मं दिर, मठ या अन्य पूजा स्थल महज धार्मिक महत्व के स्थल नहीं होते हैं। ये अपने समय के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक व्यवस्था के गवाह होते हैं। अपने में एक इतिहास समेटकर खड़े रहते हैं। उनको समझने वाले लोगों से वे संवाद भी करते हैं। ग्वालियर से करीब ७० किलोमीटर दूर मुरैना जिले के सिहोनिया गांव में स्थित ककनमठ मंदिर इतिहास और वर्तमान के बीच ऐसी ही एक कड़ी है। मंदिर का निर्माण ११वीं शताब्दी में कछवाह (कच्छपघात) राजा कीर्तिराज ने कराया था। उनकी रानी का नाम था ककनावती। रानी ककनावती शिवभक्त थीं। उन्होंने राजा के समक्ष एक विशाल शिव मंदिर बनवाने की इच्छा जाहिर की। विशाल परिसर में शिव मंदिर का निर्माण किया गया। चूंकि शिव मंदिर को मठ भी कहा जाता है और रानी ककनावती के कहने पर इस मंदिर का निर्माण कराया गया था, इसलिए मंदिर का नाम ककनमठ रखा गया। वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् श्री जयंत तोमर बताते हैं कि सिहोनिया कभी सिंह-पानी नगर था। बाद में अपभ्रंश होकर यह सिहोनिया हो गया। यह ग्वालियर अंचल का प्राचीन और समृद्ध नगर था। यह नगर कछवाह वंश के राजाओं की राजधानी था। इसकी उन्नति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ग्वालियर अंचल के संग्रहालयों में संरक्षित अवशेष सबसे अधिक सिहोनिया से प्राप्त किए गए हैं। श्री तोमर बताते हैं कि तोमर वंश के राजा महिपाल ने ग्वालियर किले पर सहस्त्रबाहु मंदिर का निर्माण कराया था। सहस्त्रबाहु मंदिर के परिसर में लगाए गए शिलालेख में अंकित है कि सिंह-पानी नगर (अब सिहोनिया) अद्भुत है।
ककनमठ मंदिर की स्थापत्य और वास्तुकला के संबंध में जीवाजी यूनिवर्सिटी के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रामअवतार शर्मा बताते हैं कि यह मंदिर उत्तर भारतीय शैली में बना है। उत्तर भारतीय शैली को नागर शैली के नाम से भी जाना जाता है। ८वीं से ११वीं शताब्दी के दौरान मंदिरों का निर्माण नागर शैली में ही किया जाता रहा। ककनमठ मंदिर इस शैली का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के परिसर में चारों और कई अवशेष रखे हैं। ज्यादातर अवशेष मुख्य मंदिर के ही हैं। इतने लम्बे समय के दौरान कई प्राकृतिक झंझावातों का सामना मंदिर ने किया। इनसे उसे काफी क्षति पहुंची। मंदिर का शिखर काफी विशाल था लेकिन समय के साथ वह टूटता रहा। परिसर में अन्य छोटे-छोटे मंदिर समूह भी थे। ये भी समय के साथ नष्ट हो गए। पुरातत्वविद् श्री रामअवतार शर्मा बताते हैं कि खजुराहो में सबसे बड़ा मंदिर अनश्वर कंदारिया महादेव का है। ककनमठ मंदिर समूह इससे भी विशालतम मंदिर था। वर्तमान में परिसर की जो बाउंड्रीवॉल है, यह मंदिर का वास्तविक परिसर नहीं है। मंदिर का परिसर इससे भी काफी विशाल था। बाउंड्रीवॉल के बाहर भी मंदिर समूह के अवशेष मिले हैं। श्री शर्मा बताते हैं कि भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के दौरान शिखर की ओर से गिरने वाली विशाल चट्टानों के कारण मंदिर पर उकेरी गईं प्रतिमाओं को काफी नुकसान पहुंचा है। ककनमठ मंदिर की दीवारों पर शिव-पार्वती, विष्णु और शिव के गणों की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। प्रतिमाएं इतने करीने से पत्थर पर उकेरी गईं हैं कि सजीव प्रतीत होती हैं। हालांकि ज्यादातर प्रतिमाएं खण्डित हैं। लेकिन, अपने कला वैभव को बखूबी बयां करती दिखाई देती हैं।
कैसे पहुंचे : ग्वालियर और आगरा आने वाले पर्यटक रेल मार्ग से मुरैना तक पहुंच सकते हैं। मुरैना से टैक्सी की मदद से ककनमठ तक पहुंचा जा सकता है। ग्वालियर और आगरा से भी निजी वाहन या किराए की टैक्सी से मितावली, पड़ावली, शनिचरा और ककनमठ मंदिर तक जा सकते हैं।
मंदिर परिसर में फैले मंदिर के अवशेष... |
सामने से मंदिर का दृश्य... |
मंदिर की दीवारों पर उकेरी गयीं प्रतिमाएं... अब खंडित स्थिति में |
लोकेन्द्र जी
जवाब देंहटाएंनमस्ते
आपने बहुत अच्छा ऐतिहासिक जीवंत इतिहास को कुरेदा है जिसे सभी भारतियों को देखना चाहिए समझना भी चाहिए वहाँ पर बहार जो अशांति है मंदिर के अंदर उतना ही शांति है केवल सकारात्माक सोच कि आवस्यकता है.
बहुत-अभूत धन्यवाद
सूबेदार जी आपका कहना सही है...
हटाएंध्वंसों में व्यक्त इतिहास का ऐश्वर्य, अनूठी जानकारी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रवीण जी...
हटाएंइतिहास कभी मेरा विषय नहीं रहा, लेकिन लोकेन्द्र जी इतिहास की इन धरोहरों ने मुझे सदा आकर्षित किया है.. और आपने जिस अन्दाज़ में गाइड की भूमिका निभाई है हमारे लिये वो प्रशंसनीय है!! आभार!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सलिल जी...
हटाएंलाजवाब चित्र अपनी कहानी कह रहे हैं ... इतिहास को बयाँ कर रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंलाजवाब जानकारी जो आकर्षित करती है सदा ही ...
धन्यवाद दिगम्बर जी
हटाएंककनमठ जाने की योजनाएं तो फलीभूत नही हुईं लेकिन यहाँ सचित्र विवरण पढकर जिज्ञासा शान्त तो हो ही गई है । यही इस आलेख की सफलता है । लोकेन्द्र भाई घूमने के अच्छे अवसर मिल रहे हैं बधाई । पढावली, मितावली और बटेश्वर के सुन्दर भग्नावशेष हमने पिछले वर्ष देखे जब स्कूल से छात्रों को लेगए थे । बटेश्वर में मन्दिरों के अवशेष भी दर्शनीय हैं ।
जवाब देंहटाएंदीदी वो भी देख आया जल्द ही जरूरी काम से फुर्सत पाकर लिखूंगा उस पर....
हटाएंबहुत अच्छा विवरण लोकेन्द्र जी।
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