मै हर विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने परचम फहरा दिया है। उपचुनाव में यहां से भाजपा के उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी ने कांग्रेस के मनीष पटेल को 28 हजार 281 वोटों से परास्त कर विजय प्राप्त की है। यह जीत भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि, रतलाम-झाबुआ लोकसभा उपचुनाव में बड़ी हार ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी थी। राजनीतिक विश्लेषकों ने यह कहना शुरू कर दिया था कि प्रदेश में अब कांग्रेस की वापसी हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अनेक राजनीतिक रैलियों और सभाओं के बाद भी रतलाम चुनाव हारने को उनकी लोकप्रियता में कमी आने का संकेत माना जा रहा था। भाजपा रतलाम की हार का ठीक प्रकार से अध्ययन और विश्लेषण भी नहीं कर पाई थी कि कांग्रेस की सीट मानी जा रही मैहर का उपचुनाव सामने आ गया था। नारायण त्रिपाठी को उम्मीदवार बनाने से भाजपा के अंदरखाने में विरोध की आवाजें उठने लगी थीं। यह कहा जा रहा था कि भाजपा ने गलत उम्मीदवार उतारकर खुद को कमजोर कर लिया है। गौरतलब है कि नारायण त्रिपाठी पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर मैहर से चुनाव जीते थे। उनके इस्तीफे के कारण ही यह सीट खाली हुई थी। बहरहाल, मतदान से पूर्व जन अभियान परिषद, सरकार के इंटेलीजेंस और दो निजी संस्थाओं के सर्वे ने मैहर विधानसभा सीट पर कांग्रेस को मजबूत और भाजपा को कमजोर बताया था। इन सर्वे को देखकर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नन्द कुमार चौहान भी नर्वस हो गए थे। मैहर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने बहुत संभलकर प्रचार अभियान चलाया था। कांग्रेस के गढ़ में इस जीत से निश्चित ही भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ गया होगा। दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही जीत का स्वाद चखकर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चौहान भी खुश होंगे।
विजयी उम्मीदवार नारायण त्रिपाठी ने अपनी जीत की वजह प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता और उनके विकास कार्यों को माना है। यह बात काफी हद तक सही भी है। मुख्यमंत्री ने चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में ताबड़तोड़ रैलियां और सभाएं मैहर में की थी। यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया था। दोनों पार्टियां मैहर में विजय प्राप्त करके खुद को साबित करना चाहती थीं। इसमें बाजी भाजपा के हाथ लगी है। भाजपा इस जीत को भुनाने का प्रयास करेगी। वहीं, कांग्रेस को आत्मचिंतन करना चाहिए कि अपने प्रभाव की सीट कैसे 'हाथ' से निकल गई। कांग्रेस लगातार अपनी जमीन क्यों खोती जा रही है? इसका भी पार्टी के प्रदेश नेतृत्व को पूरी ईमानदारी से आकलन करना चाहिए। उन्हें इस दिशा में भी लोकतांत्रिक तरीके से विमर्श करना चाहिए कि प्रदेश में कांग्रेस के कमजोर होने का कारण कहीं राष्ट्रीय नेतृत्व तो नहीं? राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गाँधी की राजनीतिक दिशा और प्रदेश से ही राष्ट्रीय राजनीति में गए दिग्विजय सिंह की बयानबाजी के कारण कांग्रेस से जनता का मोह भंग हो रहा है। सतना जिले की मैहर विधानसभा सीट पर कांग्रेस को मिली करारी हार से कहीं न कहीं यह भी साबित होता है कि पार्टी में अभी वह एकजुटता नहीं है, जिसकी उसे जरूरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कांग्रेस इन प्रश्नों पर गंभीरता से चिंतन करेगी। फिलहाल तो भाजपा के खेमे में खुशी की लहर है। जातिगत समीकरणों को नकार कर मैहर की जनता ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विकास पर भरोसा दिखाया है। मैहर विधानसभा उपचुनाव का परिणाम भविष्य की ओर भी संकेत करता दिखाई देता है।
यह कहा जा रहा था कि भाजपा ने गलत उम्मीदवार उतारकर खुद को कमजोर कर लिया है। गौरतलब है कि नारायण त्रिपाठी पूर्व में कांग्रेस के टिकट पर मैहर से चुनाव जीते थे। उनके इस्तीफे के कारण ही यह सीट खाली हुई थी।
जवाब देंहटाएं....चुनाव जीतने के बाद उम्मीदवार जिस पार्टी है उसे ५ साल तक उसे पार्टी में रहना होगा, ऐसा क़ानून जाने कब बनेगा, दल बदल कर फिर चुनाव पर करोड़ों रुपये बहाकर प्रजातंत्र के लिए कहाँ तक उचित है, यह घोर चिंतनीय पहलू है... इस विषय पर कभी जरूर लिखियेगा .....