफी मशक्कत करनी पड़ी। खैर, पत्रकारिता में सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध एनके सिंह काफी हद तक अपने प्रयत्नों में सफल हुए। वे एक संकल्प के साथ निरंतर टीवी पत्रकारिता और उसके कंटेन्ट को अधिक गंभीर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
स्वभाव से मृदुभाषी और मिलनसार एनके सिंह फिलहाल देशभर के हिन्दी और अंग्रेजी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए सामाजिक और राजनीतिक सरोकारों पर लेख लिख रहे हैं। वे न्यूज चैनल्स पर होने वाली बहसों में भी राजनीतिक और मीडिया विश्लेषक की हैसियत से शिरकत करते हैं। हाल ही में उन्होंने लाइव इंडिया न्यूज चैनल को राष्ट्रीय न्यूज चैनल्स के बीच री-लॉन्च करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली है। वे लाइव इंडिया से ग्रुप एडिटर और एडिटर इन चीफ के तौर पर जुड़े हैं। अपने 33 साल के पत्रकारीय जीवन में उन्होंने नेशनल हेराल्ड, द पायोनियर और न्यूज टाइम/ईनाडू में रिपोर्टर से लेकर विभिन्न भूमिकाओं में काम किया। करीब एक दशक पहले उन्होंने ईटीवी न्यूज से टीवी पत्रकारिता में कदम रखा और बाद में साधना न्यूज चैनल में राजनीति संपादक के रूप में काम किया। श्री सिंह ने द पायोनियर और ईनाडू/ईटीवी के कई एडिशन भी सफलतापूर्वक लॉन्च कराए। एनके सिंह ने देश-दुनिया से जुड़े कई गंभीर मसलों का कवरेज किया है। 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी विध्वंस की घटना के तत्काल बाद श्री सिंह की खोजपरक खबर प्रकाशित हुई, जिसकी चर्चा देशभर में हुई। उनकी कुछ स्टोरी के कारण तो भारत सरकार को कई नियमों में भी संशोधन करने पड़े हैं।
व्यावसायिकता के इस दौर में भी एनके सिंह के लिए पत्रकारिता प्रोफेशन नहीं बल्कि पैशन है। पत्रकारिता उनको आध्यात्मिक अनुभव और संतुष्टी देती है। वे कहते हैं कि पत्रकारिता के लिए तड़प होनी चाहिए और यह तड़प गरीबी के अनुभव से आती है। आम भारतीय के दर्द से जुडऩे के लिए एनके सिंह बेहद साधारण जीवन जीते हैं। ट्रेन के स्लीपर क्लास में सफर करने का एक प्रयोग वे कर रहे हैं।
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"पत्रकारिता में निष्पक्षता एवं खरी-खरी अभिव्यक्ति के पक्षधर एनके सिंह की कथनी और करनी में मामूली अंतर भी नहीं दिखता है। प्रखर राजनीतिक चिंतन और निष्पक्ष विश्लेषण, आपकी पत्रकारिता की विशेषता है।"- जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" में प्रकाशित आलेख।
- श्रीकान्त सिंह, संपादक, मीडिया विमर्श
कई बार टी वी पर एन के सिंह जी को सूना है .. स्पष्ट मत रखते हैं वो जो अच्छा लगता है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट
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