शनिवार, 3 अक्तूबर 2020

नृशंस अपराध और घृणित राजनीति पर लगे रोक


पहले उत्तरप्रदेश के हाथरस जिले और उसके बाद बलरामपुर जिले में दलित लड़की के साथ दरिंदगी की घटना सामने आई है। बलरामपुर में भी दलित युवती के साथ क्रूरता की वह सब हदें पार की गईं, जो हाथरस की बेटी के साथ हुईं। नरपिशाचों ने पहले युवती को नशे का इंजेक्शन लगाया, उसके बाद सामूहिक बलात्कार किया और पीट-पीट कर उसकी कमर एवं पैर तोड़ दिए। इतनी ज्यादती के बाद भला कौन बचता? जैसे हाथरस की बेटी ने लगभग 15 दिन के संघर्ष के बाद दम तोड़ दिया, उसी तरह बलरामपुर की बेटी के जीवन की डोर भी अस्पताल पहुँचते ही टूट गई। दोनों ही घटनाओं में पुलिस की लापरवाही साफ दिखाई देती है। हाथरस की बेटी की तरह यहाँ भी पुलिस ने लोगों के आक्रोश एवं विरोध प्रदर्शन को रोकने की आड़ लेकर चुपचाप रात में अंतिम संस्कार कर दिया। यह नृशंस घटनाएं हमारे लिए शर्म की स्थिति पैदा करती हैं। एक ओर जहाँ हम नया भारत बनाने का संकल्प लेकर आगे बढऩे को उत्सुक हैं, वहीं दूसरी ओर बेटियों के साथ इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। उल्लेखनीय है कि इसी तरह दिल्ली के निर्भया प्रकरण ने देश को आंदोलित कर दिया था। उस समय भी हमने यह संकल्प लिया था कि बेटियों को सुरक्षित वातावरण उपलब्ध कराएंगे। कानून में भी ऐतिहासिक परिवर्तन किया गया। लेकिन, परिणाम क्या है- हाथरस और बलरामपुर। 

उत्तरप्रदेश के ये दोनों शहर ही नहीं, बल्कि देश के अन्य राज्यों के शहरों से भी कमोबेश इसी प्रकार की दर्दनाक घटनाएं सामने आती रहती हैं। राजस्थान के बांसवाड़ा में एक युवती नग्न अवस्था में मिली है। अपराधियों ने दुष्कर्म कर उसकी भी हत्या कर दी। निर्भया प्रकरण के बाद भी बहुत बदलाव नहीं आया है। बेटियों के प्रति इस विकृत मानसिकता को रोकने के संबंध में गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। कानूनों का अपना महत्व एवं आवश्यकता है लेकिन इस क्रूरता को रोकने के लिए सामाजिक प्रबोधन बहुत आवश्यक है। सामाजिक संगठनों, धार्मिक संस्थाओं और परिवारों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। हाथरस की घटना पर जातिवादी और पुरुषवादी मानसिकता से भरे जिस तरह के कुछ बयान एवं प्रतिक्रियाएं आई हैं, वे उस उक्त घटनाओं से भी ज्यादा क्रूर हैं। समाज के प्रबुद्ध एवं जागरूक लोगों को न केवल इस प्रकार की मानसिकता के लोगों का बहिष्कार करना चाहिए बल्कि उन नेताओं एवं बुद्धिपिशाचों को भी आईना दिखाना चाहिए जो गिद्धों की तरह घटनाओं को चुनकर समाज में वैमनस्यता, द्वेष, विभाजन एवं घृणा के बीज बोने का काम करते हैं। 

नेताओं एवं बुद्धिजीवियों के कपटपूर्ण आचरण को समझने के लिए दोनों घटनाओं पर उनकी प्रतिक्रियाओं को देख लेना ही पर्याप्त होगा। एक ही समय की दोनों घटनाओं पर किस प्रकार का रवैया दिखाई दे रहा है- हाथरस की घटना पर भयंकर उबाल है, लेकिन बलरामपुर की घटना पर उतनी ही गजब की खामोशी। जबकि दोनों ही घटनाओं में दरिंदगी की शिकार दलित बेटियां हुई हैं। लाव-लश्कर के साथ हाथरस जाने के लिए राजनीतिक ड्रामा करने वाले नेता बलरामपुर की घटना पर इसलिए चुप हैं क्योंकि वहाँ आरोपी/अपराधी उनके एजेंडे का कमजोर करने वाले हैं। आखिर ये लोग बलरामपुर की दलित बेटी को न्याय दिलाने के लिए आवाज क्यों नहीं उठा रहे? बलरामपुर ही क्यों, उत्तरप्रदेश के ही आजमगढ़ और बुलंदशहर में नाबालिग लड़की के साथ हुए दुष्कर्म की घटनाओं पर भी खामोशी पसरी हुई है।  

हाथरस की दर्दनाक घटना पर जिस तरह की घृणित एवं संकीर्ण राजनीति प्रारंभ हो गई है, वह हमारे राजनीतिक चेतना में आई महान गिरावट को रेखांकित करता है। क्योंकि, वहाँ पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने के प्रयास नहीं, बल्कि हिन्दू समाज को बाँटने और राजनीतिक एवं वैचारिक स्वार्थपूर्ति के प्रयत्न हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस घटना पर शोक व्यक्त किया है और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को कठोर कार्रवाई कर सभी दोषियों को सजा दिलाने के निर्देश दिए हैं। उत्तरप्रदेश सरकार को इस मामले में लापरवाही करने वाले पुलिस प्रशासन पर भी कार्यवाही करनी चाहिए। पुलिस प्रशासन के गलत निर्णयों एवं लापरवाही ने मामले को अधिक संदिग्ध और विवाद का विषय बनाया है। भरोसा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न केवल हाथरस और बलरामपुर की घटनाओं की ईमानदार जाँच कराने के उपरांत दोषियों को सजा दिलाएंगे, बल्कि प्रदेश की कानून व्यवस्था को ठीक करने के लिए भी आवश्यक कदम उठाएंगे।

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