रविवार, 25 अक्तूबर 2020

राष्ट्रीय विचारों का पुण्य प्रवाह ‘स्वदेश’

चित्र स्वदेश समूह के स्वर्ण जयंती समारोह और स्वदेश भोपाल समूह के 35 वर्ष पूर्ण होने के अवसर का

राष्ट्रीय विचारों का ध्वज वाहक दैनिक समाचारपत्र ‘स्वदेश’ हिन्दी पत्रकारिता का प्रमुख स्तम्भ है। विजयादशमी के अवसर पर शुभ संकल्प के साथ प्रारंभ हुए ‘स्वदेश’ ने सदैव ही, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों और आपातकाल जैसे संवैधानिक संकट के समय में भी राष्ट्रीय विचार की पत्रकारिता की विजय पताका को नील गगन में फहराया है। स्वदेश ने बाजारवाद और कड़ी प्रतिस्पद्र्धा के दौर में भी यह स्थापित करके दिखाया है कि मूल्य और सिद्धाँतों की पत्रकारिता संभव है। समूचे पत्रकारिता जगत में स्वदेश का अपना वैशिष्ट्य है। स्वदेश की पहचान राष्ट्रीय प्रहरी के तौर पर भी है।  

लखनऊ में जिस स्वदेश की नींव एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने रखी थी, मध्यप्रदेश में वही स्वदेश राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन जी की प्रेरणा से शुरू हुआ। इंदौर और ग्वालियर में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने के बाद स्वदेश ने भोपाल की राह चुनी। 1966 में जब इंदौर से स्वदेश की शुरुआत हुई, तब राष्ट्रीय विचार की पत्रकारिता के लिए अनुकूल परिस्थितियां नहीं थी। राष्ट्रीय विचारधारा से ओत-प्रोत संगठनों के समाचार या फिर राष्ट्रीय विचारधारा को पुष्ट करने वाली जनसामान्य की विराट अभिव्यक्ति को भी समाचारपत्रों में स्थान मिलना मुश्किल रहता था। लेकिन, स्वदेश ने राष्ट्रीय विचारधारा से जुड़े समाचारों और विचारों को प्रमुखता से स्थान दिया। यशस्वी संपादक मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी ने अपने संपादकीय कौशल और ओजस्वी शैली से मध्यप्रदेश की पत्रकारिता को विवश कर दिया कि वह अपनी दशा-दिशा में बदलाव लाए और अपनी दृष्टि को व्यापक करे। 

स्वदेश के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले ‘मामाजी’ ने अपने एक आलेख में लिखा था कि जो पत्रकारिता तुष्टीकरण तथा छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों की चेरी बन गई थी, जो पत्रकारिता गांधी, तिलक, अरविंद, दीनदयाल उपाध्याय और दादा माखनलाल चतुर्वेदी के मार्ग से हट गई थी, जो पत्रकारिता भारतीय राष्ट्रीयता के पर्यायवाची हिन्दुत्व के विचार से बिचकती थी, अब वह पत्रकारिता पूर्व की भाँति भ्रांत धर्मनिरपेक्षतावादियों की चेरी या चारण नहीं है। वह अब राष्ट्रवादी विचार को अस्पृश्य नहीं मानती है। उसे गंभीरता से लेती है। उसे डांटती है तो पीठ भी थपथपाती है। कोई अब उसकी उपेक्षा नहीं करता-नहीं कर सकता। कोई उसे अनदेखा नहीं कर सकता। यकीनन, मध्यप्रदेश के पत्रकारिता जगत में यह परिवर्तन स्वदेश की प्रखर राष्ट्रीय विचारधारा के कारण ही आया। स्वदेश ने राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़े प्रश्नों को जिस तरह उठाया, उस अंदाज ने समाज के सामान्य पाठक से लेकर प्रबुद्धजनों को सोचने पर विवश कर दिया। स्वदेशी, गो-संरक्षण, श्रीराम मंदिर आंदोलन, सांप्रदायिकता, तुष्टीकरण, आंतरिक सुरक्षा और लोकतंत्र इत्यादि विषयों पर स्वदेश ने राष्ट्रीय दृष्टिकोण को समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। समाज का प्रबोधन किया। देशविरोधी ताकतों द्वारा चलाए जाने वाले भ्रामक विमर्श के प्रति लोगों को जागरूक किया। हालाँकि, मध्यप्रदेश में स्वदेश की नींव को मजबूत करने वाले मामाजी बड़प्पन दिखाते हुए कहते थे कि “आज जो सुखद परिवर्तन समाज के चिंतन में आया है, उसका श्रेय स्वदेश को नहीं है, उन असंख्य नींव के पत्थरों को है, जिन्होंने राष्ट्र जागरण के पावन कार्य में अपने जीवन खपा दिए हैं। उनके विचारों व कार्यों के प्रामाणिक प्रचार-प्रसार व उनके पक्ष में जनमत निर्माण में स्वदेश की भूमिका सेतुबंध के समय सक्रिय तुच्छ गिलहरी के बराबर भी रही हो, तो स्वदेश अपने को धन्य मानेगा”।

स्वदेश ने अपनी बेबाकी और राष्ट्रीय विचार के प्रति निष्ठा की कीमत भी चुकायी है। स्वदेश, भोपाल समूह ने केवल वैचारिक हमलों ही सामना नहीं किया बल्कि उस पर कट्टरवादी मानसिकता के समूहों ने प्रत्यक्ष हमले भी किए हैं। इस संदर्भ में एक घटना उल्लेखनीय है, जब स्वदेश, भोपाल का कार्यालय मारवाड़ी रोड पर था। उस समय एक समाचार के चिढ़ कर स्वार्थी और हिंसक गिरोह ने स्वदेश के कार्यालय पर हमला कर दिया था और तोड़-फोड़ मचा कर बहुत नुकसान पहुँचाया। लेकिन, उसके बाद भी स्वदेश के तेवर ढीले नहीं हुए। उसने उसी मुखरता से देश-समाज विरोधी ताकतों के विरुद्ध समाचार एवं विचार प्रकाशित करना जारी रखा। अपनी स्पष्टवादिता के कारण स्वदेश को आर्थिक संकटों का भी सामना करना पड़ा है। आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है। राष्ट्रीय विचारधारा के विरोधियों की आँखों में आज भी स्वदेश खटकता है। उनको जब भी अवसर मिलता है, वे स्वदेश को क्षति पहुँचाने का प्रयत्न ही करते हैं। स्वदेश के विचार से जुड़े लोगों को प्रारंभ से पता था कि उसका मार्ग बाकी समाचारपत्रों की तरह आसान नहीं रहने वाला है। जिनके भी हाथ में स्वदेश की बागडोर रही, उन्हें पता था कि हमें सिद्धाँतों पर अडिग़ रहना है। इसलिए ही महान संकट से समय में भी स्वदेश ने पत्रकारिता के सिद्धांतों, मानदण्डों और वैचारिक अधिष्ठान को नहीं बदला। पूरी निष्पक्षता और निर्भीकता के साथ स्वदेश पत्रकारिता के भारतीय मूल्यों को समृद्ध करता रहा है। 

स्वदेश, भोपाल समूह का नेतृत्व ऐसे यशस्वी संपादक श्रीमान राजेन्द्र शर्मा जी के हाथों में है, जिनके पत्रकारीय जीवन को ही पाँच दशक से अधिक समय हो गया है। राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर आज भी उनकी लेखनी हम सबका मार्गदर्शन करती है। वे और स्वदेश पत्रकारिता की पाठशाला हैं। उनके प्रयासों से 1981 में भोपाल से स्वदेश प्रारंभ हुआ। उनके कुशल संपादन में स्वदेश ने मध्यप्रदेश के उस शहर (राजधानी) की पत्रकारिता में अपनी स्थिति मजबूत कर ली, जहाँ से शेष प्रदेश में विमर्श बनता है। ठीक 10 वर्ष की यात्रा के बाद स्वदेश भोपाल की यात्रा में एक और महत्वपूर्ण पड़ाव आया, जब इस समूह ने 1991 में अपने सांध्यकालीन संस्करण ‘सायंकालीन स्वदेश’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। आज स्वदेश भोपाल समूह के जबलपुर, सागर, रायपुर और बिलासपुर से भी विभिन्न संस्करण निकल रहे हैं। सागर से यह ‘स्वदेश ज्योति’ के नाम से प्रकाशित होता है। स्वदेश की एक ओर परंपरा है, जो इसे विशिष्ट बतानी है, वह है इसके संग्रहणीय विशेषांकों की समृद्ध शृंखला। प्रधान संपादक श्रीमान राजेन्द्र शर्मा के संपादन एवं मार्गदर्शन में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के अमृत महोत्सव पर ‘अटल विशेषांक’, राजमाता सिंधिया की स्मृति में ‘पुण्य स्मरण’, श्रीगुरुजी जन्म शताब्दी वर्ष पर ‘राष्ट्रऋषि श्री गुरुजी’, मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी की स्मृति में ‘पुष्पांजलि’, सुदर्शन स्मृति और वंदनीय विवेकानंद जैसे संग्रहणीय विशेषांक प्रकाशित हुए हैं।  

यह सुखद अवसर है जब अपने उद्देश्य और ध्येय की ध्वजा को लेकर 39 वर्ष सफलता से पूर्ण कर अब स्वदेश 40वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। आज तकनीक के कारण पत्रकारिता का परिदृश्य बदला हुआ है। हमें भरोसा है कि स्वदेश इस बदले हुए परिदृश्य में भी राष्ट्रीय विचारों का संवाहक बनेगा और डिजिटल पत्रकारिता में भी अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराएगा। 40वें स्थापना दिवस के शुभ अवसर पर यही आकांक्षा और शुभकामनाएं हैं कि स्वदेश की यह गौरवपूर्ण यात्रा अनवरत जारी रहे... 

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