माँ भारती का जाँबाज बेटा हनुमंथप्पा भले ही परलोक चला गया, लेकिन करोड़ों देशभक्त दिलों में वह ज़िंदा है। वैसे भी हनुमंथप्पा जैसे साहसी जवान मरा नहीं करते, वो तो मिसाल बन जाया करते हैं। उनके शौर्य की कहानियां पढ़कर देश के नौनिहाल जवान होते-होते हनुमंथप्पा बन जायेंगे। सियाचीन ग्लेशियर में 6 दिन तक 25 फुट बर्फ ने नीचे दबे रहने के बाद भी जिंदा रहे लांस नायक हनुमंथप्पा हमें हौसले की सीख देने आये थे। संघर्ष का सन्देश देने लौटे थे। देश के लिए जान देने का हुनर सिखाने आये थे। सियाचिन दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध स्थल है। माइनस 45 डिग्री तापमान में भी देश की सीमा की सुरक्षा के लिए हमारे जवान सियाचिन पर तैनात रहकर अदम्य साहस का परिचय देते हैं। कितनी विडम्बना है कि सेना के जवान देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाये रखने के लिए अपनी जान दांव पर लगाते हैं, वहीं तथाकथित प्रगतिशील विचारधारा के लोग सेना के जवानों पर गोलियां दागने वाले आतंकियों का महिमा मंडन करते हैं। हनुमंथप्पा जैसे अनेक सैनिक अपनी जान जोखिम में डालकर हम सब भारतीयों की सुरक्षित नींद को सुनिश्चित करते हैं। बदले में हम उन्हें क्या देते हैं?
यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो क्या है, जो कुछ ख़ास किस्म के प्रगतिशील नौजवान आतंकियों को शहीद का दर्जा उस वक़्त दे रहे थे, जब हनुमंथप्पा जीवन के लिए अस्पताल में संघर्ष कर रहे थे। हनुमंथप्पा को उस वक़्त मौत से सीधी जंग जीतने के लिए हमारी प्रार्थनाओं की जरूरत थी। लेकिन, जेएनयू जैसे राष्ट्रीय शिक्षा केंद्र में वामपंथी विचारधारा के विद्यार्थी भारत को बर्बाद करने की कसमें उठा रहे थे। देश के टुकड़े-टुकड़े करने के नारे लगा रहे थे। सोचिये, हनुमंथप्पा कोमा में नहीं होते और यह सब देख-सुन रहे होते तो उनके दिल पर क्या बीतती। हनुमंथप्पा दुश्मनों को तो मारकर गिरा सकते हैं, लेकिन इन देशद्रोहियो से कैसे पार पाएं? इस देश में आतंकियों की मौत को याद रखने वाले लोग जवानों की शहादत को भूल जाते हैं। जब तक आतंकियों की पैरोकारी करने वाली मानसिकता ज़िंदा है तब तक आतंक से निर्णायक लड़ाई जीत पाना मुश्किल होगा। एक तरफ याकूब मेमन, अफजल गुरु और मकबूल भट्ट का खुलकर समर्थन करते हैं, दूसरी तरफ आतंकवाद से लड़ाई जारी है, दोनों एक साथ कैसे? आतंकी इशरत को बिहार की बेटी बताने वाले अब कहाँ हैं जब अमरीका की जेल में बंद दूसरा आतंकी उसे लश्कर की सदस्य बता रहा है? हेडली अपनी गवाही में कह रहा है कि इशरत आतंकी संगठन के लिए काम करती थी।
इशरत का एनकाउंटर हो, अफजल-याकूब की फाँसी हो या फिर लादेन के शूटआउट पर भारत के नेताओं ने जैसी बयानबाज़ी की उसके जैसी घटिया मिसाल दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिल सकती। हमारे राजनेता इन आतंकियों के सहारे भी वोटबैंक की राजनीति करने से बाज नहीं आते। आतंकियों के समर्थन में खड़े होकर हम हनुमंथप्पा जैसे लाखों जाँबाज सैनिकों और देशभक्तों को अपमानित करते हैं। जो लोग नारे लगा रहे हैं कि कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा। उनको समझना होगा कि अफजलों-याकूबों के नाश के लिए इस देश के 'लगभग' हर घर से 'हनुमंथप्पा' निकलेंगे। हम सबके भाई हनुमंथप्पा तुम्हारा संकल्प हम सबमें ज़िंदा रहेगा।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " जनहित मे प्रेमपत्र का पुनर्चक्रण - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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