सू रज का सातवां घोड़ा अर्थात् वह जो सपने भेजता है। धर्मवीर भारती का बहुचर्चित और अनूठे तरीके से लिखा गया उपन्यास है सूरज का सातवां घोड़ा। यह भी कह सकते हैं कि यह उपन्यास नहीं वरन् कहानियों का गुच्छ है। इस उपन्यास का सूत्रधार है मणिक मुल्ला। मणिक मुल्ला जिस मोहल्ले में रहता था उसी मोहल्ले और आसपास के कुछ युवा गर्मी की दोपहर में उसके पास समय काटने के लिए आ जाते थे। मणिक मुल्ला उनको कहानियां सुनाया करता था। मणिक की कहानियां निष्कर्षवादी हैं। सूरज का सातवां घोड़ा में मणिक मुल्ला लेखक और उसके मित्रों को लगातार सात दोपहर में सात कहानियां सुनता है। दोपहर होते ही लेखक और उसके मित्र मणिक के घर पहुंच जाया करते थे।
पहली दोपहर जब लेखक अपने दोस्तों के साथ मणिक मुल्ला के घर पहुंचा तो अहसास हुआ कि मैं भी उस मित्र समूह में शामिल हूं। हां, मुझे अपना बीता वक्त याद आ गया था। मेरा गांव। गांव के दोस्त। पहाड़। खेत-खलियान। सोना गाय और झुर्रियों वाला एक खास चेहरा। दाऊ बाबा का चेहरा। असली और पूरा नाम हरभजन सिंह किरार। वे गांव में ही रहते हैं। अब तो काफी वृद्ध हो गए होंगे। बहुत दिन से तो उन्हें देखा ही नहीं। ख्याल आया कि मेरे मणिक मुल्ला तो दाऊ बाबा हैं। हां, उन्होंने मुझे और मेरे दोस्तों को खूब कहानियां सुनाई हैं। अंतर इतना ही तो है कि मणिक मुल्ला दोपहर में कहानी सुनाता था जबकि दाऊ बाबा रात में। स्कूली शिक्षा के दौरान परीक्षा के बाद गर्मियों में तीन माह की छुट्टी मिलती थी। मेरे ये तीन महीने गांव में बीतते थे। समय के साथ यह सब छूट गया। अब तो कभी-कभार ही गांव जाना हो पाता है। वह भी दिनभर या एक-दो दिन के लिए। गांव में पहाड़ है उसी की तलहटी में बाबा (दादा), चाचा, दाऊ बाबा, दोस्त लोग रात को खटिया बिछाकर सोते थे। दरअसल, वहीं हमारे गौत (जानवर बांधने की जगह) भी थे। पशुधन की देखभाल के लिए सभी वहां सोते थे। लेकिन, मैं तो दाऊ बाबा से कहानियां सुनने के लिए वहां सोने जाता था। कहानियों का खजाना था उनके पास। मेरी फरमाइश पर ही कोई कहानी दोबारा सुनाई जाती थी वरना तो हर रोज एक नई कहानी। उनकी कहानियों में राजाओं का शौर्य, देशभक्त योद्धाओं की वीरता, भारत का वैभव, नारियों की महानता और पवित्रता, धर्म की विजय, अधर्म का नाश, मां की ममता, पिता का आश्रय, मेहनत कर सफल होने वालों की दास्तां, व्यापारियों के किस्से, परियों की खूबसूरती सब कुछ मिलता था। मैं बड़े चाव से उनसे कहानियां सुनता था। कहानी के अंत में वे भी मणिक मुल्ला की तरह निष्कर्ष निकाला करते थे। एक तरह से वे हमें कहानी से शिक्षित करने का प्रयास करते थे। निश्चित तौर पर उनसे सुनी कहानियों का असर मेरे जीवन पर पड़ा है और अभी भी है।
धर्मवीर भारती के उपन्यास में या कहें मणिक मुल्ला की कहानियों में राजा-रानी, परी-देवताओं के किस्से तो नहीं थे। लेकिन, मध्यमवर्गी समाज का सटीक चित्रण है। आर्थिक संघर्ष है, निराशा के घनघोर बादलों के बीच आशा की रोशनी है। भरोसा तोड़ते लोगों के बीच भी विश्वास श्वांस लेता दिखता है। निश्छल प्रेम है। कपट है। क्रोध है। दोस्ती और दुश्मनी भी है। दु:ख है तो सुख भी है। सूरज के सातवां घोड़ा उपन्यास में मणिक मुल्ला ने कहानियों को इस ढंग से सुनाया है कि जो लोग सुखान्त उपन्यास के प्रेमी हैं वे जमुना के सुखद वैधव्य से प्रसन्न हों, लिली के विवाह से प्रसन्न हों और सत्ती के चाकू से मणिक मुल्ला की जान बच जाने पर प्रसन्न हों। जो लोग दु:खान्त के प्रेमी हैं वे सत्ती के भिखारी जीवन पर दु:खी हों, लिली और मणिक मुल्ला के अनन्त विरह पर दुखी हों। लेकिन, दाऊ बाबा अपनी कहानियों से किसी को दु:खान्त का
प्रेमी होने का मौका नहीं देते थे। वे सुखान्त के उपासक थे। कहानी सुनने वाले के मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो, मन में आत्मविश्वास हिलोरे ले, यही उनका प्रयास रहता था। हालांकि उनकी कहानियां मौलिक नहीं थी। वे कहानियां गढ़ते नहीं थे बल्कि उन्होंने कहानियों का संग्रह किया था अपने पूर्वजों से, धार्मिक ग्रंथों से। कभी-कभी वे स्वयं के अनुभव भी सुनाया करते थे ठीक कहानी की तरह। लम्बा अरसा बीत गया उन्हें सुने हुए। उन्हें सुनने की कामनापूर्ति का स्वांग रचा मैंने।
सूरज का सातवां घोड़ा में मणिक मुल्ला को दाऊ बाबा माना और लेखक की जगह स्वयं को रखा। उपन्यास खत्म होने पर एक अलहदा अहसास था। लगा फिर से वही पहाड़ की तलहटी में खटिया बिछाकर दाऊ बाबा की कहानियों का आनंद ले रहा हूं। मणिक मुल्ला की कहानियों से मिले आनंद की खुमारी टूटी भी न थी एक सुबह मां का फोन आया। मां कह रही थीं - दाऊ बाबा नहीं रहे। कल गांव जाऊंगी तेरे पिताजी के साथ। तुझे तो छुट्टी नहीं मिलेगी। फोन उठाया था तब मैं नींद में था लेकिन यह सब सुनकर मैं सन्न रह गया। बाद में मां से और कितनी देर तक, क्या बात हुई कुछ ठीक से याद नहीं रहा। याद रहा बस इतना कि मेरा मणिक मुल्ला चला गया।
मेरे प्रिय लेखकों में से एक धर्मवीर भारती की कृति 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' मेरी बहुत प्रिय है.. इसपर बनी फिल्म भी शानदार थी.. और आपने जिस आत्मीयता से यह आलेख लिखा है, वह प्रशंसनीय है!!
जवाब देंहटाएंदाऊ बाबा को श्रद्धांजली ! ऐसा लगाव होता है ! मैं भी जब छोटे में गाँव में दादा-दादी के पास रहता था तो एक चचा जो हमारे खेतों में हल लगाते थे शाम होते ही अपना कहानियों का पुलिंदा खोल बैठते थे और हमलोग उत्सुकता से उनकी कहानी सुनाने का इन्तजार करते थे !
जवाब देंहटाएंमजेदार.
जवाब देंहटाएंप्रसंसनीय लेख,अच्छा लगा,..
जवाब देंहटाएंपोस्ट में आने के लिए आभार,...इसी तरह स्नेह बनाए रखे,.......
'मेरे माणिक मुल्ला तो दाऊ बाबा हैं!'
जवाब देंहटाएंआत्मीयता की सुगंध लिए हुए...
बेहद सुन्दर आलेख!
सलिल वर्मा जी (बिहारी जी) फिल्म तो मैंने आज ही देखी। बड़ा मजा आया फिल्म देखकर। धर्मवीर भारती जी के गुनाहों का देवता पर भी कोई फिल्म बनी है। क्या आप उसका नाम बता सकते हैं।
जवाब देंहटाएंYun hi kuch rishte taaumra bhule n bhulaye jaate hain...
जवाब देंहटाएंbahut badiya aatmiya prastuti...
Aise man se Jude paatr sabhi ki aas paas rahte hain ...
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट, सादर.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.
आपके शब्दों में उपन्यास का पुनरावलोकन अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंGreat post. Very interestingly written.
जवाब देंहटाएंसबसे पहले दाऊ बाबा को श्रद्धांजली !
जवाब देंहटाएंआपने बड़ी ही सुन्दरता से आलेख लिखा है,.........बहुत आभार आपका
Upnyas ke bare mein upyogi jankari dene ke liye dhanyabad.
जवाब देंहटाएंधर्मवीर भारती जी मेरे पसंदीदा लेखकों में से एक रहे है... उनपर ये बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति लगी. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबड़ा गड़बड़झाला है
सचमुच, किस्सागोई का शानदार और अपने किस्म का खास नमूना है 'सूरज का सातवां घोड़ा.'
जवाब देंहटाएंदाऊ बाबा के साथ आपका अपनत्व पढकर अच्छा लगा उर तभी उनके अवसान की खबर पढकर ... उपन्यास नहीं पढा, लेकिन फ़िल्म देखकर इतना अच्छा लगा था कि वह मेरी प्रिय चुनिन्दा फ़िल्मों की सूची में है (मेरी प्रोफ़ाइल पर भी)
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