आतंकवादी हमलों से आहत भारत के नागरिक चाहते हैं कि पाकिस्तान का समूचा बहिष्कार किया जाए। इस सिलसिले में बॉलीवुड से पाकिस्तानी कलाकारों को बाहर करने और उन्हें काम नहीं देने की माँग जोर पकड़ रही है। यह माँग स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन, बॉलीवुड से लेकर अन्य कला और तथाकथित बौद्धिक जगत इस विषय पर भी दो हिस्सों में बँटा नजर आ रहा है। देश का सामान्य आदमी समझ नहीं पा रहा है कि आखिर पाकिस्तानी कलाकारों से इतना प्रेम क्यों है? पाकिस्तानी कलाकारों का समर्थन क्या देशहित से बढ़कर है? पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम नहीं करेंगे, तब क्या बॉलीवुड ठप हो जाएगा? इन सवालों के जवाब कोई नहीं दे रहा। हद है कि कुछेक लोग पाकिस्तानी कलाकारों को देश से ऊपर रखने का प्रयास कर रहे हैं। उनके लिए कलाकार किसी भी प्रकार की सीमा से ऊपर हैं। वह पूछ रहे हैं कि क्या पाकिस्तानी कलाकारों को भगा देने से आतंकवाद समाप्त हो जाएगा? नहीं होगा, आतंकवाद समाप्त। लेकिन, क्या आप भरोसा दिलाते हैं कि पाकिस्तानी कलाकारों को काम देने आतंकवाद समाप्त हो जाएगा? भारत में आप अभिव्यक्ति की आजादी का बेजा इस्तेमाल करते हैं, इसलिए आप खुद को खुदा समझते हो। यदि वाकई कलाकार संवेदनशील हैं और उनके लिए देश की सीमाएँ कोई मायने नहीं रखती, तब क्या पाकिस्तानी कलाकार बेकसूर लोगों का खून बहाने वाले आतंकवादियों का विरोध कर सकते हैं? पाकिस्तानी कलाकारों के समर्थक क्या इतना भर करा सकते हैं कि कोई फवाद खान पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ बयान जारी कर दे? यह संभव नहीं है। इसलिए पाकिस्तानी कलाकारों के लिए विधवा विलाप बेमानी है।
पाकिस्तानी कलाकारों के बहिष्कार को लेकर चल रही इस बहस में अभिनेता ओम पुरी ने बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की है। उन्होंने भारतीय सेना और उसके जवानों की देशसेवा पर ही सवाल उठा दिया है। पाकिस्तानी कलाकारों के प्रति प्रेम प्रकट करते वक्त ओम पुरी यहाँ तक कह गए कि जवानों को कौन कहता है कि सेना में भर्ती हो जाओ? सेना के प्रति इस तरह की बयानबाजी किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराई जा सकती। हम जवानों की तपस्या का मान नहीं रख सकते, तब कम से कम उनके प्रति नकारात्मक टिप्पणी तो न करें। सबसे पहले इस विवाद में सलमान खान पड़े। उन्होंने कहा कि कलाकार और आतंकवादी दो अलग चीज हैं। पाकिस्तानी कलाकार कोई आतंकवादी नहीं है, बल्कि वह वीजा लेकर आते हैं। सरकार उन्हें वीजा और यहाँ काम करने का परमिट देती है। इसके बाद करण जौहर ने कहा कि कलाकारों पर प्रतिबंध लगाने से आतंकवाद का समाधान नहीं होगा। इसी तरह का प्रश्न अनुराग बसु ने उठाया। सैफ अली खाने भी कहते हैं कि हमारी इंडस्ट्री सबके लिए खुली है। हम कलाकार शांति और अमन की बात करते हैं। कुछेक और लोग भी इसी तरह की राय बाँटते नजर आए हैं। समूचा देश हैरत से देख रहा है कि कब और किस कलाकार ने अमन और शांति के लिए आतंकवाद का विरोध किया। एक भी पाकिस्तानी कलाकार ने उड़ी हमले या दूसरे हमले में शहीद हुए भारतीय जवानों और सामान्य जन के प्रति संवेदना जताई हो तो बताएँ।
बहरहाल, यह निर्थक बहस इतनी चलनी ही नहीं चाहिए थी। देश की जनता ने माँग की थी, बॉलीवुड को उसका सम्मान करना चाहिए था। यह जनता ही तो बॉलीवुड की ताकत है। पाकिस्तानी कलाकारों के प्रेमियों को यह समझ लेना चाहिए कि देश की जनता चाह ले तो आपकी वह सभी फिल्में फ्लॉप हो जाएंगी, जिनमें पाकिस्तानी कलाकार हैं। इसलिए भले ही आप पाकिस्तानी कलाकारों का बहिष्कार मत कीजिए। लेकिन जनता ने तय किया, तब उनके साथ-साथ आपका भी बहिष्कार तय है।
पाकिस्तानी कलाकारों का बहिष्कार भारतीय कलाकारों के हित में है। भारत में ऐसे अनेक कलाकार हैं, जिन्होंने सिनेमा और रंगकर्म के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया है। पाकिस्तानी कलाकारों की जगह इन्हें काम दीजिए, क्या दिक्कत है? पाकिस्तानी कलाकारों की अपेक्षा देश की प्रतिभा को मंच देना अधिक श्रेयकर होगा। बहरहाल, 'राष्ट्र सबसे पहले' इस बात को बहुत आसानी से समझने के लिए अपनी ही बिरादरी के देशभक्त चरित्र अभिनेता नाना पाटेकर के बयान को सुनिए। नाना कहते हैं- 'पाकिस्तानी कलाकार और बाकी सब बाद में, पहले मेरा देश। देश के अलावा मैं किसी को नहीं जानता और न जानना चाहूँगा। असली हीरो हमारे जवान हैं। कलाकार देश के सामने खटमल की तरह हैं।'
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