मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

एफसीआरए फंडिंग के नए नियमों पर आपत्ति क्यों?

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेशलेट ने एफसीआरए फंडिंग संबंधी भारत सरकार के नये नियमों पर आपत्ति जताई है। मिशेल ने भारत सरकार से विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम की समीक्षा करने की अपील की और खेद व्यक्त किया कि इसका उपयोग 'मानवाधिकार रिपोर्टिंग के लिए गैर सरकारी संगठनों को रोकने या दंडित करने के लिए’ किया जा रहा था। उनकी टिप्पणियां मीडिया में सुर्खियाँ बनी। 

इस बयान पर भारत ने मिशेल को सटीक उत्तर दिया है। भारत की ओर से कहा गया है कि मानवाधिकार के बहाने कानून का उल्लंघन माफ नहीं किया जा सकता। संयुक्त राष्ट्र इकाई से मामले को लेकर अधिक सुविज्ञ मत की आशा थी। 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बेशलेट ने एफसीआरए फंडिंग के बहाने नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में किए गए अतार्किक और हिंसक आंदोलनों को भी मानवाधिकारों से जोडऩे की कोशिश की। संदिग्ध गतिविधियों में पकड़े गए कैथोलिक पादरी स्टेन स्वामी का मामला भी उन्होंने उठाया है। 

कुल मिलाकर मिशेल बेशलेट के बयान को देखें तो वह पूर्वाग्रह, ईसाई मिशनरीज और भारत विरोधी ताकतों से प्रभावित लगता है।

अगर इस शर्त से आपत्ति है तब यह माना जा सकता है कि एनजीओ का उद्देश्य समाज हित नहीं, कुछ और है। यह भी माना जा सकता है कि विदेशी फंडिंग का उपयोग असामाजिक और देशविरोधी गतिविधियों में हो रहा है। 

जाँच-पड़ताल में सामने आया है कि विदेशी अनुदान का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा ईसाई एनजीओ के पास आता है। ये संस्थाएं इस राशि का उपयोग कन्वर्जन में करती हैं, जो कि गैर-कानूनी है। पिछले माह ही गृह मंत्रालय द्वारा कन्वर्जन में लिप्त लगभग एक दर्जन संगठनों के लाइसेंस रद किए गए। 

इन गैर सरकारी संगठनों की ताकत का अंदाजा इसी से चलता है कि ओबामा और ट्रंप सरकारों ने ईसाई संगठन कंपैशन इंडिया के अंशदान पर लगी रोक को हटाने के लिए भारत पर भरपूर, किंतु असफल दबाव बनाया था। 

यह नोटिस करके की बात है कि जब भी ईसाई मिशनरीज के कन्वर्जन के खेल में बाधा पहुँचती है, अमेरिकी या अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं सक्रिय हो जाती हैं। हमने पहले भी भारत के सन्दर्भ में अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की झूठी रिपोर्ट का विश्लेषण किया है, जिसे आपको देखना चाहिए।

Reality of USCIRF Annual Report 2020 on International Religious Freedom

खैर, एफसीआरए लाइसेंसी संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर भी सवालों के घेरे में आते रहे हैं। भीमा कोरेगांव मामले की जांच कर रही एजेंसियों को मिशनरी संगठनों द्वारा प्राप्त हुए धन के नक्सलवादियों तक पहुंचने के सुबूत मिले हैं। यह भी तथ्य सामने आए हैं कि एनजीओ को प्राप्त हो रहे विदेशी अनुदान का बड़ा हिस्सा जासूसी गतिविधियों पर खर्च किया जा रहा था। 

क्या देश की सुरक्षा और संप्रभुता को सुनिश्चित करने के लिए अनियमित विदेशी अनुदान को पारदर्शी बनाकर मोदी सरकार ने किसी प्रकार के मानवाधिकारों पर हमला किया है? इसका एक ही उत्तर है, नहीं। भारत के सामाजिक-धार्मिक तानेबाने और आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए यह एक आवश्यक कदम था, जिसे बहुत पहले उठाया जाना चाहिए था। 

अब इस समाचार से जुड़ी एक और जानकारी आपको देते हैं। 

भारत के ही नेता ने मिशेल बेशलेट को भारत आमंत्रित करते हुए लिखा है कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त भारत आयें और लोगों से बात करके जाने कि किस तरह सरकार यहाँ मानवाधिकारों को कुचल रही है।

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसी सोच का नेता कौन है। खैर, इसे छोडिये कि वो कौन है, आप यह तय कीजिये कि ऐसी सोच के नेताओं का आपको क्या करना है?

1 टिप्पणी:

  1. बहुत बढ़िया लेख। ईसाई मिशनरियों की बड़ी खतरनाक साजिश चल रही है भारत को बर्बाद करने के लिए। ये लोग विदेशी फंडिग से बहुत मदद पाते है तभी ये गांव गांव झोला लेकर घूमते हुए दिख जाएंगे। इनका काम केवल पैसे और अंधविश्वास के नाम पर पिछड़ी हिन्दू जातियों को इशु बाबा का भक्त बनाना है इसमें इनका साथ देते है ये तथाकथित मानवाधिकार की बात करने वाले ये नेता।

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