प त्रकार की चेतावनी को नजरअंदाज करना कितना घातक साबित हो सकता है, दुनिया में इसका सबसे बड़ा उदाहरण है भोपाल गैस त्रासदी। राजकुमार केसवानी उस पत्रकार का नाम है, जो वर्ष 1984 में हुई भीषणतम गैस त्रासदी की ढाई साल पहले से चेतावनी देते आ रहे थे। हुक्मरानों ने अगर उनकी चेतावनी को संजीदगी से लिया होता तो संभवत: 3 दिसम्बर को वह काली रात न आई होती है, जिसके गाल में हजारों लोगों का जीवन चला गया और अब भी उसकी मार से हजारों लोग पीडि़त हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी गंभीर और संवेदनशील पत्रकारिता की सराहना हुई है। श्रेष्ठ पत्रकारिता के लिए पत्रकारिता का प्रतिष्ठित पुरस्कार 'बीडी गोयनका अवॉर्ड' उन्हें मिल चुका है।
26 नवंबर, 1950 को भोपाल की बाजेवाली गली में जन्मे राजकुमार केसवानी ने एलएलबी की पढ़ाई की है लेकिन उनका मन तो लिखत-पढ़त के काम की ओर हिलोरे मार रहा था। इसीलिए वकालात के पेशे में न जाकर, 1968 में कॉलेज के पहले साल से ही स्पोर्ट्स टाइम्स में सह संपादक का बिना वेतन का पद पाकर पत्रकारिता की दुनिया में चले आए। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स, इलस्ट्रेटेड वीकली, संडे आब्जर्वर, इंडिया टुडे, इंडियन एक्सप्रेस, द एशियन एज, ट्रिब्यून, आउटलुक, द इंडिपेंडेट, द वीक, न्यूज टाइम, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स और दिनमान जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशनों में काम किया है। वर्ष 1998 से 2003 तक एनडीटीवी के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के ब्यूरो प्रमुख रहे। 2003 में दैनिक भास्कर इन्दौर के सम्पादक बने। दैनिक भास्कर समूह में ही सम्पादक (मैग्जीन्स) की जिम्मेदारी संभालते हुए रविवारीय रसरंग को अलग ही पहचान दी। कंटेन्ट और भाषा (खासकर उर्दू) की शुद्धता के लिए इस शिद्दत से काम किया कि लोग रसरंग के दीवाने हो गए। रसरंग में ही 'आपस की बात' शीर्षक से लाजवाब स्तंभ लिखकर राजकुमार केसवानी रुपहले पर्दे के सुनहरे कल की याद दिलाते हैं। उनके पास विश्व-सिनेमा की बेस्ट क्लासिक फिल्मों के वीएचएस कैसेट्स, दुर्लभ हिन्दी फिल्मी और गैर फिल्मी रेकॉर्ड्स का अनूठा खजाना है। कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (सीबीसी) और व्हाइट पाइन पिक्चर्स, टोरंटो ने पत्रकारिता में उनके योगदान को रेखांकित करते हुए एक वृत्तचित्र का निर्माण भी किया है।
जितना पैनापन राजकुमार केसवानी की पत्रकारिता में रहा है, उतनी ही मुलायमियत उनकी कविताओं में है। वे पेशेवर नहीं बल्कि मन के कवि हैं। कविता संग्रह 'बाकी बचें जो' में बच्चों के प्रति उनकी मोहब्बत, उनके अंदर बैठे बेहतरीन इंसान को सबके सामने लाती है। कवि लीलाधर मंडलोई उनकी कविताओं के बारे में कहते हैं- 'मितकथन राजकुमार केसवानी का गुण है। स्थानीयता उनकी पूँजी। कहन में सादगी। भाषा में गहरी लय और संगीत। वे तफसीलों में कम जाते हैं कविता में व्याख्यान की जगह वे भाव को तरजीह देते हैं।'
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"राजकुमार केसवानी पत्रकार के साथ-साथ बेहद संवेदनशील कवि भी हैं। भोपाल गैस त्रासदी पर उनकी ख़बरों ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई हैं।"- जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" में प्रकाशित आलेख।
- डॉ. विजय बहादुर सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 27-11-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1810 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
काश,उनकी बात पर ध्यान दिया होता .तो इतने लोगों का जीवन नर्क न होता और एक बड़ी त्रासदी टल जाती .!
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिए आभार !