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शनिवार, 26 सितंबर 2015

भारत में हिन्दू है सबसे गरीब

 ग रीबी के संदर्भ में सुनियोजित तरीके से एक धारणा प्रचलित कर दी गई थी कि भारत में सबसे अधिक गरीब मुसलमान हैं। मुस्लिम इलाके सबसे अधिक पिछड़े और गरीब हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद तो इस धारणा को बहुत बल दिया गया। कांग्रेस और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दल गाहे-बगाहे मुसलमानों की स्थिति को लेकर सच्चर कमेटी का हवाला देते रहते हैं। यह धारणा पहले से सवालों के घेरे में थी। सवाल यह भी थे कि मुसलमान किन कारणों से गरीबी भोग रहे हैं? सच्चर कमेटी की आँच पर तुष्टीकरण की रोटियाँ सेंकने वाले दलों के दिल जल उठेंगे यह जानकर कि देश के सबसे गरीब २० जिले हिन्दू बाहुल्य हैं। यानी हिन्दू गरीब ही नहीं हैं बल्कि सबसे अधिक गरीब हैं। देश में सिर्फ मुसलमान ही गरीब नहीं है, उनसे भी अधिक गरीब हिन्दू हैं। यानी सच्चर कमेटी के चश्मे से गरीबी को देखने वालों को समझना होगा कि वे जो देख रहे थे वह सब हरा-हरा था। उनके चश्में पर जानबूझकर हरा पेंट कर दिया गया था। चश्मा पारदर्शी नहीं था। वे बनावटी झूठ देख रहे थे, सच नहीं। जनगणना-२०११ के धार्मिक विश्लेषण के आधार पर यह सच सामने आया है।

गुरुवार, 27 अगस्त 2015

समान नागरिक संहिता से रुकेगा जनसंख्या असंतुलन

 भा रत सरकार ने जनगणना-2011 के धर्म आधारित आंकड़ों का लेखा-जोखा जारी कर दिया है। आंकड़ों के मुताबिक देश की आबादी में भारत के मूल धर्मावलम्बी हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 96.63 करोड़ है यानी कुल आबादी का 79.8 प्रतिशत। ऐसा पहली बार हुआ है कि देश की जनसंख्या में हिंदुओं की भागीदारी 80 प्रतिशत से नीचे पहुंची हो। जबकि मुस्लिम आबादी 24.6 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ रही है। मुसलमानों की जनसंख्या 14.2 प्रतिशत हो गई है। यानी देश में करीब 17.22 करोड़ मुसलमान रह रहे हैं। जनगणना-2001 के आंकड़ों में मुसलमानों की आबादी 13.4 प्रतिशत थी, जिसमें 0.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मुस्लिम जनसंख्या का वास्तविक आंकड़ा इससे अधिक हो सकता है। क्योंकि, बांग्लादेश से घुसपैठ करके भारत में आकर बस गए मुस्लिम आमतौर पर वापस बांग्लादेश भेजे जाने के डर से अपनी धार्मिक पहचान छिपाकर खुद को हिन्दू बिहारी या हिन्दू बंगाली बताते हैं। धर्म की जानकारी नहीं देने वालों की भी संख्या करीब 29 लाख है। यह आंकड़ा भी इस ओर संकेत देता है कि वास्तविक मुस्लिम जनसंख्या सरकारी रिकॉर्ड में दिखाए गए आंकड़ों से अधिक हो सकती है। तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवी जनसंख्या के आंकड़ों पर शुतुरमुर्ग की तरह व्यवहार कर सकते हैं। तेजी से हो रहा जनसंख्या असंतुलन उन्हें दिखाई न दे या हिन्दुओं की घटती और मुसलमानों की बढ़ती आबादी से उन्हें किसी प्रकार की समस्या न हो। लेकिन, भारत का बहुसंख्यक समाज इन आंकड़ों से जरूर चिंतित है।