अ नूठी लेखन शैली, वाकपटुता, प्रतिबद्धता, गंभीर अध्ययन, बेबाक बयानी और धारदार तर्क प्रेम शुक्ल को निर्भीक पत्रकारों की श्रेणी में सबसे आगे खड़ा करते हैं। मंच से भाषण दे रहे हों, टीवी चैनल्स पर बहस में शामिल हों या फिर पत्रकार के रूप कलम चला रहे हों, प्रेम शुक्ल में दिल-दिमाग में कोई कन्फ्यूजन नहीं होता। उन्हें पता है कि कहां खड़ा होना है। सच्चाई का पक्ष लेना और सही बातों को बिना लाग-पलेट के कहना, यही उनको औरों से अलग करता है। तथाकथित सेकुलर पत्रकारों की जमात में उनकी राष्ट्रवादी लेखनी और वाणी सिंह गर्जना-सी प्रतीत होती है। खैर, प्रेम शुक्ल हिन्दी के लिए समर्पित उन चंद पत्रकारों में से हैं जिनके बारे में कहा जा सकता है कि उनकी रगों में खून के साथ-साथ अखबारी स्याही भी बहती है। देश के सबसे प्रभावशाली और चर्चित सांध्य दैनिक 'दोपहर का सामना' के कार्यकारी सम्पादक प्रेम शुक्ल बेहद सरल और मिलनसार स्वभाव के धनी हैं। प्रेम अपने नाम के अनुरूप सौम्य, निर्मल और नैसर्गिक हैं।
प्रेम शुक्ल मूलत: उत्तरप्रदेश के जिले सुल्तानपुर के छोटे-से गांव भोकार के हैं। यह दीगर बात है कि उनका जन्म मुम्बई के उपनगर बांद्रा में 1 अक्टूबर 1969 को हुआ। एक अरसा पहले उनके प्रपितामह रोजी-रोटी की तलाश में मुम्बई आए और फिर यह परिवार मायानगरी का होकर ही रह गया। तब किसने सोचा था, आज भी यह जानकार लोग हैरत में पड़ जाते हैं कि एक उत्तर भारतीय नौजवान शिवसेना के मुखपत्र 'दोपहर का सामना' का सम्पादक है। वही शिवसेना, जिसे उत्तर भारतीयों की शत्रु की तरह दिखाया-बताया जाता है। उनके साप्ताहिक कॉलम 'टंकार' और 'दृष्टि' पढऩे के लिए लोग उतावले रहते हैं। इन दोनों विशिष्ट लेखमालाओं के जरिए श्री शुक्ल हिन्दुस्थान की गरिमा, हिन्दुत्ववादी अस्मिता और सभ्यता-संस्कृति को निरूपित करने का उपक्रम कर रहे हैं। प्रेम शुक्ल जनसत्ता, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, मराठी साप्ताहिक विवेक, तरुण भारत सरीखे समाचार-पत्रों में भी काम कर चुके हैं। देश की पहली ऑडियो-वीडियो मैग्जीन 'लहरें' और ईटीसी न्यूज के कंसल्टिंग एडिटर के रूप में प्रेम शुक्ल ने कई सामाजिक, आर्थिक, आपराधिक और राजनैतिक घटनाओं-घोटालों से पर्दा उठाया है।
प्रेम शुक्ल महज पत्रकार ही नहीं बल्कि एक सक्रिय समाजसेवी, साहित्यकार और अत्यंत धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। उनके भीतर पुश्तैनी मिट्टी की सौंधी गंध बसी हुई है। मुंबई में वे उत्तर भारत के गौरव की तरह हैं। प्रेम शुक्ल बड़े स्तर पर भोजपुरी सम्मेलन, अवधी अधिवेशन और लाई-चना उत्सव मनाते हैं। मारीशस में रामकथा को जीवंत और लोकप्रिय बनाये रखने के लिए प्रयासरत् रामकथा वाचकों को सम्मानित-प्रोत्साहित करते हैं। प्रेम शुक्ल सूरीनाम और फिजी में भी हिन्दी भाषा और हिन्दी जनों के प्रिय हैं।
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"राष्ट्रवादी पत्रकारिता के मजबूत स्तम्भ हैं प्रेम शुक्ल। हिन्दी पट्टी के लोगों के लिए अनुकूल जगह नहीं होने बाद भी उन्होंने मुम्बई में हिन्दी पत्रकारिता को बहुत सम्मान दिलाया है।"
- अनिल सौमित्र, मीडिया एक्टिविस्ट
- जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" में प्रकाशित आलेख।
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