शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2020

न्याय की जीत, झूठ हुआ परास्त


भारत के स्वाभिमान के प्रतीक भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण में बाधाएं उत्पन्न करने और भारत के राष्ट्रीय विचार के प्रति नकारात्मक वातावरण बनाने के लिए बोले गए सभी झूठ अब एक-एक कर ध्वस्त हो रहे हैं। पहले श्रीराम मंदिर के संबंध में निर्णय आया और अयोध्या में भव्य मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं उपस्थित होकर मंदिर निर्माण का भूमिपूजन भी सम्पन्न कराया। अब तथाकथित ढांचे के विध्वंस के संबंध में फैलाए गए झूठ की कलई भी खुल गई है। बाबरी ढांचा गिराए जाने संबंधी प्रकरण में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 32 आरोपियों को न्यायालय ने दोषमुक्त कर दिया है। लखनऊ की सीबीआई अदालत ने 30 सितंबर को अपने निर्णय में कहा है कि 6 दिसंबर, 1992 की घटना के पीछे कोई साजिश नहीं थी। अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश एसके यादव ने फैसला सुनाते हुए कहा, “घटना पूर्वनियोजित नहीं थी”। जबकि भारत विरोधी गिरोह ने वर्षों तक अफवाहों, मनगढ़ंत तर्कों और तथ्यों के आधार पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक जहर फैलाया कि तथाकथित बाबरी ढांचे को षड्यंत्र रच कर तोड़ा गया। इस काल्पनिक षड्यंत्र के लिए यह गिरोह भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं विश्व हिन्दू परिषद जैसे राष्ट्रीय संगठनों से जुड़े लोगों को जिम्मेदार ठहराता रहा। गिरोह में शामिल राजनीतिक दलों, नेताओं, तथाकथित बुद्धिजीवियों एवं पत्रकारों ने वर्षों तक इन राष्ट्रीय संगठनों एवं निर्दोष लोगों के विरुद्ध विषवमन किया। सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया। इस ‘हिन्दू विरोधी विमर्श’ के कारण देश में न केवल हिन्दू-मुसलमानों के बीच दूरी बढ़ी बल्कि अनेक जगह सांप्रदायिक दंगे भी इस विमर्श के कारण हुए। 

अयोध्या में जिस दिन तथाकथित बाबरी ढांचे के तोड़े जाने की घटना हुई थी, उस दिन वहाँ उपस्थित अनेक लोग मानते हैं कि वह भीड़ द्वारा किया गया अप्रत्याशित कृत्य था। किसी भी राजनीतिक या सामाजिक नेता ने लोगों से यह आह्वान नहीं किया था कि तथाकथित ढांचे को तोडऩा है बल्कि जब भीड़ आक्रोशि हो उठी तब सभी बड़े नेताओं ने उसे शांत कराने के प्रयास किए। मंच से अनुशासन रखने और धैर्य-संयम दिखाने का आह्वान किया जा रहा था। यह सब खुले मैदान में हो रहा था, इसके बाद भी यह झूठ वर्षों तक बोला गया कि भाजपा-विहिप के नेताओं ने बाबरी को ध्वस्त करने का आह्वान किया। यह याद रखना चाहिए कि लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित अनेक बड़े नेताओं ने बाबरी ढ़ाचे को तोड़े जाने की कड़ी निंदा की थी और इसे दुर्भाग्यपूर्ण कृत्य बताया था। लेकिन, गिरोह द्वारा हिन्दू विरोधी विमर्श में इन तथ्यों पर हमेशा पर्दा डाला गया। इस महान झूठ को साबित करने के लिए जो भी प्रमाण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए, उन्हें न्यायालय ने खारिज कर दिया। न्यायालय का मत है कि ये प्रमाण न केवल पर्याप्त हैं, बल्कि इनके साथ छेड़छाड़ की गई है। 

उल्लेखनीय है कि देशभर से रामधुन गाते हुए लाखों की संख्या में रामभक्त कारसेवक खाली हाथ ही अयोध्या पहुँचे थे। उनके पास ऐसे कोई साधन या सामग्री नहीं थी, जिससे पता चलता हो कि वे योजना बनाकर और पूर्ण तैयारी के साथ बाबरी ढांचे को तोडऩे आए हों। वे तो बस अपने आराध्य श्रीराम के दर्शन और मंदिर निर्माण की माँग के साथ एकत्र हुए थे। परंतु, आक्रोशित भीड़ ने ऐसी घटना को अंजाम दे दिया था, जिसके कारण हिन्दू विरोधी ताकतों को रामभक्तों के पवित्र, निर्दोष, शांतिपूर्ण आंदोलन पर कलंक लगाने का अवसर प्राप्त हो गया। कहते हैं कि झूठ कितना भी ताकतवर क्यों न हो, आखिर एक दिन सत्य के सामने पराजित हो ही जाता है। 30 सितंबर, 2020 को न्यायालय में ऐसे ही ताकतवर झूठ की हार हुई और रामभक्तों के साथ न्याय हुआ।  

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