य ह सुखद बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के प्रति प्रतिबद्धता जताई है। केरल के कोझिकोड में वैश्विक आयुर्वेद महोत्सव को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद की संभावनाओं का पूरा उपयोग अब तक नहीं हो सका है। जबकि इस भारतीय चिकित्सा पद्धति में अनेक स्वास्थ्य समस्याओं के समाधान की क्षमता है। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। भारत इस संबंध में चीन जैसे दूसरे देशों के अनुभवों से सीखने का प्रयास करेगा, जिन्होंने अपनी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को प्रोत्साहित करने के लिए नीतियां बनाईं हैं। हम भली प्रकार जानते हैं कि अब तक भारत में अपनी ही उन्नत चिकित्सा पद्धति की अनदेखी क्यों की गई? अब तक के नीति निर्माताओं को भारतीय ज्ञान-परंपरा पर विश्वास नहीं था। कई अवसर पर आयुर्वेद सहित समस्त भारतीय ज्ञान परंपराओं की जानबूझकर अनदेखी की गई है। पाश्चात्य चिकित्सा पद्धति के तीव्र विस्तार के कारण भी आयुर्वेद पर ध्यान नहीं दिया गया। परिणाम, आयुर्वेद जैसी अद्भुत चिकित्सा पद्धति का विकास उसके अपने ही देश में अवरुद्ध हो गया।
पूर्ववर्ती सरकारों ने देशभर में आयुर्वेद चिकित्सा से संबंधित महाविद्यालय और चिकित्सालय स्थापित तो कर दिए लेकिन उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उनका पूरा ध्यान एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के विस्तार पर रहा। आज हम देखते हैं कि आयुर्वेदिक और अन्य पारंपरिक चिकित्सा की शिक्षा देनेवाले संस्थानों की दशा और दिशा ठीक नहीं है। आयुर्वेदिक चिकित्सा से संबंधित शिक्षा संस्थान केवल डिग्री बांटने के केन्द्र बन कर रह गए हैं। अस्पतालों में पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। इन अस्पतालों में मरीज इलाज कराने जाए भी तो किस भरोसे? तमाम आयुर्वेदिक संस्थान शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही और अनदेखी के शिकार हैं। इस व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। महाविद्यालय और चिकित्सालयों के संसाधनों की गुणवत्ता बढ़ानी होगी। मेडिकल की शिक्षा लेने वाले प्रतिभावान विद्यार्थियों को आयुर्वेद चिकित्सा की ओर आकर्षित करना होगा। यदि सरकार इस दिशा में कुछ ठोस प्रयास करती है तब आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा को प्रतिष्ठित करना कोई मुश्किल काम नहीं होगा। दादी-नानी के नुस्खों से छोटी-मोटी तकलीफों को दूर कर लेने वाले भारतीय समाज के अंतर्मन में अब भी आयुर्वेद के प्रति गहरा विश्वास है। वह मानता है कि आयुर्वेद में लगभग सभी गंभीर रोगों का उपचार उपलब्ध है। आयुर्वेद रोग का जड़ से उपचार करता है। यह ऐलोपैथी की तहर साइड इफेक्ट भी नहीं देता है।
आयुर्वेद महज चिकित्सा पद्धति नहीं है, यह जीवन का ज्ञान है। आयुर्वेद एक ऐसी पद्धति है जो रोगी व्यक्ति का उपचार करके उसे स्वस्थ्य तो करती ही है, स्वस्थ व्यक्तियों के स्वास्थ्य की रक्षा भी करती है। यदि आयुर्वेद के मुताबिक दिनचर्या और जीवनचर्या का पालन किया जाए तो रोग मनुष्य के नजदीक ही नहीं आएंगे। भारत में आयुर्वेद की सुदीर्घ परंपरा रही है। अनेक ऋषियों-मुनियों ने इस चिकित्सा पद्धति का विकास किया।
बहरहाल, भारतीय ज्ञान-परंपरा के प्रति मोदी सरकार की निष्ठा और उसके प्रारंभिक प्रयासों से प्रतीत होता है कि केन्द्र सरकार आयुर्वेद और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए ईमानदार कोशिशें कर रही है। अब तक स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आने वाले 'आयुष विभाग' को मोदी सरकार ने अलग से 'आयुष मंत्रालय' बना दिया है। आयुष मंत्रालय के अंतर्गत आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियां शामिल हैं। स्वतंत्र मंत्रालय बनने से अब पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के विकास और विस्तार पर अधिक ध्यान दिया जा सकेगा, ऐसी उम्मीद है। जैसा कि प्रधानमंत्री स्वयं मानते हैं कि आयुर्वेद की संभावनाओं का पूरा उपयोग नहीं हो सका है। आयुर्वेद भी मानता है कि धरती पर पाई जाने वाली प्रत्येक जड़-पत्ती का औषधिय उपयोग किया जा सकता है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के प्रति लोगों को जागरूक करने, इसका प्रचार-प्रचार करने के साथ ही सरकार को आयुर्वेद की शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और अनुसंधान पर पर्याप्त ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए। आयुर्वेद में शोध की बहुत जरूरत है।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन निर्दोष साबित हों भगत सिंह और उनके साथी में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट ...
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जवाब देंहटाएंज्ञान को भी सप्रयास सहेजना होता है।
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