बुधवार, 19 सितंबर 2018

संघ एक परिचय

'भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' - 2 
- लोकेन्द्र सिंह
संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने 'भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण' विषय पर पहले दिन के व्याख्यान में संघ का परिचय प्रस्तुत किया। संघ की विकास यात्रा को देश-दुनिया के महानुभावों के सम्मुख रखा। सहज संवाद में अनेक प्रश्नों के उत्तर दिए। सबसे महत्वपूर्ण बात अपने संबोधन के प्रारंभ में उन्होंने कही- 'मैं यहां आपको सहमत करने नहीं आया, बल्कि संघ के बारे में वस्तुस्थिति बताने आया हूं।' यह कहते हुए उन्होंने बताया कि आप संघ के संबंध में अपना विचार बनाने के लिए स्वतंत्र हैं। लेकिन, संघ के संबंध में वस्तुस्थिति जानकार आप अपना मत रखेंगे तो अच्छा होगा। उनका यह कहना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्यादातर लोग संघ के संबंध में टिप्पणी तो करते हैं किंतु उसके संबंध में बुनियादी जानकारी भी नहीं रखते हैं। इस संबंध में उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का हालिया वक्तव्य उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है। व्याख्यानमाला का आमंत्रण मिलने पर उन्होंने कहा कि वह संघ के बारे में अधिक नहीं जानते हैं। स्वयं उन्होंने स्वीकारा कि वह संघ के संबंध में अधिक नहीं जानते, इसके बाद भी वह आगे कहते हैं कि वह इस आयोजन में नहीं जाएंगे, क्योंकि संघ पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने प्रतिबंध लगाया था और जिन कारणों से प्रतिबंध लगाया गया था, वह कारण अभी तक समाप्त नहीं हुए हैं। यह एकमात्र उदाहरण नहीं है। देश के ज्यादातर राजनेता एवं अन्य लोग संघ के संबंध में जानकारी रखते नहीं है, इसके बाद भी संघ पर अनर्गल टिप्पणी करते हैं।
 

जन्मजात देशभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार :
सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने पहले दिन के संबोधन में संघ के संबंध में गढ़े गए अनेक मिथकों से धूल तो झाड़ी ही, साथ ही संघ को समझने की राह भी दिखाई। उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को समझे बिना संघ को समझना कठिन होगा। डॉ. हेडगेवार के संबंध में बताते हुए उन्होंने सहज भाव से महान देशभक्त का जीवन प्रस्तुत कर दिया। डॉ. हेडगेवार जन्मजात देशभक्त थे। केशव हेडगेवार कलकत्ता में डॉक्टरी की पढ़ाई के वक्त क्रांतिकारियों के बीच समन्वय का काम करते थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। डॉ. हेडगेवार 19 अगस्त, 1921 से 11 जुलाई, 1922 तक कारावास में रहे। जब वह जेल से छूटे तब उनके सम्मान में नागपुर में 12 जुलाई, 1922 को आयोजित सार्वजानिक सभा में प्रांत नेताओं के साथ कांग्रेस के अन्य नेता हकीम अज़मल खां, पंडित मोतीलाल नेहरू, राजगोपालाचारी आदि ने हेडगेवार जी का स्वागत किया। वह उस समय की कांग्रेस के नागपुर के वरिष्ठ राजनेता थे। गांधीजी के आंदोलनों में सक्रियता से सहभागी बने। गांधीजी जब येरवाड़ा में पकड़े गए तब उनके लिए हुए एकत्रिकरण बैठक में मुख्य प्रवक्ता के तौर पर कांग्रेस ने हेडगेवार को बुलाया। इसी वर्ष जब संघ शिक्षा वर्ग के समापन में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी नागपुर पहुँचे थे, तब उन्होंने डॉ. हेडगेवार का घर (जो अब उनकी स्मृति में संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है) गए। वहाँ अभ्यागत पुस्तिका (विजिटर बुक) में संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के लिए लिखा- 'मैं आज भारत माँ के महान सपूत डॉ. केबी हेडगेवार के प्रति सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करने आया हूँ।'


राष्ट्रध्वज के सम्मान में तत्पर :
राष्ट्र ध्वज तिरंगा के सम्मान पर अकसर संघ को घेरा जाता है। इस संबंध में संघ के ऊपर लगने वाले आरोप का जिक्र किए बिना ही डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ और उसके स्वयंसेवक राष्ट्र ध्वज के रूप में तिरंगे को मान्यता मिलने के बाद से उसका पूर्ण सम्मान करते हैं। इस संबंध में उन्होंने दो महत्वपूर्ण प्रसंग सुनाए। एक, कांग्रेस के अधिवेशन में 80 फीट ऊंचे पोल पर तिरंगा फहराया जाना था। पंडित नेहरू उस अधिवेशन में आए थे। तिरंगा पोल पर अटक गया। तब वहाँ उपस्थित भीड़ में से एक नौजवान दौड़ कर आया और पोल पर चढ़ कर उसने तिरंगा को फहरा दिया। जब पंडित नेहरू जी ने उस नौजवान का सम्मान करने की बात कही और उसे शाम को बुलाया। तब पंडित नेहरू को बताया गया कि वह नौजवान संघ का स्वयंसेवक किशन सिंह राजपूत है। इसी तरह जब कांग्रेस ने अपने अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य का संकल्प लिया, तब डॉ. हेडगेवार ने संघ के प्रमुख कार्यकर्ताओं को पत्र लिख कर इस निर्णय के लिए कांग्रेस का अभिनंदन किया और स्वयंसेवकों से राष्ट्र ध्वज तिरंगा लेकर पथ संचलन निकालने का आग्रह किया। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने यह भी बताया कि संघ सबसे बड़ा लोकतांत्रिक संगठन है। यहाँ सब मिलकर निर्णय करते हैं। सामान्य स्वयंसेवक भी अपना सुझाव दे सकता है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में सब लोग मिलकर नीति-निर्णय तय करते हैं। यह परंपरा आज से नहीं है, प्रारंभ से है। संघ के नामकरण का प्रसंग इसका उदाहरण है। 

संघ का किसी से विरोध नहीं :
उन्होंने संघ के उद्देश्य के संबंध में भी स्पष्ट किया कि संघ सामर्थ्यवान समाज का निर्माण करना चाहता है। संघ व्यक्ति निर्माण और समाज निर्माण का कार्य करता है। दरअसल, संघ मानता है कि समाज ठीक रहेगा तो सब व्यवस्थाएं ठीक प्रकार से चलेंगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संघ का किसी से विरोध नहीं है। समाज के बीच में काम करते समय स्वयंसेवक किसी के प्रति कटुता का भाव नहीं रखते हैं। संघ सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करता है। संघ किसी को पराया नहीं मानता है। बहरहाल, संघ ने अधिकृत तौर पर विभिन्न मुद्दों पर अपना पक्ष रखा है। यह सही है कि संघ से अब भी बहुतेरे लोग सहमत नहीं होंगे। किंतु, अब इतना तो करना ही चाहिए कि संघ के संबंध में टिप्पणी करते समय डॉ. मोहन भागवत द्वारा रखे गए पक्ष का ध्यान रखा जाएगा। तथ्यों की अनदेखी करके अनर्गल टिप्पणी करने से जिम्मेदार लोग बचेंगे।
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व्याख्यानमाला के पहले दिन की चित्रमयी झलकी देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें - 

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कुंवर नारायण और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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