देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ के नेता और बुद्धिजीवी राष्ट्रीय मुद्दों पर भी बेतुकी बयानबाजी करने से बाज नहीं आते हैं। वक्त की नजाकत कहती है कि इस वक्त भारत और पाकिस्तान के संबंध में बहुत संभलकर बोलने की जरूरत है। इस वक्त कोई भी विचार प्रकट करते वक्त यह ध्यान रखना ही चाहिए कि उसका क्या असर होगा? हमारा विचार दुश्मन देश को मदद न पहुँचा दे। अपने किसी भी बयान से भारत सरकार, भारतीय सेना और भारतीय नागरिकों का मनोबल कमजोर नहीं होना चाहिए। लेकिन, स्वार्थ की राजनीति करने वाले नेता बड़ी बेशर्मी से ऐसे प्रश्न खड़े कर ही देते हैं। आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐसी ही एक अमर्यादित टिप्पणी 'सर्जिकल स्ट्राइक' के संबंध में कर दी है। दो मिनट 52 सेकंड का एक वीडिया उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी किया है, जिसमें केजरीवाल पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर बात कर रहे हैं।
वीडियो संदेश के प्रारंभ में लगेगा कि राष्ट्रीय संप्रभुता के मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल दलगत राजनीति से बहुत ऊपर उठकर भारत सरकार के साथ खड़े हैं। यह देख-सुन कर आश्चर्य होगा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को 'मनोरोगी' कहने वाले केजरीवाल आतंकवाद के खिलाफ उठाए साहसी कदम (सर्जिकल स्ट्राइक) के लिए प्रधानमंत्री की खुले दिल से तारीफ कर रहे हैं। लेकिन, 40-45 सेकंड के बाद वीडियो का असली उद्देश्य सामने आता है और केजरीवाल की राजनीति का स्तर भी स्पष्ट होता है। यहाँ से अरविंद केजरीवाल बड़ी चालाकी से प्रधानमंत्री मोदी, केन्द्र सरकार और सेना को शक के दायरे में खड़ा कर देते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और सेना की प्रशंसा करते हुए अचानक केजरीवाल कहते हैं कि 'सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान बौखला गया है। वह भारत की साख खराब करने के लिए गंदी राजनीति कर रहा है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया को सीमा पर ले जाकर यह सिद्ध करने में जुटा है कि यहां तो किसी प्रकार की सर्जिकल स्ट्राइक हुई ही नहीं है। यह देख कर उनका खून खौल गया है। प्रधानमंत्री मोदी जी से आग्रह है कि सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो को जारी किया जाए ताकि पाकिस्तान के द्वारा फैलाए जा रहे झूठ को बेनकाब किया जा सके। क्योंकि, पाकिस्तान इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि पीओके में भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया है।'
क्या अरविन्द केजरीवाल इस बात का भरोसा दे सकते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी करने से पाकिस्तान अपने गुनाह मान लेगा? भारत ने पूर्व में भी प्रत्येक घटना के सबूत पाकिस्तान और दुनिया के सामने प्रस्तुत किए हैं, क्या पाकिस्तान ने कभी अपना अपराध स्वीकार किया है? केजरीवाल जी आप पाकिस्तान के झूठ पर भरोसा कर मत कीजिए, भारतीय सेना के सच पर विश्वास कीजिए। दरअसल, अरविंद केजरीवाल भी उस जमात के हिस्से हैं, जिसे मोदी विरोध की बीमारी है। यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि इसमें देश का हित और अहित ध्यान नहीं रहता, बस मोदी विरोध याद रहता है। यदि हम पूरे वीडिया संदेश को ध्यान से देखें-सुनें तब अरविंद केजरीवाल पाकिस्तानी प्रवक्ता की भूमिका में नजर आएंगे। अरविंद केजरीवाल अपने वीडियो संदेश में दो मिनट तक ऐन-केन प्रकारेण सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत माँगते नजर आ रहे हैं। हद है कि सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत पाकिस्तान ने भी नहीं माँगा, लेकिन हमारे नेता माँग रहे हैं।
केजरीवाल की यह माँग क्या भारत सरकार और भारतीय सेना के शौर्य पर संदेह करने जैसा नहीं है? सेना ने स्वयं सर्जिकल स्ट्राइक की जानकारी देश-दुनिया को दी है। पूरे देश का भरोसा है कि पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर में सेना ने आतंकियों को धूल चटाई है। लेकिन, केजरीवाल को भरोसा नहीं है। यही कारण है कि दूसरे दिन अरविन्द केजरीवाल को पाकिस्तानी मीडिया ने अपने 'हीरो' की तरह प्रस्तुत किया। वहां का मीडिया कह रहा है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री भी सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठा रहे हैं। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा कि भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के शक के बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री ने भी अविश्वास जताया। दुश्मन देश हमारे बयान का अपने बचाव और भारत के खिलाफ उपयोग करे, ऐसी स्थिति किसी भी पानीदार भारतीय के लिए कैसी होनी चाहिए, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट और पाकिस्तान की हरकत पर अरविंद केजरीवाल का खून इतना ही खौल रहा था, तब उन्हें भारतीय सेना से आग्रह करना चाहिए था कि एक सर्जिकल स्ट्राइक और कर दो, ताकि पाकिस्तान को समझ आए कि हाँ सर्जिकल स्ट्राइक हुआ है। केजरीवाल की तरह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदम्बरम और संजय निरुपम को भी सेना पर भरोसा नहीं है। बहरहाल, सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो कब जारी करना है या नहीं करना है? उसका क्या सामरिक महत्त्व है? इसके क्या नफे-नुकसान हो सकते हैं? यह सेना को ही सोचने और तय करने दिया जाए। सीमित नेताओं को इस चक्कर में नहीं पडऩा चाहिए।
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